India News (इंडिया न्यूज), New Delhi, अजीत मेंदोला: आम चुनाव के दूसरे चरण की वोटिंग ने राजनीतिक दलों के साथ राजनीतिक पंडितों को भी खासा दुविधा में डाल दिया है।सत्ताधारी राजग खेमे ने राजस्थान,छत्तीसगढ़ जैसे हिंदी बेल्ट में थोड़ी सी वोटिंग बढ़ने से राहत की सांस ली है,लेकिन वहीं उत्तर प्रदेश,मध्यप्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में कम वोटिंग ने चिंता बढ़ाई हुई है।महाराष्ट्र का वोटिंग ट्रेंड भी भ्रमित कर रहा है।हालांकि असम और बाकी उत्तर पूर्वी राज्य, बंगाल,त्रिपुरा जैसे राज्यों में रिकार्ड मतदान से राजग में उत्साह है।लेकिन हिंदी बेल्ट में तो 2019 के मुकाबले 7 से 8 प्रतिशत कम वोटिंग होना चौंका रहा है।हालांकि विपक्ष हिन्दी बेल्ट में कम वोटिंग में अपने लिए उम्मीदें तलाश रहा है।लेकिन यह कहना बड़ा मुश्किल है कि कम वोटिंग से क्या वाकई विपक्ष को फायदा हो रहा है।क्योंकि ऐसी वोटिंग हो रही है जिसको लेकर किसी भी प्रकार का आंकलन खतरे से खाली नहीं होगा।इसकी एक वजह यह भी है कि हिंदी बेल्ट में विपक्ष न तो पूरी ताकत से चुनाव लड़ता दिख रहा है और ना ही राजग के खिलाफ ऐसी कोई लहर है जिससे यह माना जाए कि वोटिंग खिलाफ हुई है।
ऐसे में मतदाताओं में चुनाव को लेकर किसी प्रकार का उत्साह नहीं होना लोकतंत्र के लिए भी ठीक नहीं है।इसके लिए पूरी तरह से राजनीतिक दल ही जिम्मेदार हैं।राजनीतिक दल ऐसा माहौल नहीं बना पाए जिससे वोटर उत्साहित होते। कम वोटिंग सत्ताधारी दल के लिए नुकसानदायक इसलिए मानी जा रही है क्योंकि पुराने ट्रेंड यही बताते हैं।लेकिन वहीं गैर हिंदी भाषी राज्यों में वोटिंग के ज्यादा होने को क्या फिर सत्ताधारी दल के पक्ष में माना जाएगा।इसलिए इस बार चुनाव किस ओर जा रहा है कह पाना बड़ा मुश्किल हो गया है।लेकिन इतना जरूर है कि बीजेपी अब हर चरण में रणनीति और मुद्दे बदलने की कोशिश करेगी।क्योंकि पहले चरण के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पूरी बीजेपी ने प्रचार का तरीका और मुद्दे बदल दिए थे।
पहले चरण की वोटिंग से पहले तक प्रधानमंत्री मोदी अब की बार 400 पार और मोदी की गारंटी पर जोर देते थे,लेकिन वोटिंग के बाद पूरा कैंपेन बदल दिया।कई तरह की खबरें।एक तो यही है कि बीजेपी के कार्यकर्ता निश्चिंत हो गए और दूसरा संविधान बदल आरक्षण खत्म करने को विपक्ष तूल देने लगा।सबसे अहम संघ भी 400 पार के नारे और मोदी की गारंटी से सहमत नहीं था।कहा जा रहा है संघ के दखल और विपक्ष की रणनीति भांप प्रधानमंत्री मोदी ने दूसरे चरण के लिए मुद्दे और कैंपेन को बदल चुनाव को दूसरे मोड पर ले गए।दूसरे दौर में प्रधानमंत्री मोदी ने चुनाव को पूरी तरह से सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की पिच में खेलना शुरू कर दिया।पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के यूपीए शासन के समय दिए बयानों, कांग्रेस के घोषणा पत्र में अल्पसंख्यकों के लिए किए गए वायदों ,मंगल सूत्र को मुद्दा बना चुनाव पूरी तरह से हिंदू मुस्लिम पिच पर खेला जाने लगा।बीजेपी जो चाहती थी वही हुआ।
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400 पार का नारा औरआरक्षण खत्म करने जैसे मुद्दे कमजोर पड़ गए।राहुल गांधी की टिप्पणियां निशाने पर आ गई।प्रधानमंत्री मोदी ने भी नामदार और कामगार को फिर मुद्दा बना दिया।उधर उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ ने भी कांग्रेस के घोषणा पत्र को आधार बना सरीहत कानून को मुद्दा बना चुके हैं।उत्तर प्रदेश में बीजेपी के लिए जात पात की राजनीति का तोड़ धर्म और तुष्टिकरण ही एक मात्र हथियार है ।हैरानी की बात यह है कि उत्तर प्रदेश में अयोध्या का मुद्दा अब कारगर नहीं दिख रहा है या बीजेपी से कोई रणनीतिक चूक हो गई है।
हिंदी भाषी राज्यों में बीजेपी के लिए सबसे अहम उत्तर प्रदेश और बिहार की बची हुई सीट हैं।आने वाले चरणों में मुख्य नजर उत्तर प्रदेश पर रहने वाली है।उत्तर प्रदेश की बची सीटों से ही 2024 की असली तस्वीर साफ होगी।क्योंकि बीजेपी को सबसे ज्यादा उम्मीदें उत्तर प्रदेश से ही हैं।इसलिए आने वाले दिनों में एक बार फिर चुनावी मुद्दे बदल सकते हैं।दूसरे चरण में सबसे ज्यादा कम वोटिंग उत्तर प्रदेश में ही हुई है।
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उत्तर प्रदेश में अभी तक दो चरणों की वोटिंग ने बहुत निराश किया।उत्तर प्रदेश की स्थिति लगभग वही है जो बाकी राज्यों की रही।वोटिंग को लेकर कोई विशेष उत्साह नहीं है।किसी प्रकार की कोई लहर भी नहीं है।ऐसे में कम वोटिंग को लेकर आंकलन लगाना मुश्किल हो गया।क्योंकि सत्ता पक्ष के खिलाफ भी न तो लहर है और ना ही कोई बात हो रही है।मुस्लिम मतदाताओं ने दूसरे चरण में वोटिंग ज्यादा जरूर की,लेकिन एक तरफा वाली वोटिंग नहीं हुई है।बीजेपी खेमे एक ही चिंता है कि जातीय राजनीति कहीं फिर से जोर न पकड़ ले।क्योंकि राजस्थान के पहले चरण में जातीय राजनीति के चलते ही कुछ सीट पर बीजेपी को नुकसान हो सकता है।लेकिन दूसरे चरण में स्थिति बदली हुई दिखी।
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बीजेपी के पक्ष में माहौल दिखाई दिया।बीजेपी को अगर नुकसान हुआ तो प्रत्याशी के चलते ही होगा।राजस्थान का ही उदाहरण लें तो चुरू, झुंझुनूं, सीकर, दौसा, टोंक सवाई माधोपुर में प्रत्याशियों की ही कमजोरी की वजह से हार होगी।हो सकता है कि ऐसा ही कुछ राज्यों में हो,लेकिन फिलहाल 2024 का आम चुनाव पहला ऐसा चुनाव होने जा रहा है जिसके परिणाम चौंकाने वाले हो सकते हैं।मतलब जो समझा जा रहा है उसके ठीक उल्ट भी हो सकते हैं।
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