India News (इंडिया न्यूज), Lok Sabha Election: उत्तर प्रदेश में भी कांग्रेस और समाजवादी के बीच सीट बंटवारे को लेकर बात बनने के आसार कम हो गए। कांग्रेस सपा के व्यवहार को उचित नहीं मान रही है। पहले अपनी तरफ से 11 सीट पर समझौते की घोषणा कर दी और मंगलवार को कुछ सीटों पर प्रत्याशी घोषित कर दिए। सपा के रुख पर कांग्रेस अभी खुल कर नहीं बोल रही है,लेकिन संकेत मिल रहे है कांग्रेस सभी सीटों पर चुनाव लड़ेगी। कुछ सीटों पर दोस्ताना मुकाबला हो सकता है। प्रदेश कांग्रेस का भी आलाकमान पर यही दबाव है कि समझौते से कोई अंतर नहीं पड़ने वाला है। अकेले लड़ना ठीक रहेगा, हालांकि पार्टी अभी यही कह रही है बातचीत जारी है।
पार्टी ने बातचीत की जिम्मेदारी राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को दी हुई है और वे सपा प्रमुख अखिलेश यादव से कई दौर की बातचीत कर चुके हैं।कांग्रेस का धर्म संकट यह है कि अगर वह 11 सीटों पर राजी होती है तो उसके लिए आगे परेशानियां बढ़ेंगी।क्योंकि प्रदेश का बड़ा धड़ा तो आधी सीटों के पक्ष में है।नहीं तो कम से कम 21 से 22 सीट तो मिलें। समाजवादी पार्टी कांग्रेस को ज्यादा सीट देने के कतई मूड में नहीं है।उसके रणनीतिकार मानते हैं कि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को सीट देने से कोई फायदा नहीं है क्योंकि उसका कोई वोट बैंक ही नहीं बचा है।
विधानसभा चुनाव में प्रियंका गांधी की अगुवाई में पार्टी की बड़ी हार हुई थी। वोट प्रतिशत भी घट कर तीन प्रतिशत रह गया।कांग्रेस उत्तर प्रदेश में पूरी तरह से समाप्त सी हो गई है। कांग्रेस की दूसरी सबसे बड़ी परेशानी यह है की आज के दिन वह एक भी सीट जीतती नजर नहीं आ रही है।
अयोध्या में राम मंदिर की स्थापना के बाद रायबरेली पर भी संकट दिख रहा है। यह तय है सोनिया गांधी चुनाव नहीं लड़ेंगी। प्रियंका बदले माहौल में अब चुनाव लड़ने की हिम्मत दिखाएंगी लगता नहीं है।तीन राज्यों के चुनाव परिणामों ने उनके करिश्में को खत्म कर दिया है।तीन राज्यों खासतौर पर मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ की हार से उनके लिए बड़ा झटका मानी जा रही हैं।वे उम्मीद कर रही थी कि दोनों राज्य उनकी वजह से जीत रहे है,लेकिन बड़ी हार हुई।लोकसभा चुनाव में वह दिलचस्पी लेंगी लगता नहीं है।उत्तर प्रदेश मामले में उनकी अब कोई रुचि नहीं रह गई।
अयोध्या में प्राण प्रतिष्ठा समारोह के बाद तो माहौल ही पूरा बदल गया है। बदले माहौल में सपा,बसपा और कांग्रेस मिल कर चुनाव लड़ते तो तब जा कर दहाई तक सीट पहुंच पाती।अब सपा और कांग्रेस गठबंधन भी करते हैं तो उत्तर प्रदेश के परिणामों पर कोई असर नहीं पड़ेगा।
बीजेपी 2014 का रिकार्ड तोड सकती है।हो सकता है कि ऐसा नया रिकार्ड बन जाए जिसमें पूरा विपक्ष धाराशाही हो सकता है।कांग्रेस के रणनीतिकार भी समझ रहे उत्तर प्रदेश मुश्किल है।इन हालात में जब सपा के साथ जाने से कोई फायदा नहीं होगा तो क्यों नहीं सभी सीट पर दोस्ताना तरीके से चुनाव लड़ा जाए।जाति के हिसाब से प्रत्याशी खड़ा कर विपक्ष एक दूसरे की मदद करे।उत्तर प्रदेश के प्रभारी अविनाश पांडे हों या प्रदेश अध्यक्ष एक ही बात दोहरा रहे हैं बातचीत जारी है।सपा ने बिहार प्रकरण के बाद कांग्रेस को 11सीट का जो आफर दिया वह भी समझ से परे है।
कांग्रेस की हैसियत को अखिलेश ने कम आंक कर आफर तो दे दिया,लेकिन वह खुद भी जानते होंगे कि कितने गहरे पानी में है। विधानसभा चुनाव में जातीय समीकरण साध सपा बड़ी बड़ी बातें कर रही थी,लेकिन गढ़ में ही चुनाव हार सकती है।कांग्रेस के लिए मौका है कि वह 80 सीटों पर ताकत से लड़े जिससे प्रदेश में कांग्रेस का वजूद बन सके। विधानसभा चुनाव तक पार्टी खड़ी हो सके। जो माहौल है उसमें सपा और बसपा इस बार पूरी तरह से सिमट जाएंगी।
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