योगेश कुमार सोनी, नई दिल्ली :
राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में कोरोना ने फिर एक बार दस्तक दे है जिसके वजह लोग विचलित होने शुरु हो गए। यदि बीते एक सप्ताह के आंकड़ों पर गौर करें तो प्रतिदिन एक हजार से ज्यादा केस आने लगे और सरकार ने दोबारा मास्क लगाने के लिए हिदायत दी है, मास्क न लगाने पर फिर पांच सौ रुपये जुर्माना भी कर दिया। कोरोना के बीते कालखंडों में किस तरह मानव जीवन की हानि हुई यह हमने खुली आंखों से देखा और यदि पिछले साल इस ही समय की बात करें तो वैसा मौत का तांडव शायद ही कभी हुआ हो। अप्रैल की महीना सबसे खतरनाक था और अब भी वो ही समय चल रहा है।
डीडीएमए के मुताबिक कोविड-19 के नए वेरिएंट बी.1.10, बी.1.12 के शुरुआती संकेत मिलने के बाद सब परेशान हैं। एक बार फिर से दिल्लीवासियों में तनाव की स्थिति देखने को मिल रही है और सबसे ज्यादा उन अभिभावकों की चिंता बढ़ गई है जिनके बच्चे छोटे हैं और वह स्कूल जा रहे हैं। बीते दो वर्षों से स्कूल नही खुले थे और अब कुछ राहत मिली ही थी कि एक बार फिर से संकट आ गया। ऐसे में अभिभावकों चिंता जायज भी है चूंकि आठवीं कक्षा तक बच्चा स्वयं का ख्याल अर्थात कोरोना के नियमों का पालन नही कर पाता।
दिल्ली डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी ने पुन स्कूल बंद करने का फैसला नही लिया हालांकि स्थिति अभी इतनी भयावह नही है लेकिन हालात बिगड़ते देर नही लगती। चूंकि बीते समय ने हमें बहुत कुछ ऐसा दिखाया था कि जिसकी हमने कभी कल्पना भी नही की थी। बहरहाल, अब शायद स्थिति यही बन रही है कि कोरोना काल में हमें जीना पड़ेगा चूंकि कहते हैं जिंदगी किसी के लिए नही रुकती चूंकि लेकिन ऑनलाइन क्लॉस से बच्चों की शिक्षा बहुत प्रभावित हुई है।
दरअसल जो छोटी कक्षा में हैं जैसे कि पहली से पांचवी तक तो ऐसे बच्चों के माता-पिता का चिंतित होना सही भी है चूंकि इतने छोटे बच्चों को सोशल डिस्टेंसिंग व अन्य नियम का पालन नही कर पाते। इसके अलावा अभिभावकों का कहना यह है कि यदि किसी के घर में कोरोना पेशेंट हुआ और उस बच्चे से स्कूल में पढ़ रहे बाकी बच्चों हो गया तो सब प्रभावित हो सकते हैं।
स्वाभाविक है कि छोटे बच्चों की इम्यूनिटी बड़ों की अपेक्षा अधिक नही होती लेकिन भगवान की कृपा यह भी है कि किसी भी लहर में बच्चे प्रभावित नही हुए लेकिन ध्यान रखना जरूरी है। लोगों का सुझाव है कि कक्षा पांच तक के बच्चों के लिए स्कूल फिर से बंद कर दिये जाए। कुछ लोगों ने तो फिर से अपने बच्चों को स्कूल जाना बंद करा दिया।
लेकिन वहीं इसके विपरीत अधिकतर स्कूल प्रशासन का कहना है कि पिछले लगातार दो वर्ष को ऑनलाइन कक्षा से बच्चों की शिक्षा बहुत प्रभावित हुई है चूंकि अधिकतर बच्चों ने गंभीरता से कक्षा नही ली जिसकी वजह से पढाई में बहुत पिछड़ गए। उदाहरण के तौर पर तीसरी कक्षा में जो बच्चा था वह बीते दो वर्षों में उतना योग्य नही हो पाया कि वह पांचवी कक्षा की शिक्षा के योग्य हो। लेकिन कक्षा पांच तक के बच्चे को फेल भी नही कर सकते लेकिन उसको हाल ही की पढाई व आगे उस को और ज्यादा समस्या आ सकती है।
