इंडिया न्यूज, नई दिल्ली:
Marital Rape: वैवाहिक दुष्कर्म यानी मैरिटल रेप (Marital Rape) मामले में दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) की दो जजों की बेंच ने आज विभाजित फैसला सुनाया। एक जज ने मैरिटल रेप को अपराध माना जबकि दूसरे ने यह कहकर असहमति जता दी कि यह संविधान का उल्लंघन नहीं करता है। हाईकोर्ट ने अब इस मामले को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के लिए प्रस्तावित किया है।
जानिए किस जज ने क्या कहा
बता दें कि विभिन्न याचिकाओं के जरिये वैवाहिक दुष्कर्म (Marital Rape) के अपराधीकरण की मांग की गई थी। सुनवाई के दौरान दोनों जजों की राय एक मत नहीं दिखी जिसके चलते उन्होंने खंडित निर्णय सुनाया।
खंडपीठ की अध्यक्षता करने वाले न्यायमूर्ति राजीव शकधर ने फैसला सुनाते हुए जहां वैवाहिक दुष्कर्म (Marital Rape) के अपराध से पति को छूट देने को असंवैधानिक करार दिया वहीं न्यायमूर्ति सी हरि शंकर ने सहमति के बिना अपनी पत्नी के साथ संभोग करने पर पतियों को छूट देने वाली आइपीसी की धारा-375, 376बी के अपवाद-दो को अनुच्छेद-14 का उल्लंघन बताते हुए इसे खारिज कर दिया।
जानिए याचिकाकर्ताओं ने क्या दी थी चुनौती
याचिकाकर्ताओं ने आईपीसी की धारा 375 (दुष्कर्म) के अंतर्गत मैरिटल रेप (Marital Rape) को अपवाद माने जाने को लेकर संवैधानिक तौर पर चुनौती दी थी। धारा 375 के अनुसार मैरिड महिला से उसके पति द्वारा की यौन क्रिया को तब तक दुष्कर्म नहीं माना जाएगा जब तक कि पत्नी नाबालिग न हो। हाईकोर्ट ने मैरिटल रेप को अपराध घोषित करने के मामले में पक्ष रखने के लिए बार-बार समय मांगने पर केंद्र के रवैये पर नाराजगी जताई थी। अदालत ने केंद्र सरकार को समय प्रदान करने से मना करते हुए अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
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