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भारत में कोयले का पर्याप्त भंडार, फिर बिजली किल्लत क्यों ?

PUBLISHED BY: India News Desk • LAST UPDATED : May 2, 2022, 1:33 pm IST
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भारत में कोयले का पर्याप्त भंडार, फिर बिजली किल्लत क्यों ?

इंडिया न्यूज:
ऊर्जा के प्रमुख स्रोत के रूप में कोयला अत्यन्त महत्वपूर्ण है। यह एक ठोस कार्बनिक पदार्थ है। इसका इस्तेमाल ईंधन के रूप में किया जाता है। कुल प्रयुक्त ऊर्जा का 35 फीसदी से 40 फीसदी भाग कोयले से प्राप्त होता है। कोयले से अन्य दहनशील तथा उपयोगी पदार्थ प्राप्त किए जाते हैं।

ऊर्जा के अन्य स्रोतों में पेट्रोलियम तथा उसके उत्पाद का नाम सर्वोपरि है। लेकिन आज के समय में भारत में ही कोयले का संकट देखने को मिल रहा है। इसके चलते जनता को बिजली किल्लत से भी जूझना पड़ रहा है। तो चलिए जानते हैं क्यों भारत में कोयले का संकट गहरा रहा है? इसकी वजह क्या है।

कैसे बना कोयला ?

बताया जाता है कि करीब 30 करोड़ साल पहले धरती पर घने जंगल हुआ करते थे। बाढ़ और तेज बारिश की वजह से ये जंगल जमीन में दबते चले गए। जैसे-जैसे समय गुजरता चला गया। वैसे-वैसे ये जमीन के और अंदर धंसते चले गए। बाद में यही कोयला बना। चूंकि ये पेड़-पौधों के अवशेषों से मिलकर बना है, इसलिए इसे जीवाश्म ईंधन भी कहा जाता है।

भारत में कोयले खनन की शुरुआत कहां से हुई ?

भारत में कोयला का पर्याप्त भंडार फिर बिजली किल्लत क्यों

  • भारत दुनिया के उन पांच देशों (अमेरिका, रूस, ऑस्ट्रेलिया, चीन और भारत) में से एक है जहां कोयले के सबसे बड़े भंडार हैं। भारत में पहली बार ईस्ट इंडिया कंपनी ने पश्चिम बंगाल के रानीगंज के जहांनारायणकुड़ी इलाके में 1774 में कोयले का खनन शुरू हुआ। वहीं 1853 में भाप से चलने वाली गाड़ियों के आरम्भ होने से कोयले की मांग बढ़ने लगी और खनन को प्रोत्साहन मिला।
  • 19वीं शताब्दी के अन्त तक भारत में उत्पादन 6.12 मिलियन टन वार्षिक हो गया, और सन् 1920 तक 18 मिलियन मेट्रिक टन वार्षिक। प्रथम विश्वयुद्ध के समय उत्पादन में सहसा वृद्धि हुई किन्तु 1930 के आरम्भिक दशक में फिर से उत्पादन में कमी आ गयी। सन् 1942 तक उत्पादन 29 मिलियन मेट्रिक टन प्रतिवर्ष तथा 1946 तक 30 मिलियन मेट्रिक टन हो गया। भारत में विश्व का 4.7 फीसदी कोयले का उत्पादन होता है।

कोयला खदानों का राष्ट्रीयकरण कब हुआ?

भारत अपनी ऊर्जा जरूरतों का 70 फीसदी से अधिक कोयला संचालित संयंत्रों से ही हासिल करता है। सन् 1970 के बाद कोयला खदानों का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया और कोयले के खनन का काम ज्यादातर काम सरकारी कंपनियों के पास चला गया। भारत में 90 फीसदी से अधिक कोयले का उत्पादन कोल इंडिया करती है। कुछ खदानें बड़ी कंपनियों को भी दी गई हैं, इन्हें कैप्टिव माइन्स कहा जाता है। इन कैप्टिव खदानों का उत्पान कंपनियां अपने संयंत्रों में ही खर्च करती हैं।

भारत में सबसे बढ़ा कोयला भंडार कहां पर?

भारत में कोयला का पर्याप्त भंडार फिर बिजली किल्लत क्यों

कहते हैं कि 2021-22 में भारत में 77.76 करोड़ टन कोयले का उत्पादन हुआ था, जिसमें से 62.26 करोड़ टन से ज्यादा कोयले का उत्पादन कोल इंडिया ने किया था। वहीं सबसे ज्यादा कोयले की खपत करने के मामले में चीन के बाद भारत दूसरे नंबर पर है। भारत में सबसे बड़ा कोयले का भंडार झारखंड में है। यहां 83 अरब टन से ज्यादा कोयले का भंडार है। उसके बाद ओडिशा, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल और मध्य प्रदेश है।

क्यों भारत कोयले के बिना नहीं रह सकता?