इस बात में कोई दो राय नही है कि अधिकतर बच्चे घर पर उतनी मेहनत व लगन से नही पढ़ पाए जितना स्कूल में पढ़ पाते हैं। मोबाइल में क्लॉस लेने के बहाने के बच्चे गेम खेलते रहे या अन्य चीजों में लगे रहे और अपनी व्यस्तता के चलते अभिभावक ध्यान नही दे पाए। इसके अलावा स्कूल की ओर से यह भी कहा गया कि कोरोना के बाद से यदि पूरे भारत के पहली से बारहवीं के बच्चों की नंबरो व ग्रेड की प्रतिशत में बहुत कमी आई है। बीते दो वर्षों में प्रैक्टिकल न होने की वजह से भी के प्रैक्टिकल वाले विषयों में विफल होना चिंताजनक हो गया।
अब लोगों को कोरोना से राहत मिली तो फिर वही स्थिति बन रही है। लेकिन जो अभिभावक बच्चों को स्कूल भेजने का विरोध कर रहे हैं उतना नजरिये को भी समझा जाए तो उनकी बात भी जायज लगती है चूंकि जिस तरह कोरोना का इलाज वयस्कों का होता है कल्पना की जाए वैसे बच्चों का होना असंभव है। पूरे भारत में यदि महानगरों की स्थिति पर चर्चा करें तो हालात बहुत खराब रहे हैं और आंकडें भी दिल्ली व मुंबई जैसे शहरों बहुत डराने वाले थे इसलिए इन राज्यों की जनता का अधिक परेशान होना स्वाभाविक लगता है।
शिक्षाविदों के आधार पर यह माना जाता है कि यदि स्कूली शिक्षा मजबूत नही होगी तो आने भविष्य में अच्छे डॉक्टर, इंजिनियर, अध्यापक व अन्य देश के संचालित करने वाले लोगों की कमी आ जाएगी और यदि मिलेंगे तो बेहतर नही मिलेंगे। कुछ अभिभावकों का कहना है कि घर में रहकर उनके बच्चे अच्छी शिक्षा प्राप्त नही कर पाए यह अलग बात है लेकिन वह डिप्रेशन के शिकार हो गए जो बेहद चिंताजनक मामला बन गया। इसके अलावा एक बेहद आश्चर्यचकित करने वाली घटना यह भी आई कि कुछ बच्चों ने ऑनलाइन क्लास की आड में अश्लील सामग्री देखने लगे थे,दरअसल उस प्रकरण में गलती उनकी नही थी चूंकि आजकल सोशल माध्यम पर अश्लील सामग्री आती हैं।
बहुत गंदे टाइटल के साथ वीडियो आते हैं जो हर दो पोस्ट या विज्ञापन के बाद दिख जाते हैं। चूंकि बच्चों में इतना ज्ञान नही होता और वह उन सभी बातों को समझ नही पाते। कुछ बच्चे इसका गलत रुप से शिकार भी हुए हैं।बहरहाल,हर घटना के सिक्के की तरह दो पहलू होते हैं लेकिन जिंदगी को सुरक्षा के साथ जीना भी जरूरी है तो इसलिए स्कूली बच्चों के लिए कुछ अलग से तरकीब सोचनी पडेगी।
बीती मार्च को सरकार ने पहली बार 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को कोरोना वैक्सीन लगाने का अभियान शुरू किया था। तब से 15 से 18 वर्ष के बच्चों को टीके लगाए जा रहे हैं। इस कारण बड़े बच्चों के स्कूल खोलने में भी आसानी हुई थी। अब 12 वर्ष के बच्चों को भी टीका लगाने से छोटे बच्चों को भी स्कूल भेजने में कोई समस्या नही मानी जा रही और जिन बच्चों का जन्म वर्ष 2008, 2009 या 2010 में हुआ है, उन्हें टीके लगाए का अभियान चलाया जा रहा है।
लेकिन इसके बाद के वर्ष में किसी को लिए अब कर सरकार के पास कोई रणनिती नही हैं। स्पष्ट है कि छोटे बच्चों को लेकर स्वयं ही एहतियात बरतने होंगे चूंकि किसी के पास भी इतना बड़ा दिल नही है जो अपने बच्चों पर रिस्क ले सकें। अब सरकार व विभागों के सामने शिक्षा व सुरक्षा का जिम्मा है। देखना यह होगा कि किस नीति के तहत इस काम को अंजाम दिया जाएगा।
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