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India News (इंडिया न्यूज),Manmohan Singh: पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का राजनीति में आने का कोई इरादा नहीं था। वह संयुक्त राष्ट्र में बेहतरीन काम कर रहे थे। उन्हीं दिनों भारत के विदेश मंत्री ललित नारायण मिश्रा ने उनकी प्रतिभा को पहचाना और उन्हें भारत बुलाकर अपने मंत्रालय में सलाहकार नियुक्त किया। इसके बाद धीरे-धीरे मनमोहन सिंह के कदम राजनीति की ओर बढ़े और आखिरकार 2004 से 2014 तक उन्होंने भारत के 13वें प्रधानमंत्री के तौर पर काम किया। वह भारत के पहले सिख प्रधानमंत्री थे। इसके अलावा वह कांग्रेस के दूसरे ऐसे नेता भी बने, जिन्होंने प्रधानमंत्री के तौर पर लगातार दो कार्यकाल पूरे किए। उनसे पहले यह उपलब्धि देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के नाम थी।
ब्रिटिश भारत के पश्चिमी पंजाब (अब पाकिस्तान) में जन्मे मनमोहन सिंह के माता-पिता 1947 में बंटवारे के दौरान भारत के अमृतसर आ गए थे। उस वक्त उनकी उम्र महज 18 साल थी। चूंकि बचपन में ही उनकी मां का निधन हो गया था, इसलिए उनका पालन-पोषण उनकी दादी ने किया। वह उर्दू में लिखे भाषणों को हिंदी में पढ़ते थे। मनमोहन सिंह की शिक्षा उर्दू माध्यम से हुई थी। इसीलिए प्रधानमंत्री बनने के बाद भी वे उर्दू में लिखी स्क्रिप्ट पढ़कर भाषण देते थे। कई बार वे गुरुमुखी का भी इस्तेमाल करते थे। भारत आने के बाद उनकी शिक्षा हिंदू कॉलेज, अमृतसर में हुई। इसके बाद उन्होंने पंजाब यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्र की पढ़ाई की। 1954 में पोस्ट ग्रेजुएशन पूरा करने के बाद वे 1957 में कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी चले गए। वहां से लौटने के बाद मनमोहन सिंह 1957 से 1959 तक पंजाब यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्र के लेक्चरर रहे।
1960 में उन्होंने ऑक्सफोर्ड से अर्थशास्त्र में डी.फिल किया और फिर वापस आकर 1965 तक पंजाब यूनिवर्सिटी में सेवाएं दीं। उन्होंने 1966-1969 तक यूएन में काम किया। इस दौरान वे भारत के विदेश मंत्री ललित नारायण मिश्रा के अनुरोध पर भारत आए। यहां वे 1972-1976 तक मुख्य आर्थिक सलाहकार, 1982-1985 तक रिजर्व बैंक के गवर्नर और 1985-1987 तक योजना आयोग के प्रमुख रहे। योजना आयोग में अपने कार्यकाल के बाद मनमोहन सिंह 1987 से नवंबर 1990 तक दक्षिण आयोग के महासचिव रहे।
यह संस्था एक स्वतंत्र आर्थिक नीति थिंक टैंक के रूप में काम करती है और इसका मुख्यालय जिनेवा में है। नवंबर 1990 में वे जिनेवा से लौटे और तत्कालीन चंद्रशेखर सरकार में प्रधानमंत्री के सलाहकार के रूप में काम किया। संयोग से इसी दौरान 1991 में देश में गंभीर आर्थिक संकट की स्थिति पैदा हो गई थी। उस समय तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव ने उन्हें वित्त मंत्री बनाया और मनमोहन सिंह के प्रयासों से देश बहुत जल्द इस संकट से बाहर आ गया।
उस समय उनकी उदार नीतियों की वैश्विक स्तर पर सराहना हुई थी। इसके बावजूद 1996 में कांग्रेस पार्टी लोकसभा चुनाव हार गई। इस दौरान वे राज्यसभा के लिए चुने गए और 1998 से 2004 तक राज्यसभा में विपक्ष के नेता की भूमिका निभाई। 2004 में जब कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए गठबंधन सत्ता में आई तो काफी जद्दोजहद के बाद सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री पद के लिए अपनी उम्मीदवारी छोड़ दी और मनमोहन सिंह का नाम आगे कर दिया।
उस समय मनमोहन सिंह ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली और एनआरएचएम, यूआईडी, ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना और सूचना का अधिकार अधिनियम समेत कई कानून बनाए। उन्होंने अपने पहले कार्यकाल के आखिरी साल में अमेरिका के साथ परमाणु समझौता किया। इसके चलते वामपंथी दलों ने अपना समर्थन वापस ले लिया और सरकार गिर गई। फिर 2009 में लोकसभा चुनाव हुए और इस बार भी यूपीए की जीत हुई और मनमोहन सिंह दोबारा पीएम बने।
हालांकि, इस कार्यकाल के दौरान कॉमनवेल्थ गेम्स 2010, 2जी स्पेक्ट्रम, कोल ब्लॉक आवंटन जैसे बड़े घोटाले सामने आए और बतौर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की खूब आलोचना हुई। मनमोहन सिंह भले ही 10 साल तक प्रधानमंत्री रहे, केंद्र सरकार में मंत्री रहे, लेकिन उन्होंने कभी लोकसभा चुनाव नहीं लड़ा। वे 1991 से 2019 तक असम से राज्यसभा सांसद चुने गए हैं। हालांकि, 2019 में वे राजस्थान से चुनकर राज्यसभा पहुंचे।
मनमोहन सिंह ने 1958 में गुरशरण कौर से शादी की। उनकी तीन बेटियां हैं। वित्त मंत्री और प्रधानमंत्री के तौर पर मनमोहन सिंह की सबसे बड़ी उपलब्धि लाइसेंस राज को खत्म करना था। दरअसल, यह लाइसेंस राज देश की धीमी अर्थव्यवस्था का मुख्य कारण था और इसे खत्म करते ही देश की अर्थव्यवस्था तेजी से पटरी पर आ गई। मनमोहन सिंह ने भारतीय अर्थव्यवस्था को उदार बनाया।
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