India News(इंडिया न्यूज),Loktantra Bachao Rally(अजीत मेंदोला): आप नेता अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी के खिलाफ दिल्ली के रामलीला मैदान में आज होने वाली रैली में दशक बाद विपक्ष के दिग्गज नेता मंच पर एक साथ दिखाई दे सकते हैं।लेकिन सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या यह एक जुटता और रैली में साथ दिखने वाले नेता बाकी राज्यों में एक साथ दिखाई देंगे? जवाब नहीं।फिर दूसरा सवाल उठता है कि आप के साथ आने से कांग्रेस को दिल्ली में क्या फायदा मिलेगा? जवाब कुछ नहीं। तो फिर क्या कांग्रेस उम्मीद कर रही है कि केजरीवाल के नाम केंद्र के खिलाफ अन्ना जैसा आंदोलन कर नरेंद्र मोदी की सरकार को तीसरी बार सरकार में आने से रोका जा सकता है।

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कांग्रेस की भूल

कांग्रेस भूल रही है अन्ना हजारे ने सत्ता के लिए विपक्ष को एक कर आंदोलन नहीं चलाया था।जबकि केजरीवाल कांग्रेस के खिलाफ आंदोलन कर सत्ता में पहुंचे और फिर भ्रष्टाचार के आरोपों में घिर जेल तक।अब भी जो आंदोलन हो रहा है वह भी सत्ता में बने रहने के लिए ही हो रहा है।2012-2013 में कांग्रेस को नेतिकता की सीख देने वाले केजरीवाल अब सब कुछ भूल गए हैं।कांग्रेस और इसी विपक्ष को केजरीवाल ने भ्रष्ट और चोर बता आंदोलन कर सत्ता पाई थी।

संजय निरुपम की गणना

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता संजय निरुपम ने लाल बहादुर शास्त्री से लेकर तमाम ऐसे नेताओं के नाम गिनाए जिन्होंने आरोप लगने पर कुर्सी छोड़ दी थी।उन्होंने केजरीवाल से भी यही उम्मीद जताई थी कि नैतिकता के आधार पर कुर्सी छोड़ दें,लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया।सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह की अगुवाई में बनी यूपीए सरकार के समय पवन बंसल जैसे कई मंत्रियों ने भ्रष्टाचार के आरोप के बाद मंत्री पद छोड़ दिया था।यही नहीं झारखण्ड के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन भी गिरफ़्तारी से मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़ दी थी।

राजद नेता लालू यादव जिन्हें सोनिया गांधी सबसे ज्यादा सम्मान देती हैं ने भी जेल जाने से पहले ही पद छोड़ अपनी पत्नी राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री बना नई परम्परा को जन्म दिया। लेकिन बाद में उसी का खामियाजा भुगता । 15 साल से पार्टी सत्ता से बाहर है।शायद आने वाले दिनों में केजरीवाल भी अपनी पत्नी को मुख्यमंत्री बना पार्टी की कमान सौंप सकते हैं।संभावना पूरी दिख रही है।फिर कांग्रेस क्या करेगी? आम आदमी पार्टी जब पंजाब में हिस्सेदारी नहीं दे रही थी दिल्ली में क्यों देगी।

दिल्ली में फंसा दाव

9 माह बाद दिल्ली में विधानसभा के चुनाव होने हैं। जानकार तो मान रहे हैं कि केजरीवाल की पार्टी एक सीट भी नहीं देगी।मतलब कांग्रेस की स्थिति दिल्ली में भी बिहार,उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र वाली हो जाएगी। जैसे इन प्रदेशों में छोटे दल कम महत्व देने वाला व्यवहार कांग्रेस के साथ करते हैं।शायद दिल्ली में भी ऐसा ही हो जाए।पंजाब में हो चुका है।
अब दूसरी बात दिल्ली की इस रैली से हिंदी बेल्ट वाले राज्यों में माहौल बदल जाएगा ऐसा लगता नहीं है।मतलब हैरानी इस बात को लेकर है कि कांग्रेस किस फायदे के लिए अरविंद केजरीवाल का साथ दे रही है।अरविंद केजरीवाल की पार्टी किसी भी हिंदी भाषी राज्य में कांग्रेस को वोट नहीं दिलवा सकती है।

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इन राज्यों में दाव

राजस्थान,मध्यप्रदेश,उत्तर प्रदेश जैसे कोई भी हिंदी राज्य हो।अब एक मात्र राज्य है पंजाब जहां पर आप पार्टी की सरकार है।पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान और पूरी पार्टी वहां पर कांग्रेस के खिलाफ चुनाव लड़ तमाम भ्रष्टाचार के आरोप लगा रही है।वाम दल केरल में कांग्रेस को चुनौती दे रहे हैं।कांग्रेस वहां पर सत्ता से बाहर है।बिहार में राजद ने कांग्रेस को इसी स्थिति में ला दिया कि कुछ बोल नहीं पा रही है।दूसरे राज्यों में लालू यादव और उनके बेटे तेजस्वी यादव वोट नहीं दिलवा सकते हैं। उल्टा उनके साथ खड़े दिखने से कांग्रेस को दूसरे राज्यों में नुकसान होता है।महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे और शरद पंवार कांग्रेस को कम महत्व दे रही है। इसके चलते कांग्रेस कुछ सीटों पर दोस्ताना मुकाबला करेगी।

उत्तर प्रदेश की हालत किसी से छिपी नहीं है।यह लगभग तय रविवार की रैली के बाद केंद्र की मोदी सरकार पर हमला बोलने के बाद अपने अपने राज्यों में जा कर कांग्रेस पर भी हमला बोलेंगे। जेसे केरल में वामदल और बंगाल में टीएमसी के निशाने पर कांग्रेस रहेगी ही रहेगी।पंजाब में आम आदमी पार्टी कांग्रेस को भ्रष्ट बता चुनाव लड़ेगी। जितने भी छोटे मोटे दल रैली में आयेंगे राज्यों में कांग्रेस पर ही हमला बोलेंगे।बिहार और झारखण्ड में कांग्रेस किसी भी हैसियत में नहीं है।इसलिए वहां कोई असर नहीं पड़ेगा।अब यही सवाल है कि कांग्रेस की इस राजनीति के पीछे क्या सोच है।जबकि आप से फ़ायदा कम नुकसान ज्यादा दिख रहा है।आप पार्टी फायदा ले बाद में कांग्रेस को आंख जरूर दिखाएगी।