India News (इंडिया न्यूज), अजीत मेंदोला, नई दिल्ली: लोकसभा चुनाव 2024 का मंगलवार को आने वाला चुनाव परिणाम जहां कई नेताओं की भविष्य की राजनीति तय करेगा वहीं नया इतिहास भी लिखेगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जीतते हैं या किन्ही कारणों से चूक जाते हैं तो देश की राजनीति हर हाल में नया मोड़ लेगी। जीते तो नया इतिहास लिखा जायेगा। मोदी पहले गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री होंगे जिनकी अगुवाई में बीजेपी जीत की हैट्रिक लगाएगी। अपने आप में नए इतिहास की शुरुआत होगी। क्योंकि वह ऐसे पहले व्यक्ति होंगे जो अपने दम पर यह कारनामा करेंगे। इसमें कोई दो राय नहीं है कि चुनाव मोदी बनाम बाकी दल ही रहा। बीजेपी जीती तो पूरा श्रेय मोदी को ही मिलेगा। उनके फेस के चलते ही बीजेपी की वापसी मानी जायेगी। अब रहा सवाल ऐतिहासिक फैसलों का तो एक देश एक चुनाव ही ऐसा फैसला है जो अपने आप में इतिहास लिखेगा। जहां तक संविधान में बदलाव की बात है तो आरक्षण के लिए नहीं बल्कि एक देश एक चुनाव के लिए करना पड़ेगा।
हालांकि कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में एक देश एक चुनाव की खिलाफत की है। अगर देश में सारे चुनाव एक साथ हुए तो सबसे बड़ा नुकसान कांग्रेस का ही होगा। बाकी क्षेत्रीय दल भी निपट जायेंगे। कांग्रेस तभी इस फैसले को रोक सकती है जब लोकसभा और राज्यसभा में ताकतवर हो। अभी दोनों सदनों में उसकी स्थिति कमजोर ही है। लोकसभा का यह चुनाव उसके अस्तित्व को बचाने का भी है। पार्टी अगर 2004 जैसा करिश्मा दोहराती है तो तब तो सारी स्थिति ही बदल जायेगी। राहुल गांधी जीत के हीरो बन जायेंगे। उनका और पार्टी का अस्तित्व बच जायेगा। राहुल गांधी के लिए यह चुनाव भी राजनीतिक रूप से मरण जीवन का प्रश्न बना हुआ है। हारे तो पार्टी के भीतर ही उनको लेकर सवाल खड़े होंगे। दबी जुबान से प्रियंका गांधी को लाने की बात उठने भी लगी है। कांग्रेस के खुद के अस्तित्व पर आंच आ सकती है। क्योंकि इस चुनाव में कड़वाहट बहुत बढ़ी है। लगातार राज्यों के चुनाव होने है। राहुल गांधी के बाद दूसरे नेता होंगे दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल।
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इंडी गठबंधन हारा तो केजरीवाल की मुश्किलें और बढ़ेंगी। वैसे भी चुनाव प्रचार में वह यही कहते रहे कि इंडी गठबंधन नहीं जीता तो उन्हें फिर अंदर कर देंगे। केजरीवाल और उनकी पार्टी की अभी जो स्थिति बनी हुई है उसमें संकट ही संकट है। दिल्ली को लेकर तमाम बातें हो रही है। ये भी हो सकता है दिल्ली फिर से केंद्र शासित प्रदेश बन जाए। इंडी गठबंधन के हारने का सबसे ज्यादा असर राहुल और केजरीवाल पर ही पढ़ेगा। जहां तक बाकी घटक दलों के नेताओं का सवाल है तो एनसीपी नेता शरद पंवार की भी यह अंतिम राजनीतिक पारी मानी जा रही है। देखना होगा कि इंडी गठबंधन अगर हारी तो क्या वह उसमें बने रहेंगे। प्रधानमंत्री मोदी उन्हें साथ आने का कई बार आफर दे चुके हैं। राजद नेता तेजस्वी यादव,सपा नेता अखिलेश यादव और टीएमसी नेत्री ममता बनर्जी को अपने अपने राज्य में राजनीति करनी है वह तब तक करते रहेंगे जब तक वह बीजेपी को चुनौती देने की स्थिति में होंगे।
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इंडी गठबंधन के नेताओं ने प्रचार में जिस तरह के हमले पीएम मोदी पर किए उनसे भी बात बिगड़ी है। सबसे बड़े घटक दल कांग्रेस ने बिना संगठन के जिस तरह राहुल के फेस पर चुनाव लड़ा उससे पार्टी को लाभ हुआ होगा लगता नहीं है। पार्टी एक तरह से बंटी हुई दिखाई दी। गिनती के नेताओं का पार्टी पर कब्जा दिखा। जो अनुभवी और जानकार नेता थे उन्होंने अपने को राज्य की राजनीति तक सीमित कर लिया। दिल्ली आने से दूरी बना ली। सभी अनुभवी,पूर्व मुख्यमंत्री दिल्ली डेरा डाल टीम के रूप में काम करते तो शायद स्थिति बदली हुई दिखती। चुनाव राहुल और प्रियंका ही लड़ते दिखे। दोनों ने अलग अलग 100 से ज्यादा बड़ी जन सभाएं की। रोड शो,पीसी आदि कर कोशिश की पार्टी जीते। प्रियंका तो 12 दिन रायबरेली और अमेठी में जूझी। पार्टी के गलत फैसलों के चलते यह हुआ। ऐसे में भाई बहन के लिए ही 4 जून सबसे खास होने वाला है। हारे तो बाकी नेता तो कन्नी काट लेंगे।
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