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India News (इंडिया न्यूज़), Rana Yashwant: जी-20 की बैठक में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की जगह चीनी प्रधानमंत्री ली कियांग हिस्सा लेंगे। कहने का मतलब ये कि शिखर बैठक में शी जिनपिंग नहीं आ रहे हैं। हाल ही में संपन्न हुए ब्रिक्स सम्मेलन में जिनपिंग ने हिस्सा लिया तो उन्हें भारत आने में क्या दिक्कत थी। इसको लेकर तरह तरह के अनुमान लगाए जा रहे हैं। इसका एक कारण चीन की तरफ से हाल ही में जारी किया गया नक्शा बताया जा रहा है। इस नक्शे में चीन ने भारत के अक्साई चिन और अरुणाचल प्रदेश को अपना हिस्सा दिखाया है।
भारत ने इसका कड़ा प्रतिरोध किया और चीन के नक्शे को सिरे से खारिज कर दिया। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा कि दूसरे देशों के इलाके को अपने नक्शे पर दिखाकर उन्हें अपना बताना चीन की पुरानी आदत है। वह पहले भी ऐसा कर चुका है। मसला सिर्फ भारत का ही नहीं है। चीन ने अपने नक्शे में रुस के इलाके को भी दिखाया है। रुस ने ना सिर्फ चीन के दावे को खारिज किया बल्कि यह भी कहा कि नक्शा 2005 में विवाद को खत्म करने के लिए दोनों देशों के बीच हुए समझौते के खिलाफ है। भारत रुस के अलावा नए नक्शे में चीन ने ताइवान को भी अपना हिस्सा बताया है। इंडोनेशिया, फिलीपींस, मलेशिया, नेपाल जैसे देशों के हिस्सों पर भी चीन ने अपना अधिकार जताया है। ये सभी देश अपना विरोध जता चुके हैं।
माना ये जा रहा है कि अगर शी जिनपिंग जी 20 की बैठक में आते तो संभव है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 20 के सदस्य देशों के अलावा बाकी जिन देशों के बुलाया गया है। उनके सामने यह मुद्दा उठा सकता था। इसका अंदेशा जिनपिंग को था, इसलिए उन्होंने शिखर बैठक से खुद को दूर कर लिया। अभी हाल ही में ब्रिक्स की बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी औऱ चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मुलाकात हुई थी औऱ दोनों नेताओं ने सीमा विवाद को सुलझाने पर बातचीत की थी. इस बातचीत से कुछ ही दिन बाद चीन ने नक्शा जारी कर दिया।
मतलब साफ है कि शी जिनपिंग शीर्ष स्तर पर जो बात कह रहे हैं, उस पर वे खुद अमल नहीं कर रहे हैं। यानी मुंह में राम बगल में छुरी वाली मानसिकता लेकर चीन भारत के साथ चल रहा है। जिनपिंग को यह भी लग रहा होगा कि पश्चिमी देश नक्शे को लेकर भारत की तरफ से उनसे सवाल कर सकते हैं। अगर आप गौर करें तो भारत को जब से जी-20 की अध्यक्षता मिली है तब से चीन को यह बात पसंद नहीं आ रही है। दिल्ली में होने जा रही शिखर बैठक से पहले देश के अलग अलग हिस्सों में सदस्य देशों की बैठकें चलती रही। इस दौरान अरुणाचल प्रदेश और जम्मू कश्मीर में भी बैठकें हुईं। इन दोनों बैठकों में चीन शरीक नहीं हुआ। इससे उसकी नीयत का अंदाजा लगा सकते हैं।
चीन ने तो तभी एतराज किया था जब भारत ने जी-20 का मोटो मोटो ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ जारी किया था। चीन का कहना था कि भारत ने संस्कृत भाषा में मोटो तैयार किया है और संस्कृत संयुक्त राष्ट्र की मान्य भाषा नहीं है। जी-20 अंतर्राष्ट्रीय मंच है, इसमें गैर संयुक्त राष्ट्र भाषा का इस्तेमाल नहीं होना चाहिए। भारत की अध्यक्षता में हो रहे दुनिया के बीस बड़े देशों की बैठक पर चीन इस तरह से भी सवलाल करता रहा है। जाहिर है जिनपिंग के नहीं आने के कारण भले ही साफ नहीं हैं लेकिन भारत के विरोध औऱ इतने बड़े मंच पर अपनी फजीहत से जिनपिंग बचना चाहते होंगे, इसलिए चीन की तरफ से कहा गया कि राष्ट्रपति हिस्सा नहीं ले सकेंगे।
जिनपिंग के लिए एक सवाल और था जिसका जवाब उनको सूझ नहीं रहा होगा। यूक्रेन युद्द पर अमेरिका, इंग्लैंड, फ्रांस औऱ जर्मनी जैसे देशों की तरफ से अपना स्टैंड साफ करने का दबाव चीन पर बनाया जा सकता था। सवाल रखे जा सकते थे, रुसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन नहीं आ रहे हैं। ऐसे में पश्चिमी देशों के सामना जिनपिंग को अकेले करना पड़ता औऱ यह स्थिति उनके लिए असहज होती।
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