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India News(इंडिया न्यूज),Lok Sabha Election: गुजरात के सुरत से बीजेपी उम्मीदवार मुकेश दलाल की जीत को लेकर देश की सियासत में गर्मी बढ़ गई है। जहां सात चरण के आम चुनाव के पहले चरण के बाद, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा), जिसने 543 लोकसभा क्षेत्रों में से 370 जीतने का लक्ष्य रखा है, उसकी झोली में एक सीट है। गुजरात के सूरत में पार्टी के उम्मीदवार मुकेश दलाल को कांग्रेस उम्मीदवार नीलेश कुंभानी के चुनाव फॉर्म में विसंगतियों के कारण उनका नामांकन खारिज होने के बाद निर्विरोध चुना गया। वहीं आठ अन्य उम्मीदवारों ने नाम वापस ले लिया और दलाल 18वीं लोकसभा के लिए चुने जाने वाले पहले विधायक बन गए।
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वहीं इस मामले में कांग्रेस ने तंज कसते हुए दलाल के चुनाव को “मैच फिक्सिंग” करार दिया। इसके गठबंधन सहयोगी समाजवादी पार्टी (सपा) ने इसे एक उदाहरण देते हुए बताया कि, कैसे सत्तारूढ़ दल “लोगों से वोट देने का अधिकार छीनना चाहता है”। जहां मंगलवार को, सपा नेता और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कहा कि सूरत के लोगों को “वोट देने की अनुमति नहीं देकर” उनका अपमान किया गया है। इसके साथ ही अखिलेश यादव ने उम्मीद जताई कि, बीजेपी पर लगाया गया आरोप ज़मीन पर गूंजेगा। उनकी पत्नी डिंपल यादव 2012 के उपचुनाव में उत्तर प्रदेश के कन्नौज से निर्विरोध चुनी गईं। कांग्रेस और बहुजन समाज पार्टी ने वॉक ओवर की पेशकश करते हुए उम्मीदवार नहीं उतारने का फैसला किया।
पीएम मोदी ने चुनाव के निर्विरोध जीत पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि, राज्य चुनावों में भी उम्मीदवारों का निर्विरोध जीतना कोई अनसुनी बात नहीं है। मौजूदा चुनावी समर की शुरुआत में बीजेपी ने अरुणाचल प्रदेश की 60 में से 10 सीटें निर्विरोध जीत लीं। यह दावा कि भाजपा वोट देने का अधिकार छीन लेगी, विपक्ष के इस आरोप के ठीक बाद आता है कि भाजपा संविधान को बदलने में सक्षम होने के लिए लोकसभा में प्रचंड बहुमत चाहती है।
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मिली जानकारी के अनुसार, कांग्रेस सूरत में कुम्भानी की जगह लेने के लिए दूसरा उम्मीदवार पाने में भी विफल रही। कुंभानी के संपर्क में न होने की खबरों और उनके भाजपा में शामिल होने की अटकलों ने कहानी में एक मोड़ जोड़ दिया है। वहीं सूरत की घटना ने भाजपा के गढ़ गुजरात में कांग्रेस की चुनावी रणनीति पर सवालिया निशान खड़े कर दिए हैं। चुनावों से पहले, मार्च में अर्जुन मोढवाडिया, चिराग पटेल और सीजे चावड़ा के बाद चार महीने में भाजपा में शामिल होने वाले तीसरे कांग्रेस विधायक बन गए। इसके बाद द्वारका में पार्टी कार्यकर्ताओं का बड़े पैमाने पर दलबदल हुआ।
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