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भारत का ये दोस्त पीठ पीछे भोक रहा छुरा? PM मोदी को पता चला तो हो सकता है बवाल

BY: Raunak Pandey • LAST UPDATED : September 14, 2024, 11:34 am IST
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भारत का ये दोस्त पीठ पीछे भोक रहा छुरा? PM मोदी को पता चला तो हो सकता है बवाल

Indians In Russian Army: भारत का ये दोस्त पीठ पीछे भोक रहा छुरा?

India News (इंडिया न्यूज), Indians In Russian Army: रूस से चार भारतीय नागरिक शुक्रवार (13 सितंबर) को स्वदेश लौट आए हैं, जिन्हें धोखे से एक निजी रूसी सेना में भर्ती किया गया था और रूस-यूक्रेन युद्ध में लड़ने के लिए मजबूर किया गया था। वहीं तेलंगाना के मोहम्मद सूफियान नामक एक भारतीय ने सात महीने पहले एक वीडियो जारी कर बचाव की गुहार लगाई थी। कर्नाटक के तीन अन्य लोग और सूफियान भारत के लगभग 60 अन्य युवकों के साथ नौकरी की धोखाधड़ी का शिकार हुए। इसके अलावा कई अन्य अभी भी रूस में फंसे हुए हैं, बचाव की प्रतीक्षा कर रहे हैं। उन्हें रूस-यूक्रेन युद्ध में सैनिकों के रूप में सेवा करनी पड़ रही है।

दरअसल, रूस में सुरक्षा कर्मियों या सहायकों के रूप में नौकरी का वादा करके, युवा नौकरी की पेशकश के लिए उमड़ पड़े और कई को दिसंबर 2023 में रूस भेज दिया गया। लेकिन वहां पहुंचने पर उन्हें जीवन का सबसे बड़ा झटका लगा।

रूस में स्थितियां अमानवीय- लौटा यात्री

सूफियान ने टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया कि हमारे साथ गुलामों जैसा व्यवहार किया जाता था। उन्होंने कहा कि हमें हर दिन सुबह 6 बजे जगाया जाता था और बिना आराम या नींद के लगातार 15 घंटे काम कराया जाता था। वहां स्थितियाँ अमानवीय थीं। उन्हें बहुत कम राशन पर निर्भर रहकर कठिन काम करने पड़ते थे।साथ ही सेना में भर्ती होने के बाद, इन लोगों को खाइयाँ खोदनी पड़ती थीं, असॉल्ट राइफलें चलानी पड़ती थीं। उन्हें AK-12 और AK-74 जैसे कलाश्निकोव, हैंड ग्रेनेड और अन्य विस्फोटकों का इस्तेमाल करना भी सिखाया गया था। सुफियान ने आगे कहा कि हमारे हाथ फफोलेदार हो गए थे, हमारी पीठ में दर्द हो रहा था और हमारी हिम्मत टूट चुकी थी। फिर भी अगर हम थकने का कोई संकेत देते, तो हमें फिर से श्रमसाध्य कामों में लगाने के लिए गोलियां चलाई जाती थीं।

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भारतीय नागरिकों ने सुनाई दर्दभरी कहानी

बता दें कि, कर्नाटक के सैयद इलियास हुसैनी, जिन्हें रूस से बचाया गया था। उन्होंने कहा कि डर उनके जीवन का एक निरंतर हिस्सा बन गया था, क्योंकि उन्हें नहीं पता था कि वे कितने समय तक जीवित रहेंगे। दरअसल, लगातार गोलियों की पृष्ठभूमि के खिलाफ, वे अपने परिवार के पास घर लौटने के विचार से खुद को सांत्वना देने में कामयाब रहे। हालांकि, हुसैनी और सूफ़ियान दोनों ने कहा कि वे अभी भी उन दर्दनाक मौतों और उच्च दबाव वाली स्थितियों से पीड़ित हैं जो उन्होंने देखी थीं। सूफ़ियान अपने दोस्त हामिल की मौत को याद करते हुए कहते हैं कि गुजरात से मेरा एक बहुत अच्छा दोस्त हामिल ड्रोन हमले में मारा गया। वह 24 सैनिकों की टीम का हिस्सा था, जिसमें एक भारतीय और एक नेपाली शामिल था। इसने मुझे झकझोर कर रख दिया।

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