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दिल्ली में प्याज कैसे खा गई 3 मुख्यमंत्रियों की इज्जत? BJP का ट्रंप कार्ड भी हुआ फुस्स, सिर्फ 52 दिन में काम तमाम

BY: Divyanshi Singh • LAST UPDATED : January 9, 2025, 3:25 pm IST
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दिल्ली में प्याज कैसे खा गई 3 मुख्यमंत्रियों की इज्जत? BJP का ट्रंप कार्ड भी हुआ फुस्स, सिर्फ 52 दिन में काम तमाम

Delhi government fell because of onions

India News (इंडिया न्यूज),Delhi government fell because of onions: सब्जियों में डाला जाना वाला प्याज कितना ताकतवर हैं? इसका जवाब है  इतना तकतवर हैं कि किसी सरकार को गिरा सकता है। अब आप कहेंगे कुछ भी लेकिन जब दिल्ली की राजनीति का इतिहास पलटकर देखेंगे तो पाएंगे कि यह कुछ भी नहीं बल्कि हकीकत है।बात साल 1998 की है जब प्लाज के बढ़ते दामों ने दिल्ली की गद्दी पर सवार दिल्ली की पहली महिला मुख्यमंत्री सुषमा स्वराज की सरकार गिरा दी थी। 1993 में पूर्ण बहुमत के साथ बीजेपी पहली बार सत्ता में आई थी। उस समय भारतीय जनता पार्टी के नेता मदनलाल खुराना सीएम बने।

इस तरह सुषमा स्वराज बनी दिल्ली की पहली महिला सीएम

वहीं 1996 में मदन लाल खुराना की जगह साहिब सिंह वर्मा को दिल्ली का सीएम बनाया गया। खुराना दो साल 86 दिन तक मुख्यमंत्री पद पर रहे। साहिब सिंह वर्मा भी कार्यकाल पूरा नहीं कर सकें और विधानसभा चुनाव से महज दो महीने पहले कद्दावर महिला नेता सुषमा स्वराज को मुख्यमंत्री बना दिया गया।सुषमा स्वराज ने काफी समय तक दिल्ली की सीएम बनी रहीं। लेकिन प्याज की कीमतें स्वराज के लिए काल बनकर आईं और उनसे वह मौका छीन लिया। उस समय प्लाज की कीमतें ना केवल दिल्ली में बल्कि पूरे देश में तहलका मचा रही थी। प्लाज की बढ़ती कीमतें विपक्ष के लिए एक सरकार को घेरने का एक बड़ा मुद्दा था।विपक्ष इस मुद्दे को लेकर दिल्ली की बीजेपी सरकार को घेरने लगा। जिसके बाद बीजेपी ने राजधानी में हालात पर काबू पाने के लिए साहिब सिंह वर्मा की जगह सुषमा स्वराज को दिल्ली का सीएम बनाया।

ट्रंप कार्ड हुआ फेल

दिल्ली की गद्दी पर बैठने के बाद सुषमा स्वराज ने प्याज की कीमतों को कम करने के लिए प्रयास किए। स्वराज  ने जनता से वादा किया कि वो उन्हे 5 रुपये किलो प्याज मुहैया करायेंगी। लेकिनस्वराज ऐसा नहीं कर पाई। उन्होने कई प्रयास किए लेकिन कोई भी सफल नहीं रहा जिसके बाद आम जनता की नजर में  सरकरा की विश्वसनीयता लगातार कम होती चली गई। जबकि उस समय दिल्ली की राजनिति में भाजपा स्वार को बीजेपी की ट्रंप कार्ड माना जा रहा था।

शीला दीक्षित बनाम सुषमा स्वराज

जहां भाजपा ने दिल्ली में सुषमा स्वराज को उतारा था वहीं कांग्रेस ने स्वराज के खिलाफ एक अन्य महिला  नेता शीला दीक्षित पर दांव लगाया। कांग्रेस ने राजधानी की बागडोर शीला दीक्षित को सौंप दी।उत्तर प्रदेश के एक मशहूर राजनीतिक परिवार की बहू शीला दीक्षित ने दिल्ली में कांग्रेस संगठन को सक्रिय करके खुद को सुषमा स्वराज के विकल्प के तौर पर स्थापित किया। इस तरह दिल्ली की सियासी जंग दिलचस्प हो गई। शीला दीक्षित का जादू दिल्ली पर इस हद तक छाया कि सुषमा स्वराज को आगे करने के बाद भी बीजेपी अपना सियासी किला नहीं बचा पाई। इसके बाद की कहानी से हर कोई वाकिफ है। इसके बाद शीला दीक्षित 2014 तक लगातार तीन बार दिल्ली की मुख्यमंत्री रहीं।

दिल्ली की राजनीति से बराबर जुड़ी रहीं स्वराज

सुषमा स्वराज दिल्ली में सरकार तो नहीं बचा पाईं, लेकिन उन्होंने अपनी विधानसभा सीट जरूर जीत ली। दिल्ली की जनता द्वारा नकारे जाने के बावजूद वे दिल्ली की राजनीति से बराबर जुड़ी रहीं। उस समय दिल्ली भाजपा में लालकृष्ण आडवाणी, मदनलाल खुराना, अरुण जेटली, विजय कुमार मल्होत्रा ​​के साथ सुषमा स्वराज का नाम प्रमुखता से लिया जाता था। प्याज की बढ़ती कीमत और महंगाई के कारण भाजपा मात्र 15 सीटों पर सिमट गई। कांग्रेस को 52, जनता दल को एक और निर्दलीय को दो सीटें मिलीं। 1993 के बाद भाजपा कभी दिल्ली की सत्ता में वापस नहीं आ सकी।

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