India News (इंडिया न्यूज),Electoral Bond Scam: चुनावी बांड योजना पर विवाद अभी खत्म नहीं हुआ है कि सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई है। इसमें कोर्ट की निगरानी में विशेष जांच दल (एसआईटी) से जांच की मांग की गई है। शीर्ष अदालत की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने 15 फरवरी को भाजपा सरकार द्वारा गुमनाम राजनीतिक फंडिंग के लिए शुरू की गई चुनावी बांड योजना को रद्द कर दिया था।
सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद, भारतीय स्टेट बैंक ने चुनाव आयोग (ईसी) के साथ डेटा साझा किया था, जिसने बाद में उन्हें सार्वजनिक कर दिया। एनजीओ कॉमन कॉज और सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन द्वारा दायर याचिका में इसे ‘घोटाला’ करार देते हुए अधिकारियों को शेल कंपनियों और घाटे में चल रही कंपनियों के वित्तपोषण के स्रोत की जांच करने का निर्देश देने की मांग की गई है।
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वकील प्रशांत भूषण के माध्यम से दायर याचिका में अधिकारियों को ‘क्विड प्रो क्वो व्यवस्था’ के हिस्से के रूप में कंपनियों द्वारा दान किए गए धन की वसूली के लिए निर्देश देने की भी मांग की गई है। याचिका में कहा गया है कि चुनावी बॉन्ड घोटाले में ऐसा प्रतीत होता है कि देश की कुछ प्रमुख जांच एजेंसियां जैसे कि सीबीआई, प्रवर्तन निदेशालय और आयकर विभाग भ्रष्टाचार में भागीदार बन गए हैं।
इसमें दावा किया गया है कि कई कंपनियां जो इन एजेंसियों की जांच के दायरे में थीं, उन्होंने जांच के नतीजे को संभावित रूप से प्रभावित करने के लिए सत्तारूढ़ पार्टी को बड़ी रकम का दान दिया है। याचिका में कहा गया है कि घोटाले की जांच एक एसआईटी द्वारा की जानी चाहिए जिसमें शीर्ष अदालत द्वारा चयनित मौजूदा/सेवानिवृत्त जांच अधिकारी शामिल हों और शीर्ष अदालत के एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश की देखरेख में काम कर रहे हों।
याचिका में उन कंपनियों द्वारा कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 182(1) के कथित उल्लंघन की जांच करने के निर्देश देने की भी मांग की गई, जिन्होंने अपने गठन के तीन साल के भीतर चुनावी बांड के माध्यम से राजनीतिक दलों को दान दिया और ऐसी कंपनियों पर धारा 182 के तहत जुर्माना लगाया जाना चाहिए।
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