  • भारत में 319 अरब टन कोयले का भंडार है, लेकिन इसके बावजूद कोयले का संकट गहरा गया है। कोयले संकट से बिजली कटौती की आशंका भी बढ़ गई है। भारत में बिजली आपूर्ति की जिम्मेदारी राज्य सरकारों की होती है। राज्य सरकारें बिजली वितरण करने वाली कंपनियों से बिजली खरीदती हैं और फिर ये बिजली उपभोक्ताओं को दी जाती है। कई राज्यों में निजी कंपनियां भी बिजली वितरण के काम में लगी हैं। मौजूदा कोयला संकट की वजह से कई राज्यों में बिजली कटौती की जा रही है।
  • देश में बिजली की कुल कमी 62.3 करोड़ यूनिट तक पहुंच गई है। यह आंकड़ा मार्च में कुल बिजली की कमी से अधिक है। इस संकट के केंद्र में कोयले की कमी है। देश में कोयले से 70 प्रतिशत बिजली का उत्पादन होता है।

कोयले का पर्याप्त भंडार, फिर संकट क्यों?

  • पॉवर मिनिस्ट्री मुताबिक, 29 अप्रैल को देश में बिजली की डिमांड ने पिछले सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए। 28 अप्रैल को देश में बिजली की डिमांड 2.07 लाख मेगावॉट थी। लेकिन इतनी डिमांड होने के बावजूद कोयले की सप्लाई नहीं हो पा रही है। यही वजह है कि रेलवे ने 650 से ज्यादा पैसेंजर ट्रेनों को रद्द कर दिया है, ताकि पॉवर प्लांट तक जल्द से जल्द कोयला पहुंचाया जा सके।
  • कोयले से बिजली पैदा करने वाले थर्मल पॉवर प्लांट में कम से कम 26 दिन का कोल स्टॉक होना चाहिए, लेकिन देश के कई सारे ऐसे प्लांट हैं जहां 10 दिन से भी कम का कोयला बचा है। कुछ प्लांट तो ऐसे हैं जहां एक या दो दिन का कोयला ही है।
  • भारत में हर दिन 4 लाख मेगावाट यानी 400 गीगावॉट से ज्यादा बिजली पैदा करने की क्षमता है। इसमें से आधी से ज्यादा बिजली कोयले से ही पैदा होती है। इसमें से भी ज्यादातर बिजली घरेलू कोयले से बनती है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक अभी देश में 165 पावर प्लांट में से 100 में 25 फीसदी से भी कम कोयले का स्टॉक बचा है। इसी साल फरवरी में कोयला मंत्री आरके सिंह ने लोकसभा में बताया था कि 2024-25 तक कोयले का उत्पादन बढ़ाकर सालाना 1 अरब टन से भी ज्यादा बढ़ाने का टारगेट रखा गया है।

गुजरात के दो पॉवर प्लांट क्यों बंद पड़े?

आप उदाहरण के तौर पर जानिए, गुजरात के तट पर बने दो पॉवर प्लांट ही भारत की कुल ऊर्जा जरूरत के पांच प्रतिशत तक का उत्पादन कर सकते हैं। लेकिन महंगे कोयले के कारण ये बंद हैं। बिजली कंपनियां पॉवर प्लांट के साथ खरीद को लेकर करार करती हैं। अब भारत सरकार इन प्लांट के अतिरिक्त खर्च का भार फौरी तौर पर कंपनियों पर डालने का विचार कर रही है। यदि इन प्लांट को बिजली का ही दाम दिया जाए और फौरी तौर पर इनसे महंगी दर बिजली खरीदी जाए तो बहुत हद तक बिजली संकट से बचा जा सकता है।

क्या कोयले पर निर्भरता कम कर पाएगा भारत?

  • बीते एक दशक में भारत की कोयले की खपत लगभग दोगुनी हो गई है। देश अच्छी गुणवत्ता का कोयला आयात कर रहा है और उसकी योजना आने वाले सालों में कई दर्जन नई खदान खोलने की है। अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा समिति के अनुसार, 1.3 अरब की आबादी वाले भारत में अगले 20 सालों में ऊर्जा की जरूरत किसी भी देश से सबसे अधिक होगी।
  • पर्यावरण प्रतिबद्धताओं के तहत भारत अक्षय ऊर्जा स्रोतों का विकास तो कर रहा है, लेकिन अभी भी कोयला ही सबसे सस्ता ईंधन है। हालांकि कोयला वायु प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण भी है और भारत पर अपने पर्यावरण लक्ष्य हासिल करने का दबाव भी है।
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