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‘सम्मान’ के लिए पिता की हुंकार, रेलवे से वो कौन सी जंग जीती, जिसने देश को चौंका दिया?

भारतीय रेलवे (Indian Railways) ने एक पिता की अपील पर "मानसिक विकलांगता" (Mental Disability) की जगह "बौद्धिक विकलांगता" (Intellectual Disability) शब्द का इस्तेमाल करने की शुरुआत की है. यह कदम विकलांगता अधिकार अधिनियम 2016 के अनुरूप (According) है.

Written By: Darshna Deep
Last Updated: 2025-12-05 14:46:02

Indian Railways and Disability Act: भारतीय रेलवे ने एक पिता की अपील पर “मानसिक विकलांगता” की जगह “बौद्धिक विकलांगता” शब्द का इस्तेमाल करने की शुरुआत की है. यह महत्वपूर्ण कदम विकलांगता अधिकार अधिनियम 2016 को दर्शाती है. इस बदलाव से बौद्धिक विकलांगता से ग्रस्त लोगों की गरिमा बढ़ेगी. 

भारतीय रेलवे ने किया महत्वपूर्ण बदलाव

भारतीय रेलवे ने अपने रियायत प्रमाणपत्रों (Concession Certificates) में एक बहद ही महत्वपूर्ण बदलाव किया है. जहां, एक पिता की वकालत के बाद ही “मानसिक विकलांगता”  (Mental Disability) शब्द के जगह पर ही “बौद्धिक विकलांगता” (Intellectual Disability) शब्द का भारतीय रेलवे ने इस्तेमाल किया है.  एक पिता, जिसकी बेटी बौद्धिक विकलांगता से ग्रस्त है, उन्होंने यह महसूस किया कि रेलवे के रियायत प्रमाणपत्रों पर इस्तेमाल किया जा रहा “मानसिक विकलांगता” शब्द न केवल अपमानजनक है, बल्कि यह विकलांगता अधिकार अधिनियम, 2016 के पूरा विपरीत भी है. 

मामले में पिता ने रेलवे विभाग को लिखा पत्र

इस मामले को लेकर युवती के पिता ने रेलवे अधिकारियों को पत्र में लिखा कि उनकी अपीक का परिणाम भारतीय रेलवे ने आखिरकार स्वीकार कर लिया. साथ ही उन्होंने लिखा कि भारतीय रेलवे के इस फैसले से एक भाषा में सुघार देखने को मिलेगा इसके साथ ही बौद्धिक विकलांगता से ग्रस्त लोगों और उनके परिवारों के सम्मान को बनाए रखने में सबसे ज्यादा अच्छा महत्वपूर्ण कदम में से एक है. 

क्या है मानसिक और बौद्धिक विकलांगता में अंतर?

दरअसल, “मानसिक विकलांगता” शब्द अक्सर सामाजिक कलंक (Stigma) से जुड़ा होता है, तो वहीं, “बौद्धिक विकलांगता” एक चिकित्सकीय रूप से ज्यादा स्वीकार्य शब्दावली (Acceptable Terminology) है. 

भारतीय रेलवे का यह कदम एक बार फिर से  सुनिश्चित करता है कि देश की सबसे बड़ी परिवहन प्रणाली भी समावेशिता (Inclusivity) और मानवाधिकारों को ही दर्शाती है.  यह उन सभी दिव्यांगजनों के लिए एक प्रेरणादायक जीत है, जो सम्मान और समानता के लिए कितने सालों से लगातार संघर्ष करते हैं. 

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