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इंडिया न्यूज, नई दिल्ली :
Climate Risk देश के महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, बिहार, असम और कर्नाटक चक्रवात, सूखा और बाढ़ जैसी जलवायु संबंधी चरम घटनाओं के लिए सबसे ज्यादा रिस्क वाले राज्य हैं। इतना ही नहीं 80 प्रतिशत से अधिक भारतीय जलवायु संबंधी चरम घटनाओं के जोखिम वाले जिलों में रहते हैं। एक अध्ययन में यह जानकारी सामने आई है। क्लाइमेट वल्नेरेबिलिटी इंडेक्स ने इस संबंध में स्टडी की है।
काउंसिल आन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वॉटर (CEEW) द्वारा जारी किए गए अध्ययन की रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत के 640 जिलों में से 463 जिले अत्यधिक चक्रवात, सूखा और बाढ़ के जोखिम के दायरे में हैं। इनमें से 45 प्रतिशत से अधिक जिले अस्थिर परिदृश्य और बुनियादी ढांचे में बदलावों का सामना कर चुके हैं। इसके अलावा, 183 हॉटस्पॉट (सबसे ज्यादा घटनाओं वाले) जिले जलवायु संबंधी एक से अधिक चरम घटनाओं के लिए अत्यधिक जोखिम की चपेट में हैं।
CEEW के अध्ययन में यह भी पाया गया है कि 60 प्रतिशत से अधिक जिलों में मध्यम से निम्न स्तर तक की अनुकूलन क्षमता मौजूद है। असम में धेमाजी और नागांव, तेलंगाना में खम्मम, ओडिशा में गजपति, आंध्र प्रदेश में विजयनगरम, महाराष्ट्र में सांगली और तमिलनाडु में चेन्नई, भारत के सबसे ज्यादा जोखिम वाले जिलों में शामिल हैं। अध्ययन के अनुसार पूर्वोत्तर के राज्यों के लिए बाढ़, मध्य और दक्षिण भारत के राज्यों के लिए भीषण सूखे का जोखिम सबसे ज्यादा है। इसके अलावा पूर्वी और दक्षिणी राज्यों के कुल जिलों में क्रमश: 59 और 41 प्रतिशत जिले भीषण चक्रवातों के जोखिम की चपेट में हैं।
रिपोर्ट के अनुसार केवल 63 फीसदी जिलों के पास ही जिला आपदा प्रबंधन योजना (डीडीएमपी) उपलब्ध है। लेकिन इन योजनाओं को हर वर्ष अपडेट करने की जरूरत होती है। इस लिहाज से 2019 तक इनमें से सिर्फ 32 फीसदी जिलों ने ही अपनी योजनाएं अपडेट की थी। कर्नाटक, ओडिशा महाराष्ट्र, तमिलनाडु और गुजरात जैसे ज्यादा जोखिम वाले राज्यों ने हाल के वर्षों में अपने डीडीएमपी और जलवायु परिवर्तन-रोधी मुख्य बुनियादी ढांचों में सुधार किया है।
CEEW के सीईओ Dr. Arunabha Ghosh ने कहा कि लगातार और बड़े पैमाने पर होने वाली जलवायु संबंधी चरम घटनाओं के खिलाफ संघर्ष भारत जैसे विकासशील देशों को आर्थिक रूप से कमजोर बनाने वाला है। इसलिए कॉप-26 में, विकसित देशों को 2009 से अटके 100 अरब डॉलर की मदद के वादे को पूरा करके भरोसे को दोबारा जीतना चाहिए और आने वाले दशकों में क्लाइमेट फाइनेंस को बढ़ाने का वादा भी करना चाहिए। इसके अलावा, भारत को एक ग्लोबल रिजिलियंस रिजर्व फंड बनाने के लिए अन्य देशों के साथ साझेदारी करनी चाहिए, जो जलवायु संबंधी खतरों के खिलाफ बीमा का काम कर सकता है।
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