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India News (इंडिया न्यूज़), Operation Blue Star, दिल्ली: साल 1984 का ऑपरेशन ब्लू स्टार भारतीय सेना द्वारा चलाया गया अब तक का सबसे बड़ा आंतरिक सुरक्षा मिशन था। आज ऑपरेशन ब्लू स्टार की 39वीं बरसी है। भारत की तत्कालीन प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी ने हरमंदिर साहिब परिसर (स्वर्ण मंदिर) में हथियार जमा कर रहे सिख उग्रवादियों को हटाने के लिए सैन्य अभियान का आदेश दिया था इसे ऑपरेशन ब्लू स्टार (Operation Blue Star) नाम दिया गया। ऑपरेशन ब्लू स्टार 1 जून से 8 जून 1984 के बीच अमृतसर में चलाया गया था।
ऑपरेशन ब्लू स्टार की जरुरत भारत में खालिस्तान आंदोलन के उदय के बाद हुई। खालिस्तान आंदोलन एक राजनीतिक सिख राष्ट्रवादी आंदोलन था जिसका उद्देश्य भारत के वर्तमान उत्तर-पश्चिमी में सिखों के लिए एक अलग देश की स्थापना करना था। भले ही खालिस्तान आंदोलन 1940 और 1950 के दशक की शुरुआत में शुरू हुआ, लेकिन इसने 1970 और 1980 के दशक के बीच लोकप्रियता हासिल की।
ऑपरेशन ब्लू स्टार को दो भागों में बांटा गया था-
1. ऑपरेशन मेटल: यह स्वर्ण मंदिर तक ही सीमित था लेकिन इस ऑपरेशन में पंजाब के बाहरी इलाकों से संदिग्धों को भी पकड़ा गया।
2. ऑपरेशन वुडरोज: पूरे पंजाब में ऑपरेशन वुडरोज चलाया गया। भारतीय सेना द्वारा टैंकों, तोपखाने, हेलीकाप्टरों और बख्तरबंद वाहनों का उपयोग करके ऑपरेशन को अंजाम दिया गया था।
भिंडरावाले दमदमी टकसाल का नेता था और ऑपरेशन खालिस्तान आंदोलन का सबसे बड़ा चेहरा था। एक नेता के रूप में, भिंडरावाले का सिख युवाओं पर प्रभाव था। उन्होंने कई लोगों को सिख नियमों और सिद्धांतों का पालन करने के लिए राजी किया। भिंडरावाले और खालिस्तान समर्थकों ने अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में अकाल तख्त परिसर पर कब्जा कर लिया था। ऑपरेशन ब्लू स्टार का उद्देश्य विशेष रूप से जरनैल सिंह भिंडरावाले को स्वर्ण मंदिर परिसर से खत्म करना और हरमंदिर साहिब पर नियंत्रण हासिल करना था।
आधिकारिक रिपोर्टों में भारतीय सेना में मरने वालों की संख्या 83 और नागरिकों की मौत की संख्या 492 बताई गई है, हालांकि स्वतंत्र अनुमान इससे कहीं अधिक थे। ऑपरेशन ब्लू स्टार से पहले ऑपरेशन सनडाउन नाम का एक मिश रॉ एजेंसी द्वारा भिंडरावाले का अपहरण करने के लिए बनाया गया था लेकिन इस ऑपरेशन को प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने मंजूरी नहीं दी।
ऑपरेशन ब्लैक थंडर ऑपरेशन ब्लू स्टार का दूसरा चरण था। पहला चरण 30 अप्रैल, 1986 को चलाया गया था, जबकि दूसरा ऑपरेशन ब्लैक थंडर 9 मई, 1988 को शुरू हुआ था। इसे स्वर्ण मंदिर से सिख आतंकवादियों को हटाने के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड (NSG) के ब्लैक कैट कमांडो द्वारा चलाया गया था।
1984 में सरकार को काफी विरोध का सामना करना पड़ा क्योंकि उन्होंने मीडिया को पंजाब में प्रवेश करने से पूरी तरह से रोक दिया था। मीडियाकर्मियों को एक बस में बिठाकर हरियाणा की सीमा पर उतार दिया गया। चूंकि पंजाब में कर्फ्यू की स्थिति थी, इसलिए उनके लिए यात्रा करने के लिए परिवहन का कोई साधन उपलब्ध नहीं था। जो भी पहुंचा उसे पंजाब में भी घुसने नहीं दिया गया।
टैंकों को स्वर्ण मंदिर में तब बुलाया गया जब 5 जून को सेना ने देखा कि वह अकाल तख़्त के नज़दीक तक भी नहीं पहुंच पा रही। सेना को डर था की सुबह होते ही हज़ारों लोग आ जाएंगे और चारों तरफ से फौज को घेर लेंगे। पहले टैंक से अकाल तख्त के ऊपर वाले हिस्सों पर फायर किया गया ताकि गिर रहे पत्थरों से लोग डर जाएं और निकल जाएं लेकिन चरमपंथियों ने हार नहीं मानी और लड़ाई में पूरा अकाल तख्त तबाह हो गया।
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