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शरद पवार की NCP को मिले राष्ट्रीय पार्टी के दर्जे की चुनाव आयोग करेगा समीक्षा

Sharad Pawar: शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी ‘राष्ट्रीय पार्टी’ (NCP) की स्थिति की चुनाव आयोग ने समीक्षा करने का फैसला किया है। आज मंगलवार को आयोग NCP के प्रतिनिधित्व पर सुनवाई करेगा। जिसमें उसके फैसले की समीक्षा को लेकर मांग की गई है। सूत्रों ने जानकारी दी कि अब NCP राष्ट्रीय पार्टी के दर्जे की आवश्यकताओं को पूरा नहीं करती है।

एक राजनीतिक दल को राष्ट्रीय पार्टी के रूप में मान्यता मिलती है। यदि उसके उम्मीदवार लोकसभा या विधानसभा चुनावों में 4 या उससे ज्यादा राज्यों में कम से कम 6 परसेंट वोट हासिल करते हैं। इसके साथ ही उस पार्टी को कम से कम 4 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल करनी होती है। वहीं तीन राज्यों की कुल लोकसभा सीटों में से दो फीसदी सीट जीतनी हैं। किसी भी पार्टी को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा मिलने के काफी फायदे होते हैं। राज्यों में उन्हें एक समान पार्टी चिन्ह मिलता है।

आयोग ने स्थिति की समीक्षा करने का किया फैसला

इसके साथ ही राजधानी दिल्ली में पार्टी कार्यालय के लिए एक जगह दी जाती है। चुनाव के दौरान सार्वजनिक प्रसारकों पर मुफ्त एयरटाइम मिलता है। मायावती की BSP और CPI के साथ NCP साल 2014 के संसदीय चुनाव के बाद अपनी राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा खोने के लिए खड़ी हुई थी। मगर उस वक्त चुनाव आयोग नरम रुख अपनाने को तैयार हो गया था। आयोग ने दो चुनाव चक्रों के बाद स्थिति की समीक्षा करने का निर्णय किया था।

राष्ट्रीय दर्जा खोने पर चुनाव लड़ने का अधिकार नहीं

2019 के आम चुनाव के बाद CPI और ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस के साथ NCP की राष्ट्रीय पार्टी की स्थिति एक बार फिर से इलेक्शन कमीशन के समक्ष समीक्षा के लिए आई। लेकिन आयोग ने आने वाले विधानसभा चुनावों को देखते हुए दोबारा यथास्थिति बनाए रखने का निर्णय लिया। सिंबल ऑर्डर 1968 के अंतर्गत राष्ट्रीय दर्जा खोने पर पार्टी को देश भर में एक सामान्य प्रतीक का प्रयोग करके चुनाव लड़ने का अधिकार नहीं होता है।

शरद पवार की एनसीपी के प्रतिनिधित्व को न स्वीकाराने की स्थिति में पार्टी अपने चुनाव चिह्न का केवल उन राज्यों में उपयोग कर सकेगी। जहां पर उसे राज्य की पार्टी के रूप में मान्यता प्राप्त होगी। साल 2016 में चुनाव आयोग ने ‘राष्ट्रीय पार्टी’ की स्थिति की समीक्षा के लिए नियमों में संशोधन किया था। जिसके अंतर्गत 5 के बजाय हर 10 सालों में समीक्षा होती है।

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Akanksha Gupta

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