इंडिया न्यूज, नई दिल्ली, (Gurkha Of Pak-China) : गोरखा पाक-चीन की चाल से बेखबर नहीं है। लेकिन गोरखाओं में अग्निवीर को लेकर संशय बना हुआ है। अगर उन्हें भारत की ओर से भरोसा मिला तो उन्हें अग्निवीर बनने में कोई परेशानी नहीं होगी। नेपाल के गोरखा, जिनकी बहादुरी को लेकर भारतीय सेना के भूतपूर्व थल सेनाध्यक्ष, फील्ड मार्शल सैम होर्मूसजी फ्रेमजी जमशेदजी मानेकशॉ ने कहा था कि अगर कोई यह कहता है कि मुझे मौत से डर नहीं लगता है तो वह या तो झूठ बोल रहा है, या फिर वह गोरखा है।
मानेकशॉ के इन शब्दों पर गोरखा आज भी खरे उतरते हैं। भारतीय सेना के अग्निपथ स्कीम पर नेपाल, भरोसा नहीं कर पा रहा है। उसे चिंता है कि चार साल बाद गोरखाओं का क्या होगा। वहीं दो पड़ोसी मुल्क, चीन और पाकिस्तान ऐसी साजिशों में लगे हैं कि नेपाल के गोरखा, इंडियन आर्मी का मोह त्याग दें। हालांकि पड़ोसियों की चाल से गोरखा बेखबर नहीं हैं।
वह इससे भली भांति परिचित है। इसे लेकर भारतीय सेना के प्रमुख मनोज पांडे अपनी पांच दिवसीय यात्रा पर नेपाल में हैं। यह उम्मीद जताई जा रही है कि वे अग्निपथ पर नेपाल की तमाम शंकाओं का निवारण करेंगे। अगर नेपाल को यह भरोसा मिल जाता है कि चार साल के बाद गोरखाओं को किसी भी दूसरी सरकारी सेवा में नियमित किया जाएगा तो वे अग्निवीर बनने के लिए तैयार हो सकते हैं।
भारतीय सुरक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि नेपाल के गोरखाओं में अग्निपथ को लेकर वैसा ही संशय बना हुआ है जैसे शुरूआत में भारतीय युवाओं के जेहन में था। लेकिन भारतीय युवा इसे समझे और अग्निवीर में भर्ती के लिए तैयार हो गए। नेपाल में गोरखा, इस मामले में उतना चिंतित नहीं हैं, जितना कि वहां के राजनीतिक दल इसे लेकर अशांत दिख रहे है। सैन्य मामलों के विशेषज्ञ और एक्स-सर्विसमैन ग्रीवांस सेल के अध्यक्ष साधू सिंह ने बताया कि भारत सरकार को इस मामले में पूरी गंभीरता दिखानी होगी।
केंद्र सरकार ने जब अग्निपथ योजना का खाका तैयार किया तो उसकी भनक तक नेपाल को नहीं लगने दी। बेहतर यही होता कि नेपाल से एक बार विचार विमर्श कर लिया जाता तो ऐसी स्थिति नहीं बनती। इस मामले में भारत से चूक हुई है। नेपाल के गोरखाओं को अग्निपथ से वापस आने के बाद उनका ‘करियर सेटल’ होने की गारंटी चाहिए।
यदि 25 फीसदी अग्निवीरों को नियमित होने का मौका मिलेगा, तो उसमें नेपाल के गोरखा पिछड़ जाएंगे। सभी गोरखा नियमित होंगे, ऐसा नहीं कहा जा सकता। अब तो पेंशन भी नहीं है। बतौर संधू, भारत सरकार को इस बाबत नेपाल को भरोसा देना चाहिए। अगर अग्निपथ योजना में बदलाव संभव नहीं है तो कम से कम, गोरखाओं को चार साल के बाद किसी दूसरी नौकरी में स्थायित्व की गारंटी देना तो बनता ही है।
नेपाल में अग्निपथ को 1947 के समझौते की भावना के खिलाफ बताया जा रहा है। गोरखा, भारतीय सेना का हिस्सा रहे हैं। इसके पीछे केवल, समझौता है, यह कहना भी ठीक नहीं होगा। गोरखाओं को भारतीय सेना में अच्छा वेतन और आकर्षक पेंशन मिलती रही है। इतना ही नहीं, सेना से आने के बाद उन्हें दूसरे सरकारी महकमों में भी जॉब मिल जाती है। इन सबके चलते ही गोरखा, भारत व ब्रिटेन की सेना में शामिल होते हैं।
