इंडिया न्यूज़, नई दिल्ली
Do You Know The First IAS Officer Of India? देश में आज सर्वश्रेष्ठ नौकरी की बात करें तो अईएएस और आईपीएस के नाम ही सबसे पहले आते हैं। देश के लाखों छात्रों का सपना सिविल सर्विस का एग्जाम पास करना होता है। हर साल हजारों छात्र परीक्षा में बैठते हैं, कुछ की उम्मीदों को पंख लगते हैं, तो कोई फिर से प्रयास के लिए जुट जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि आखिर वो पहला भारतीय शख्स कौन था, जिसने इस मुश्किल परीक्षा को पास किया था। आखिर क्यों सरकार में नौकरी के लिए इस परीक्षा की जरूरत पड़ी और इसकी शुरूआत कैसे हुई। चलिए हम आपको बताते हैं।
भारत में सिविल सर्विस एग्जाम की शुरूआत साल 1854 में हुई। अंग्रेजों ने इसकी शुरूआत की थी। ईस्ट इंडिया कंपनी के लिए काम करने वाले सिविल सर्वेंट को पहले कंपनी के निदेशकों द्वारा नामित किया जाता था। इसके बाद लंदन के हेलीबरी कॉलेज में इन्हें ट्रेनिंग के लिए भेजा जाता। यहां से ट्रेनिंग पूरी करने के बाद ही भारत में तैनात किया जाता था।
ऐसे हुई सिविल सर्विस परीक्षा की शुरूआत (Do You Know The First IAS Officer Of India?)
ईस्ट इंडिया कंपनी की इस प्रक्रिया पर सवाल उठने लगे। इसके बाद ब्रिटिश संसद की सेलेक्ट कमेटी की लॉर्ड मैकाउले रिपोर्ट में एक प्रस्ताव पेश किया गया। इसके तहत भारत में सिविल सर्विस के चयन के लिए एक मेरिट पर आधारित परीक्षा कराई जाए। एक प्रतिस्पर्धी परीक्षा हो और उसी के आधार पर सही उम्मीदवार का चयन हो। इस तरह से एक निष्पक्ष प्रक्रिया की शुरूआत की जा सकेगी। इस उद्देश्य के लिए 1854 में लंदन में सिविल सर्विस कमीशन का गठन किया गया। इसके अगले साल परीक्षा की शुरूआत हो गई।
भारतीयों को नीचा दिखाने को अंग्रेजों ने चली ये चाल ( Do You Know The First IAS Officer Of India)
अंग्रेजों ने खुद को महान साबित करने के लिए कमीशन का गठन तो कर दिया। मगर वो नहीं चाहते थे कि कोई भारतीय इस प्रतिष्ठित पद तक पहुंचे। शुरूआत में यह परीक्षा सिर्फ लंदन में ही होती थी। इसके लिए न्यूनतम आयु 18 साल और अधिकतम आयु महज 23 साल ही थी। भारतीयों को फेल करने के लिए खासतौर से सिलेबस को तैयार किया गया और उसमें यूरोपीय क्लासिक के लिए ज्यादा नंबर रखे गए। अंग्रेज नहीं चाहते थे कि भारतीय ये परीक्षा पास करें।
इस भारतीय ने तोड़ा अंग्रेजों को गुरूर (Do You Know The First IAS Officer Of India?)
शुरूआती दशक में तो अंग्रेजों को लगा कि वो अपनी चाल में कामयाब हो गए हैं। मगर उन्होंने भारतीयों को कम आंककर बड़ी भूल कर दी थी। 1864 में पहली बार किसी भारतीय ने इस परीक्षा में सफलता हासिल की। सत्येंद्रनाथ टैगोर इस परीक्षा को पास करने वाले पहले भारतीय थे। वह महान रबिंद्रनाथ टैगोर के भाई थे। इसके बाद कामयाबी का सिलसिला चल निकला। तीन साल के बाद 4 भारतीयों ने एक साथ यह परीक्षा पास की।
भारत में परीक्षा के लिए 50 साल का संघर्ष
यही नहीं भारतीयों को 50 साल से ज्यादा समय तक इस बात के संघर्ष करना पड़ा कि यह परीक्षा लंदन के बजाय भारत में हो। ब्रिटिश सरकार नहीं चाहती थी कि ज्यादा भारतीय सिविल सर्विस परीक्षा में सफलता हासिल करें। मगर भारतीयों के लगातार प्रयास और याचिकाओं के बाद आखिरकार उन्हें झुकना पड़ा। प्रथम विश्व युद्ध के बाद 1922 से यह परीक्षा भारत में होनी शुरू हुई।
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