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इंडिया न्यूज, नई दिल्ली, (Court After 30 Years) : सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार से मुंबई में 1992-93 में हुए सांप्रदायिक दंगों में दिए गए मुआवजे का ब्योरा मांगा है। कोर्ट ने राज्य सरकार से करीब 30 साल बाद दंगे में लापता हुए 168 लोगों के वैध वारिसों को मुआवजा दिए जाने का ब्योरा मांगा है। सर्वोच्च अदालत ने यह भी जानना चाहा कि क्या यह 168 पीड़ित दंगे में हताहत हुए चिन्हित 900 लोगों में शामिल हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को इस मामले में अपना फैसला सुरक्षित रखते हुए 1992-93 के मुंबई दंगों के पीड़ितों के मुआवजे दिए जाने के संबंध में दो हफ्ते में राज्य सरकार से विस्तृत हलफनामा देने को कहा है। न्यायाधीश एसके कौल की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने कहा कि वह जानना चाहते हैं कि संपत्ति के नुकसान पर क्या कोई मुआवजा दिया गया था? क्या लापता लोगों के वैध वारिसों को कोई मुआवजा मिला है? यह मुआवजा कब दिया गया था और दंगे के वारदात की तारीख और मुआवजे के भुगतान की तारीख में कितना अंतर है?
खंडपीठ में शामिल न्यायाधीश एएस ओका और विक्रम नाथ ने राज्य सरकार के वकील को बताया कि याचिकाकर्ता के वकील की ओर से इन तीन मुद्दों पर व्यापक रूप से सवाल उठाए गए हैं। इसमें बताया गया है कि कानूनी सेवा प्राधिकरण या कानूनी सेवा प्रणाली को भी उन लोगों की सहायता के लिए आगे आना चाहिए जो कि आपराधिक प्रकृति की सामाजिक घटनाओं में झुलसे हैं।
खंडपीठ ने कहा कि उसके समक्ष पेश की गई जानकारी के अनुसार इन दंगों में 900 लोग मारे गए थे। 168 लोग लापता हुए थे। उनके लापता होने के सात वर्ष पूरे होने के बाद उनके स्वजनों को मुआवजा मिलना चाहिए। इस पर सरकार की ओर से पेश वकील ने बताया कि 17 करोड़ रुपये का मुआवजा पीड़ित लोगों को दिया गया है।
याचिकाकर्ताओं के वरिष्ठ वकील कोलिन गोंजालविस ने न्यायाधीश बीएन श्रीकृष्ण आयोग की रिपोर्ट का हवाला देते हुए बताया कि दंगे में कई पुलिस वालों की भूमिका अलग थी। उन्होंने दंगों के मामलों में कानूनी सहायता प्रणाली का हवाला देते हुए कहा कि पीड़ितों को अपनी लड़ाई खुद ही लड़ने के लिए छोड़ दिया जाता है। गौरतलब है कि श्रीकृष्ण आयोग की रिपोर्ट अप्रैल, 1998 में पेश की गई थी। इसमें कुछ राजनीतिक दलों और पुलिस अफसरों की भूमिका पर सवाल उठाए गए थे। लेकिन इसके बाद पूरा मामला ठंडे बस्ते में चला गया।
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