यह टेस्ट खास क्यों है?
स्टैटिक टेस्ट (जहाँ मशीनें एक ही जगह पर रहती हैं) आसान होते हैं, लेकिन डायनामिक टेस्ट असल जिंदगी के हालात की नकल करते हैं. जहां चीज़ें चल रही होती हैं, वे तेज़ स्पीड पर होती हैं. ऐसे टेस्ट दिखाते हैं कि असली उड़ान में इजेक्शन सीट और पायलट रेस्क्यू टेक्नोलॉजी कितनी भरोसेमंद हैं.
टेस्ट कैसे किया गया?
इस टेस्ट में, तेजस फाइटर एयरक्राफ्ट की अगली बॉडी को एक ट्रैक पर रखा गया था. इसे रॉकेट मोटर्स का इस्तेमाल करके कंट्रोल्ड स्पीड से तेज़ किया गया. अंदर एक खास डमी रखी गई थी, जो पायलट की नकल कर रही थी और सभी झटकों और प्रेशर को रिकॉर्ड कर रही थी. सभी कैमरों और सेंसर ने दिखाया कि इजेक्शन सीट ठीक से काम कर रही थी. इस टेस्ट को IAF, इंस्टीट्यूट ऑफ एयरोस्पेस मेडिसिन और कई दूसरे खास इंस्टीट्यूशन ने देखा.
रक्षा मंत्री ने क्या कहा?
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने DRDO, IAF, ADA और HAL को बधाई दी. उन्होंने कहा कि यह टेस्ट भारत की डिफेंस टेक्नोलॉजी को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम है. बाद में उन्होंने ट्विटर पर इस बारे में जानकारी शेयर की। यह टेस्टिंग ट्रैक क्या करता है? TBRL का 4 किलोमीटर लंबा रॉकेट स्लेज ट्रैक 2014 में बनाया गया था. यह देश की सबसे एडवांस्ड टेस्टिंग फैसिलिटी में से एक है.
Defence Research and Development Organization (DRDO) has successfully conducted a high-speed rocket-sled test of fighter aircraft escape system at precisely controlled velocity of 800 km/h- validating canopy severance, ejection sequencing and complete aircrew-recovery at Rail… pic.twitter.com/G19PJOV6yD
— रक्षा मंत्री कार्यालय/ RMO India (@DefenceMinIndia) December 2, 2025