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India News (इंडिया न्यूज), Amartya Sen: नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन अक्सर अपने बयानो को लेकर चर्चा में रहते हैं। एक बार फिर से उनका एक बयान चर्चा में आ गया है। अमर्त्य सेन के अनुसार हालिया लोकसभा चुनाव नतीजे इस तथ्य की ओर इशारा करते हैं कि भारत एक ‘हिंदू राष्ट्र’ नहीं है।
उन्होंने इस बात पर भी नाराजगी व्यक्त की कि ब्रिटिश शासन के बाद से देश में लोगों को “बिना मुकदमे के” सलाखों के पीछे रखना जारी है और कांग्रेस शासन की तुलना में भाजपा सरकार में यह अधिक चलन में है। सेन ने यहां नेताजी सुभाष चंद्र बोस अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डे पर मीडिया से बात करते हुए ये बात कहीय़
90 वर्षीय अर्थशास्त्री बुधवार शाम अमेरिका से कोलकाता पहुंचे। सेन के अनुसार “हम हमेशा हर चुनाव के बाद बदलाव देखने की उम्मीद करते हैं। पहले (भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार के दौरान) जो कुछ हुआ, जैसे लोगों को बिना मुकदमे के सलाखों के पीछे डालना और अमीर और गरीब के बीच की खाई को बढ़ाना, वे अभी भी जारी हैं। यह रुकना चाहिए,” ।
प्रख्यात अर्थशास्त्री ने कहा कि राजनीतिक रूप से खुले विचारों वाले होने की जरूरत है, खासकर तब जब भारत एक धर्मनिरपेक्ष संविधान वाला एक धर्मनिरपेक्ष देश है। सेन ने कहा, ”मुझे नहीं लगता कि भारत को हिंदू राष्ट्र में बदलने का विचार उचित है।” नया केंद्रीय मंत्रिमंडल “पहले वाले की एक प्रति” है।
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उन्होंने कहा “मंत्रियों के पास समान विभाग बने रहेंगे। थोड़े से फेरबदल के बावजूद, राजनीतिक रूप से शक्तिशाली लोग अभी भी शक्तिशाली हैं,”। सेन ने याद किया कि उनके बचपन के दौरान जब भारत ब्रिटिश शासन के अधीन था, लोगों को बिना किसी मुकदमे के जेल में डाल दिया जाता था।
नोबेल पुरस्कार विजेता ने कहा “जब मैं छोटा था, मेरे कई चाचाओं और चचेरे भाइयों को बिना मुकदमा चलाए जेल में डाल दिया गया था। हमें उम्मीद थी कि भारत इससे मुक्त हो जायेगा. यह नहीं रुका इसके लिए कांग्रेस भी दोषी है। उन्होंने इसे नहीं बदला… लेकिन, वर्तमान सरकार के तहत यह अधिक चलन में है,” ।
सेन आगे कहा कि अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के बावजूद फैजाबाद लोकसभा सीट पर भाजपा की हार पर सेन ने कहा कि देश की असली पहचान को खत्म करने की कोशिश की गई। “…इतना पैसा खर्च करके राम मंदिर का निर्माण…भारत को एक ‘हिंदू राष्ट्र’ के रूप में चित्रित करना महात्मा गांधी, रवींद्रनाथ टैगोर और नेताजी सुभाष चंद्र बोस के देश में नहीं होना चाहिए था। यह भारत की वास्तविक पहचान को नजरअंदाज करने का प्रयास दिखाता है और इसे बदलना होगा।”
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