गोरखाओं ने अपने शौर्य को साबित किया है। उन्हें जहां भी भेजा जाता है, वे वहां से विजयी हुए बिना वापस नहीं लौटते। भारतीय सेना में इनकी वफादारी, निष्ठा और ईमानदारी के चर्चे सुने जा सकते हैं। भारतीय सेना में 43 गोरखा बटालियनें हैं, ये कोई छोटी संख्या नहीं है। अगर ये भारतीय सेना का हिस्सा नहीं रहती है तो उसका असर अवश्य देखने को मिलेगा।
भारतीय सेना प्रमुख जनरल मनोज पांडे, रविवार को अपने पांच दिवसीय दौरे पर नेपाल पहुंच गए हैं। उनका प्रयास है कि नेपाल के राजनीतिक दलों, सामान्य जन और सेना भर्ती की तैयारी में जुटे युवाओं का भ्रम दूर किया जाए। नेपाल सेना प्रमुख प्रभु राम शर्मा के निमंत्रण पर नेपाल पहुंचे मनोज पांडे का राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी और प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा सहित कई प्रमुख लोगों से मुलाकात का कार्यक्रम तय किया गया है।
उनके इस दौरे के दौरान उन्हें नेपाली सेना के मानद जनरल रैंक से नवाजा जाएगा। जनरल मनोज पांडे का नेपाल दौरा उस समय हो रहा है, जब नेपाल ने पिछले दिनों बुटावल और धारन में गोरखा सैनिकों की भर्ती को रोक लगा दी थी। नेपाल के राजनीतिक दलों का कहना है कि वे भारत से अग्निपथ को लेकर स्पष्टता चाहते हैं।
नेपाल, ब्रिटेन और भारत के बीच, त्रिपक्षीय समझौता है। उसी समझौते के तहत सेना भर्ती होनी चाहिए। चार साल के बाद अगर गोरखाओं को दूसरी जॉब नहीं मिली तो क्या होगा। भारत को इस पर ध्यान देना चाहिए। यह ठीक है कि गोरखाओं की भावना, भारतीय सेना के साथ जुड़ी हुई है। वे चीन या पाकिस्तान के बहकावे में नहीं आएंगे। लेकिन चार वर्ष बाद, अगर गोरखाओं को काम की तलाश करनी पड़ी तो उनका दुरुपयोग संभव है।
वह सुरक्षा बलों और देश के खिलाफ भी हो सकते है। ऐसी स्थिति पर गौर अवश्य करना चाहिए। नेपाल में रह रहे पूर्व सैनिकों की इस बात का समर्थन, साधू सिंह ने भी किया। उन्होंने कहा कि पता नहीं ऐसा क्यों लगने लगा है कि जैसे भारत सरकार, गोरखा भर्ती को लेकर ज्यादा परेशान नजर नहीं आ रही है। साधू सिंह यह भी कहते हैं कि जनरल मनोज पांडे की नेपाल यात्रा सार्थक रहेगी। वे कोई न कोई न समाधान अवश्य निकाल लेंगे और इस समस्या का समाधान हो जाएगा।
ये भी पढ़े : असम में जनता ने गिराई आतंक की पाठशाला, जिहादी गतिविधियां चलाए जाने का आरोप
ये भी पढ़े : सड़क सुरक्षा में सुधार के लिए मानसिकता बदलना जरूरी : नितिन गडकरी
ये भी पढ़े : DCGI ने भारत की पहली नेजल वैक्सीन को इमरजेंसी इस्तेमाल के लिए दी मंजूरी
हमें Google News पर फॉलो करे- क्लिक करे !
Connect With Us : Twitter | Facebook | Youtube
Get Current Updates on, India News, India News sports, India News Health along with India News Entertainment, and Headlines from India and around the world.