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RSS को समझने के लिए दिमाग नहीं, दिल चाहिए : आरएसएस महासचिव

BY: Monu Kumar • LAST UPDATED : February 2, 2023, 9:12 am IST
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RSS को समझने के लिए दिमाग नहीं, दिल चाहिए : आरएसएस महासचिव

Dattatreya Hosabale,RSS General Secretary(Photo-BBC)

जयपुर।(Sangh played an important role in establishing democracy in the country)बुधवार को जयपुर के बिड़ला सभागार में “संघ कल,आज और कल ” विषय पर व्याख्यान कार्यक्रम में आरएसएस यानी राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के महासचिव दत्तात्रेय होसबोले ने कहा कि संघ को समझने के लिए सिर्फ दिमाग नहीं बल्कि दिल चाहिए। केवल दिमाग से होने से काम नहीं चलेगा क्योंकि दिल और दिमाग बनाना ही आरएसएस का प्रमुख काम है। उन्होंने कहा कि यह हिंदू राष्ट्र है, क्योंकि इस देश को बनाने वाले भी हिंदू है। कई पुस्तकों की चर्चा करते हुए होसबोले ने कहा कि भारत को पितृ भूमि मानने वाले हिंदू ही हैं।

जो स्वंय को हिंदू माने वो हिंदू है। छूआछूत पाप नहीं तो दुनिया में कुछ भी पाप नहीं है। आरएसएस ने अस्पश्यता को खत्म करने में भूमिका निभाई है। उन्होंने ये भी कहा कि साम्यवाद हो या फिर समाजवाद इन सभी काल में आरएसएस की भूमिका अहम रही है। आरएसएस की विचारधारा ने सांस्कृतिक राष्ट्रवाद पर भरपूर जोर दिया है।

 देश में लोकतंत्र की स्थापना करने में संघ की रही अहम भूमिका

जो कहते हैं कि संघ बहुत  कठोर है। मैं उन्हें बता दूं कि संघ कठोर नहीं है बल्कि यह बहुत लचीला है। देश में लोकतंत्र की स्थापना करने में संघ की अहम भूमिका रही है।  राइट विंग और लेफ्ट विंग ही नहीं बल्कि संघ सिर्फ राष्ट्रहित का काम करने वाला है। हम राष्ट्रवादी और नेशनलिस्ट लोग हैं। संघ भविष्य में भी ऐसे ही व्यक्ति निर्माण और समाज निर्माण का काम करता रहेगा। होसबोले ने ये भी कहा कि संघ के एक लाख सेवा कार्य चलते हैं। संघजनरेटर की तरह काम करता है। संघ एक जीवनपद्धति है।

हर साल एक लाख युवा आते हैं संघ को जानने

RSS के महासचिव होसबोले ने कहा कि हिंदुत्व के सतत विकास के आविष्कार का नाम ही संघ है। लगभग हर साल एक लाख युवा प्राथमिक शिक्षा वर्ग में संघ को जानने के लिए यहां आते हैं। संघ के महासचिव दत्तात्रेय ने कहा कि संविधान अच्छा है और अगर उसे चलाने वाले खराब हैं तो इसमें संविधान भी कुछ नहीं कर सकता है। हमारी अगली पीढ़ी सामाजिक कलंक आगे लेकर न जा पाए ये ध्यान रहना चाहिए। पर्यावरण,जल, जमीन और जंगल और की रक्षा करना भारत की अस्मिता और अस्तित्व के लिए समाज को सक्रिय रखना पड़ेगा । वसुदैव कुटंबकम केवल नारे लगाने के लिए नहीं है बल्कि उसकी प्रयोग भूमि ही भारत है।

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