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हरिद्वार में मां गंगा के नीचे मिली ऐसी चीज़, देख के लोगो के उड़ गए होश, वीडियो देख यकीन नहीं होगा?

Prachi Jain • LAST UPDATED : October 22, 2024, 12:21 pm IST
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हरिद्वार में मां गंगा के नीचे मिली ऐसी चीज़, देख के लोगो के उड़ गए होश, वीडियो देख यकीन नहीं होगा?

Haridwar Railway Track Under Ganga: सोशल मीडिया पर इन पटरियों की तस्वीरें और वीडियो वायरल होने के बाद, कई तरह के दावे किए जा रहे हैं। कुछ लोग मान रहे हैं कि यह छोटी ट्रेनों के चलने का प्रमाण है, जबकि कुछ इसे पानी में चलने वाले वाहन से जोड़कर देख रहे हैं।

India News (इंडिया न्यूज), Haridwar Railway Track Under Ganga: हरिद्वार में गंगा नहर की सफाई के लिए पानी को रोके जाने के बाद, हर की पैड़ी और वीआईपी घाट जैसे प्रसिद्ध स्थलों का नजारा पूरी तरह बदल गया है। जहां पहले गंगा की धारा प्रवाहित होती थी, वहां अब सूखी तलहटी दिखाई दे रही है। इसी तलहटी में कुछ ऐसी चीजें सामने आई हैं जो लोगों के बीच जिज्ञासा और चर्चा का विषय बन गई हैं—गंगा की तलहटी से रेलवे ट्रैक जैसी पटरियां नजर आ रही हैं।

पटरियों की उत्पत्ति और ऐतिहासिक महत्व

हरिद्वार के इतिहास के जानकारों के अनुसार, ये पटरियां किसी रेलवे लाइन का हिस्सा नहीं हैं, बल्कि ब्रिटिश काल के दौरान गंग नहर के निर्माण के समय इस्तेमाल की गई थीं। 1850 के आसपास जब गंग नहर का निर्माण कार्य हो रहा था, तो इस क्षेत्र में ट्रैक पर चलने वाली हाथगाड़ियों का उपयोग निर्माण सामग्री ढोने के लिए किया जाता था। ये पटरियां उसी समय की यादगार हैं। भीमगौड़ा बैराज से लेकर डाम कोठी तक का डैम और तटबंध निर्माण के दौरान इन पटरियों का इस्तेमाल किया गया था।

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इतिहासकार प्रोफेसर डॉ. संजय महेश्वरी के अनुसार, गंग नहर का निर्माण लॉर्ड डलहौजी के समय में किया गया था, और इसे इंजीनियर कोटले के सुपरविजन में तैयार किया गया था। ब्रिटिश काल के इस तरह के निर्माण कार्य आधुनिक भारत के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। यह परियोजना उस समय की बड़ी तकनीकी उपलब्धियों में से एक थी, और इस नहर के निर्माण के दौरान इन पटरियों का उपयोग अंग्रेज अफसरों के निरीक्षण के लिए भी किया जाता था।

सोशल मीडिया और जनता की उत्सुकता

सोशल मीडिया पर इन पटरियों की तस्वीरें और वीडियो वायरल होने के बाद, कई तरह के दावे किए जा रहे हैं। कुछ लोग मान रहे हैं कि यह छोटी ट्रेनों के चलने का प्रमाण है, जबकि कुछ इसे पानी में चलने वाले वाहन से जोड़कर देख रहे हैं। हालांकि, यह स्पष्ट हो चुका है कि ये पटरियां गंग नहर के निर्माण के दौरान इस्तेमाल की गई हाथगाड़ियों का हिस्सा थीं।

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भारत की पहली रेल लाइन का संदर्भ

इतिहासकारों के अनुसार, रुड़की और कलियर के पास भारत की पहली रेल लाइन बिछाई गई थी। हालांकि, इसे आधिकारिक रूप से पहली रेलवे लाइन के रूप में मान्यता नहीं मिली। इस प्रकार, हरिद्वार के ये पटरियां भी ब्रिटिश काल के तकनीकी नवाचारों का हिस्सा मानी जा सकती हैं, जो उस समय के बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए इस्तेमाल की गई थीं।

गंगा नहर की सफाई और इसके प्रभाव

हर साल यूपी सिंचाई विभाग द्वारा गंग नहर को मेंटेनेंस के लिए बंद किया जाता है। इस दौरान गंगा का पानी सूख जाने से घाटों का दृश्य पूरी तरह बदल जाता है, और गंगा की तलहटी में छिपे हुए रहस्य सामने आने लगते हैं। इस बार पटरियों का सामने आना न केवल ऐतिहासिक महत्व रखता है, बल्कि यह ब्रिटिश काल की निर्माण प्रक्रिया की एक झलक भी प्रस्तुत करता है।

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इस प्रकार, हरिद्वार में गंगा के तट पर नजर आने वाली ये पटरियां आधुनिकता और इतिहास का संगम हैं, जो हमें हमारे अतीत की तकनीकी प्रगति की याद दिलाती हैं।

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