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India News (इंडिया न्यूज), Global Climate Change: वैश्विक जलवायु परिवर्तन की वजह से पुरा विश्व इस वक्त परेशान है। यह एक ऐसी समस्या है जो दिन प्रतिदिन मनुष्यों के भविष्य के लिए खतरा बनते जा रही है। कहीं बे वक्त बारिश हो रहा है, तो वहीं दूसरी तरफ दुनिया भर में मौजूद ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं। इस बीच हिमालय पर्वत जिसको विशाल ग्लेशियरों और बर्फ की चोटियों की वजह से “तीसरा ध्रुव” कहा जाता है। जो शारीरिक और सामाजिक दोनों रूप से वैश्विक जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रति अत्यधिक संवेदनशील हैं। इसरो ने सोमवार (22 अप्रैल) को कहा कि दशकों की उपग्रह इमेजरी का विश्लेषण करने वाले नए शोध से पता चला है कि भारतीय हिमालय क्षेत्र में ग्लेशियर खतरनाक दर से पिघल रहे हैं। जिससे हिमनद झीलों का महत्वपूर्ण विस्तार हो रहा है।
बता दें कि, दुनिया भर में किए गए शोध से पता चला है कि 18वीं शताब्दी में औद्योगिक क्रांति की शुरुआत के बाद से पूरी दुनिया में ग्लेशियरों के पीछे हटने और पतले होने की अभूतपूर्व दर का अनुभव हो रहा है। इसरो ने सोमवार को एक बयान में कहा कि इस वापसी से हिमालय क्षेत्र में नई झीलों का निर्माण होता है और मौजूदा झीलों का विस्तार होता है। ग्लेशियरों के पिघलने से बनी ये जलराशि हिमनदी झीलों के रूप में जानी जाती हैं। हिमालय क्षेत्र में नदियों के लिए मीठे पानी के स्रोत के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। खैर वे महत्वपूर्ण जोखिम भी पैदा करते हैं, जैसे कि ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड जिसके निचले इलाकों में समुदायों के लिए विनाशकारी परिणाम हो सकते हैं। इसरो ने शोध के लिए साल 1984 से 2023 तक उपग्रह डेटा का उपयोग किया।
बता दें कि, इसरो की शोध में पता चला है कि साल 2016-17 में नदी घाटियों में पहचाने गए 10 हेक्टेयर से अधिक बड़े 2,431 हिमनद झीलों में से 1984 के बाद से 676 झीलें उल्लेखनीय रूप से बढ़ी हैं। जिसमें भारत की 130 झीलें शामिल हैं। इसरो ने कहा कि 676 विस्तारित झीलों में से अधिकांश मोराइन-बांधित (307) हैं। इसके अलावा कटाव (265), अन्य (96), और बर्फ-बांधित (8) हिमनदी झीलें हैं। एजेंसी के अनुसार परिवर्तन बहुत बड़े पैमाने पर हुआ हैं। जिसमें 601 विस्तारित झीलों का आकार दोगुने से भी अधिक हो गया है। दस झीलें 1.5 से 2 गुना बड़ी हो गईं, जबकि 65 झीलें 1.5 गुना बढ़ गईं। विश्लेषण में कई उभरी हुई झीलें अधिक ऊंचाई पर पाई गईं, जिनमें से 314 4,000-5,000 मीटर के बीच और 296 5,000 मीटर से ऊपर थीं।
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