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इंडिया न्यूज, नई दिल्ली, (Different Muslim Women) : अलग-अलग मुस्लिम महिलाओं की ओर से दायर की गई याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने पीड़िता के पतियों को नोटिस जारी किया है। याचिका में तलाक-ए-हसन को चुनौती दी गई है। जस्टिस संजय किशन कौल और अभय एस ओका की बेंच ने मामले को 11 अक्टूबर के लिए सूचीबद्ध कर दिया।
एक याचिकाकर्ता ने कोर्ट को बताया कि उसे तलाक इस तरह से दिया गया है जैसे मकान मालिक घर खाली करने का नोटिस देता है। उसने बताया कि एक तीसरा व्यक्ति उसके पति की ओर से ये नोटिस भेज रहा है। कोर्ट ने पूरे मामले से अवगत होने के बाद कहा कि पहले मामले का सामाधान होना चाहिए।
अलग-अलग दायर याचिकाओं में महिलाओं ने कोर्ट से यह निर्देश देने की मांग कि है कि तलाक-ए-हसन और एकतरफा दिए जाने वाले सभी तलाक को असंवैधानिक कर दिया जाए। मुंबई निवासी याचिकाकर्ता ने खुद को तलाक-ए-हसन का पीड़ित होने का दावा किया और कहा कि यह जनहित याचिका व समाज में आर्थिक तौर पर कमजोर उन महिलाओं के लिए दायर कर रही है जो पति के द्वारा शोषित होती हैं। वह महिलाओं के विकास और सुरक्षा के लिए दायर कर रही है।
याचिका में मुस्लिम पर्सनल ला की धारा 2 को असंवैधानिक करार देने की भी मांग की गई है। याचिका में मुस्लिम पर्सनल ला की धारा 2 को असंवैधानिक करार देने के लिए कहा गया है। याचिका में बताया गया है कि तलाक-ए-हसन और एकतरफा तलाक के सभी तरीकों की प्रथा अनुच्छेद 14, 15, 21 और 25 का उल्लंघन करता है और इसलिए असंवैधानिक घोषित करने के लिए कोर्ट निर्देश जारी करे।
इसके साथ ही मुस्लिम विवाह अधिनियम 1939 को भंग करने के साथ ही इसे अवैध करार देने की मांग की गई है। याचिकाकर्ता ने बताया कि ये सभी कानून मुस्लिम महिलाओं को असुरक्षित बनाती है।
तीन महीने में एक निश्चित अंतराल के बाद तलाक बोलकर पति अपनी पत्नी से संबंध तोड़ सकता है। तीन तलाक में एक बार में ही तीन बार तलाक बोला जाता था। यह तीन महीने पूरे होने और आखिरी बार तलाक बोलने के साथ ही दोनों के रिश्ते टूट जाते हैं और रिश्ता बिखर जाता है।
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