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जेल जा सकती हैं मोदी की ये महिला मंत्री! बेंगलुरु कोर्ट ने इस मामले में दिया FIR का आदेश

BY: Raunak Pandey • LAST UPDATED : September 28, 2024, 11:46 am IST
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जेल जा सकती हैं मोदी की ये महिला मंत्री! बेंगलुरु कोर्ट ने इस मामले में दिया FIR का आदेश

FIR Against Nirmala Sitharaman: जेल जा सकती हैं मोदी की ये महिला मंत्री!

India News (इंडिया न्यूज), FIR Against Nirmala Sitharaman: बेंगलुरु की विशेष प्रतिनिधि अदालत ने शुक्रवार (27 सितंबर) को चुनावी बॉन्ड के जरिए कथित जबरन वसूली के मामले में केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण और अन्य के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया। जनाधिकार संघर्ष परिषद (जेएसपी) के सह-अध्यक्ष आदर्श अय्यर ने बेंगलुरु की विशेष जनाधिकार अदालत में शिकायत दर्ज कर केंद्रीय मंत्री निर्मला सीतारमण के खिलाफ कार्रवाई करने का निर्देश मांगा था। याचिकाकर्ता ने अपनी शिकायत में कहा था कि चुनावी बॉन्ड के जरिए डरा-धमका कर जबरन वसूली की गई। इस याचिका पर सुनवाई करते हुए अदालत ने बेंगलुरु के तिलक नगर पुलिस स्टेशन को चुनावी बॉन्ड के जरिए जबरन वसूली के मामले में एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया।

अब अक्टूबर में होगी सुनवाई

बता दें कि, अप्रैल 2024 में 42वीं एसीएमएम कोर्ट में दायर याचिका में जनाधिकार संघर्ष परिषद ने केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण, ईडी अधिकारियों, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, भाजपा के राष्ट्रीय नेताओं, तत्कालीन भाजपा कर्नाटक अध्यक्ष नलिन कुमार कटील, बीवाई विजयेंद्र के खिलाफ शिकायत की थी। साथ ही शिकायत पर विचार करने के बाद कोर्ट ने बेंगलुरु के तिलक नगर पुलिस को एफआईआर दर्ज करने का निर्देश दिया है। याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता बालन ने दलीलें पेश कीं। अब इस मामले की सुनवाई 10 अक्टूबर तक के लिए स्थगित कर दी गई है।

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पहले भी बीजेपी की हो चुकी है शर्मिंदगी

दरअसल, चुनावी बॉन्ड की वजह से बीजेपी को पहले भी काफी शर्मिंदगी उठानी पड़ चुकी है। नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली केंद्र सरकार 2018 में चुनावी बॉन्ड योजना लेकर आई थी। सरकार का कहना था कि राजनीतिक दलों को दिए जाने वाले नकद दान या चंदे को पारदर्शी बनाने के लिए चुनावी बॉन्ड योजना लाई गई है। चुनावी बॉन्ड के जरिए राजनीतिक दलों को फंडिंग का काम शुरू हुआ। हालांकि इसमें यह बताने का कोई प्रावधान नहीं था कि बॉन्ड किसने कितने में खरीदा। विपक्षी दलों ने इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और शीर्ष अदालत ने इस साल लोकसभा चुनाव से पहले इसे रद्द कर दिया था।

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