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बड़ा खुलासा! मनमोहन सिंह को नहीं आती थी हिंदी, इस भाषा में लिखे जाते थे उनके भाषण

BY: Deepak • LAST UPDATED : December 27, 2024, 9:51 am IST
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बड़ा खुलासा! मनमोहन सिंह को नहीं आती थी हिंदी, इस भाषा में लिखे जाते थे उनके भाषण

Former PM Manmohan Singh did not know Hindi

India News (इंडिया न्यूज), Manmohan Singh: पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के निधन से पूरे देश में शोक की लहर है। वहीं, मनमोहन सिंह के निधन पर उनके मीडिया सलाहकार संजय बारू ने पूर्व प्रधानमंत्री को याद किया और उनसे जुड़े दस्तावेज साझा किए। संजय बारू का कहना है कि मनमोहन सिंह को हिंदी पढ़नी नहीं आती थी। उनके प्रवचन या तो गुरुमुखी में लिखे होते थे या फिर उर्दू में।

हालांकि, जब संजय बारू ने 2014 से ठीक पहले ‘द क्रेटेशियस प्राइम मिनिस्टर’ किताब प्रकाशित की तो इसकी टाइमिंग और कंटेंट को लेकर विवाद हुआ। उनकी लेखनी पर भी सवाल उठे। 2019 में किताब पर एक फिल्म भी बनी, जिस पर कई विवाद उठे।

सभी भाषण उर्दू में लिखे गए थे

2014 में अपनी किताब में संजय बारू ने यह भी लिखा था कि भारत के पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह हिंदी में पढ़ नहीं सकते थे। उनके सारे रिकॉर्ड भी अरबी में लिखे गए थे। उन्होंने किताब में लिखा था कि मनमोहन सिंह हिंदी में बोल सकते थे लेकिन देवनागरी लिपि या हिंदी भाषा में कभी कोई पाठ्यपुस्तक नहीं थी। हालांकि, उन्हें अरबी भाषा पर अच्छी पकड़ थी। यही वजह थी कि मनमोहन सिंह ने अपना भाषण अंग्रेजी में दिया। उन्हें अपना पहला हिंदी भाषण तीन दिनों तक अभ्यास करने के लिए दिया गया था।

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मनमोहन सिंह का जन्म कहां हुआ था?

अविभाजित भारत (अब पाकिस्तान) के पंजाब प्रांत के गाह गांव में 26 सितंबर, 1932 को गुरमुख सिंह और अमृत कौर के घर जन्मे सोलोमन सिंह ने 1948 में पंजाब विश्वविद्यालय से अपनी योग्यता परीक्षा पूरी की। अपने विद्वत्तापूर्ण कौशल के कारण वे पंजाब से ब्रिटेन के कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय गए, जहां उन्होंने 1957 में अर्थशास्त्र में प्रथम श्रेणी की ऑनर्स डिग्री हासिल की। ​​इसके बाद मनमोहन सिंह ने 1962 में ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के नफिल्ड कॉलेज से अर्थशास्त्र में डी.फिल की डिग्री हासिल की।

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दिल्ली स्कूल ऑफ आर्ट्स से शिक्षा प्राप्त की

उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय और प्रतिष्ठित दिल्ली स्कूल ऑफ आर्ट्स के संकाय से अपना करियर शुरू किया। उन्होंने सचिवालय में कुछ समय तक काम किया और बाद में 1987 और 1990 के बीच जिनेवा में दक्षिण एशियाई आयोग मुख्यालय के प्रमुख बने। 1971 में, मनमोहन सिंह भारत सरकार के वाणिज्य मंत्रालय में आर्थिक सलाहकार के रूप में शामिल हुए। इसके तुरंत बाद 1972 में उन्हें वित्त मंत्रालय में मुख्य आर्थिक सलाहकार के रूप में नियुक्त किया गया।

उन्होंने कई सरकारी पदों पर काम किया, जिनमें वित्त मंत्रालय के सचिव, योजना आयोग के उपाध्यक्ष, भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर, प्रधानमंत्री के सलाहकार और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष शामिल थे।

मनमोहन सिंह का राजनीतिक करियर

उनका राजनीतिक करियर 1991 में समाजवादी पार्टी के सदस्य के रूप में शुरू हुआ, जहाँ वे 1998 से 2004 तक पार्टी के नेता रहे। दिलचस्प बात यह है कि दो बार के प्रधानमंत्री ने अपनी 33 साल की संसदीय पारी की शुरुआत केवल राज्यसभा सदस्य के रूप में की। उन्होंने कभी कोई गैर-बाध्यकारी चुनाव नहीं जीता और एक बार 1999 में दक्षिण दिल्ली इलेक्ट्रॉनिक्स क्षेत्र से भाजपा के वीके सिंह से हार गए।

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