India News (इंडिया न्यूज़), अजय ज़ंड्याल, Jammu and Kashmir: जम्मू कश्मीर सरकार ने एक बड़ा फैसला करते हुए 2009 में कश्मीर के शोपिआँ में एक नदी से बह जाने से दो बहनो असिआ और नीलोफ़र की मौत के मामले में डॉ बिलाल अहमद दलाल और डॉ निघत शाहीन चिल्लू को नौकरी से बर्खास्त कर दिया है । जानकारी के मुताबिक डॉ बिलाल और डॉ निघत ने पाकिस्तान के इशारे पर असिआ और नीलोफर की मौत के मामले में पोस्ट मॉर्टम रिपोर्ट को गलत तरीके से पेश किया और उसे रपे और हत्या का मामला बनाया ताकि इसका आरोप सुरक्षा बलों पर लगाया जा सके जिससे उनकी शबी को ख़राब किया जा सके। जबकि सचाई यह थी की इन दोनों बहनो मौत एक नदी में बहने से हुई थी।
जम्मू कश्मीर सरकार ने भारतीय संविधान की धारा 31 1 (2) (सी) का इस्तेमाल कर इन दोनों डॉक्टरों को निलंबित कर दिया है, क्योंकि जांच में यह स्पष्ट हो गया है कि डॉ. बिलाल और डॉ. निगहत ने पाकिस्तान ख़ुफ़िया एजेंसी आईएसआई और आतंकवादी संगठनों के इशारे पर यह काम किया था। सूत्रों के मुताबिक, जांच से पता चलता है कि तत्कालीन सरकार के शीर्ष अधिकारियों को तथ्यों के बारे में पता था, जिसे दबा दिया गया, और उस से कश्मीर जल गया।
सूत्रों की मने तो, शोपियां साजिश के बाद कश्मीर घाटी 7 महीने तक सुलगती रही. जून-दिसंबर 2009 के सात महीनों में अलगाववादी संगठन हुर्रियत कांफ्रेंस जैसे समूहों द्वारा 42 बार हड़ताल का आह्वान किया गया, जिसके परिणामस्वरूप घाटी में बड़े पैमाने पर बबाल हुआ और सिर्फ कश्मीर घाटी में ही करीब 600 के करीब कानून-व्यवस्था विघड़ने की घटनाएं सामने आईं, जिसका असर अगले साल तक रहा। दंगा, पथराव, आगजनी आदि के लिए विभिन्न पुलिस स्टेशनों में कुल 251 एफआईआर दर्ज की गईं। इन विरोध प्रदर्शनों के दौरान 07 नागरिकों की जान चली गई और 103 घायल हो गए। इसके अतिरिक्त, 29 पुलिस कर्मियों और 06 अर्धसैनिक बलों के जवानों को चोटें आईं। अनुमान के मुताबिक, उन 7 महीनों में 6000 करोड़ रुपये का कारोबार खत्म हो गया।
डॉक्टर निघत इस समय गिनकॉलजिस्ट के तौर पर बड़गम जिले के चाडूरा हस्पताल में तैनात था जबकि डॉ बिलाल शोपियन में सरकारी हस्पताल में तैनात था और जांच में यही दोनों पाकिस्तान और उसके आतंकी संगठनो के इशारे पर सेना और पुलिस को बदनाम करने के लिए आरोपी पाए गए हैं जाँच में शोपियां प्रकरण एक क्लासिक पाठ्यपुस्तक केस स्टडी बनकर उभरा है कि कैसे पाकिस्तान, जम्मू-कश्मीर में उसके आतंकिओं ने पूरी तरह से झूठी कहानी गढ़ने के लिए कई सामाजिक और सरकारी संस्थानों के भीतर OGW को त्यार किया ताकि सेना और पुलिस को बदनाम किया जा सके और यह मामला आपराधिक न्याय प्रणाली के इतिहास में अभूतपूर्व है।
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