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इंडिया न्यूज, मथुरा:
देश में लगातार उठ रही मस्जिदों के सर्वे के मांग थमने का नाम नहीं ले रही है। उत्तर वाराणसी में ज्ञानवापी और मथुरा की शाही ईदगाह मस्जिद विवाद के बाद अब प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट-1991 पूरे देश में चर्चा का विषय बन गया है। सुप्रीम कोर्ट में वर्शिप एक्ट को समाप्त करने के लिए कई याचिकाएं दाखिल हो चुकी हैं। शनिवार को भी मथुरा के मशहूर भगवत भागवताचार्य देवकीनंदन ठाकुर जी महाराज ने सुप्रीम कोर्ट में वर्शिप एक्ट के खिलाफ अर्जी दाखिल की। अर्जी में देवकीनंदन ठाकुर ने कहा हैं कि “ये कानून लोगों को धार्मिक अधिकार से वंचित करता है। इसीलिए इस कानून में बदलाव होना चाहिए, या इसे खत्म किया जाना चाहिए।”
देवकीनंदन ने कहा हैं कि “सनातन अनुयायियों को पूजा करने का अधिकार मिलना चाहिए। अगर किसी ने हमारे साथ क्रूरता की है, तो हम कोर्ट का दरवाजा खटखटा कर अर्जी और याचिका दाखिल कर सकते हैं। उसी को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की गई है। इस अर्जी को सुप्रीम कोर्ट स्वीकार करेगा या नहीं इस पर अभी निर्णय नहीं हुआ है।”
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट में अब तक इस मामले में कुल 7 याचिकाएं दायर हो चुकी हैं। ऐसी ही याचिकाएं अश्विनी उपाध्याय, सुब्रह्मण्यम स्वमी, जितेंद्रानंद सरस्वती भी डाल चुके हैं। 12 मार्च 2021 को वकील अश्विनी उपाध्याय की याचिका पर नोटिस जारी हुआ था।
पूजा स्थल अधिनियम 1991 के अनुसार किसी भी धार्मिक पूजा स्थल को दूसरे धार्मिक स्थल में परिवर्तित नहीं किया जा सकता। बता दें कि इस कानून के अनुसार 15 अगस्त 1947 से पहले बने या अस्तित्व में आए धार्मिक स्थल को बदलने की सूरत में एक से तीन वर्ष की जेल और जुर्माने का प्रावधान है। यह कानून तत्कालीन कांग्रेस प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव सरकार वर्ष 1991 में लेकर आई थी। यह कानून बाबरी मस्जिद और अयोध्या का मुद्दे के सुर्खियों में होने के समय आया था।
पूजा स्थल कानून की धारा 2 के अनुसार 15 अगस्त 1947 से पहले बने या मौजूद धार्मिक स्थल में छेड़खानी करके किसी भी प्रकार की याचिका, अदालती कार्यवाही आदि लंबित है तो उसे तत्काल बंद कर दिया जाएगा।
पूजा स्थल कानून की धारा 3 के अनुसार किसी भी धार्मिक स्थल को पूरी या आंशिक रूप से किसी दूसरे धर्म के स्थल में परिवर्तित नहीं किया जा सकता। यह धारा इस पर प्रतिबंध लगाती है। इसके तहत किसी भी धर्म के स्थल को आंशिक या पूर्ण रूप से नहीं बदला जा सकता।
पूजा स्थल कानून की धारा 4 (1) के तहत किसी भी धार्मिक पूजा स्थान को उसके मूल रूप में बनाए रखना होगा। इसके साथ ही धारा-4 (2) इसके तहत चल रहे केस, अपील और अन्य कानूनी कार्यवाहियों पर प्रतिबंध लगाता है। वहीं धारा-5 के अनुसार इस कानून के तहत राम जन्मभूमि से जुड़े केस इस पर लागू नहीं होंगे।
राम मंदिर आंदोलन 1990 के दशक में अपने चरम पर था। राम मंदिर और बाबरी मस्जिद के साथ ही अनेक मंदिर और मस्जिद के विवाद उठने शुरू हो गए थे। देश में हालात बद से बदतर न हो जाएं इसलिए नरसिंहा राव सरकार ये कानून लेकर आई थी।
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