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बाला साहेब की विरासत को मिट्टी में मिला गए उद्धव ठाकरे, कांग्रेस-एनसीपी से गठबंधन पर अपनी हिंदूवादी विचारधारा को लगाया दांव पर, क्या अब कर पाएंगे वापसी?

BY: Sohail Rahman • LAST UPDATED : November 24, 2024, 7:54 pm IST
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बाला साहेब की विरासत को मिट्टी में मिला गए उद्धव ठाकरे, कांग्रेस-एनसीपी से गठबंधन पर अपनी हिंदूवादी विचारधारा को लगाया दांव पर, क्या अब कर पाएंगे वापसी?

Uddhav Thackeray(कांग्रेस-एनसीपी से गठबंधन के बाद उद्धव ठाकरे की साख पर लगा धब्बा)

India News (इंडिया न्यूज), Uddhav Thackeray: 288 सीटों वाली महाराष्ट्र विधानसभा में उद्धव ठाकरे की शिवसेना को सिर्फ 20 सीटें मिलीं। यह न सिर्फ महाराष्ट्र के इतिहास में शिवसेना का सबसे खराब प्रदर्शन है, बल्कि यह भी तय हो गया है कि एकनाथ शिंदे की शिवसेना ही असली शिवसेना है. इसका मतलब है कि अब शिंदे बाला साहब ठाकरे की विरासत संभालेंगे। उद्धव ठाकरे ने अपना आखिरी मौका खो दिया। इसके संकेत पहले से ही मिल रहे थे, लेकिन उद्धव या तो उन संकेतों को पढ़ नहीं पाए या अपनी झूठी सत्ता के घमंड में उन्हें नजरअंदाज कर दिया। नतीजा यह हुआ कि अब उद्धव के पास न तो पार्टी है, न ही पार्टी का सिंबल और अब तो शिवसैनिकों ने भी उन्हें नकार दिया है। 

उद्धव ने पार्टी को कर दिया बर्बाद

2014 से 2019 के बीच देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व वाली बीजेपी-शिवसेना गठबंधन सरकार ने 5 साल का कार्यकाल पूरा किया और 2019 में बीजेपी-शिवसेना गठबंधन को विधानसभा में बहुमत मिला। यहीं से उद्धव ठाकरे ने पार्टी की बर्बादी का रास्ता अपनाया। उन्होंने चुनाव नतीजे आने के बाद बीजेपी से सीएम की कुर्सी मांगी, लेकिन मना किए जाने पर उद्धव कांग्रेस और एनसीपी के साथ चले गए और महा विकास अघाड़ी सरकार में मुख्यमंत्री बन गए। उद्धव मुख्यमंत्री तो बन गए, लेकिन उन्होंने अपनी पार्टी और विचारधारा को दांव पर लगा दिया। 

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फिर शिंदे ने कर दिया बगावत

उद्धव ठाकरे के कांग्रेस और एनसीपी के साथ जाने के बाद उनकी पार्टी के कार्यकर्ताओं में असंतोष बढ़ गई। फिर उनके कार्यकर्ताओं ने बगावत करनी शुरू कर दी। इसका फायदा उठाते हुए उनकी पार्टी के नेता और मंत्री एकनाथ शिंदे ने उद्धव के खिलाफ बगावत कर दी और 56 में से 41 विधायकों के साथ बीजेपी के खेमे में चले गए। इसके बाद उद्धव ने न सिर्फ सीएम की कुर्सी गंवाई, बल्कि पार्टी भी। शिंदे ने चुनाव आयोग के सामने दावा किया कि असली शिवसेना उनके पास है। 

शिंदे के दावे पर चुनाव आयोग ने लगाई मुहर

गहन विश्लेषण के बाद चुनाव आयोग ने शिंदे की शिवसेना को ही असली शिवसेना करार दिया। इसके खिलाफ उद्धव कोर्ट गए, लेकिन वहां भी उन्हें राहत नहीं मिली। हालांकि मामला अभी सुप्रीम कोर्ट में लंबित है, लेकिन विधानसभा चुनाव के ताजा नतीजों के बाद उद्धव को कोई फायदा मिलने की संभावना लगभग न के बराबर है। ‘महाराष्ट्र ने विश्वास के साथ कहा है कि हम एकजुट हैं तो सुरक्षित हैं।’

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उद्धव को राजनीति में मिली विरासत

साल 2012 में बाला साहेब ठाकरे के निधन के बाद उद्धव ने शिवसेना को पूरी तरह अपने हाथों में ले लिया। हालांकि बाला साहेब ने 2004 में ही उद्धव को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया था। बाला साहेब के इस फैसले के खिलाफ शिवसेना के अंदर भी विरोध के स्वर सुनाई दिए। बाला साहेब के भतीजे राज ठाकरे ने तो शिवसेना छोड़कर महाराष्ट्र नवनिर्माण पार्टी बना ली। बाला साहेब के जिंदा रहते उद्धव के नेतृत्व की परीक्षा नहीं हो सकी। लेकिन 2012 के बाद जब उद्धव ने पार्टी की कमान संभाली तो उन्होंने सबसे पहली गलती 2014 के विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी से गठबंधन तोड़कर की।

उद्धव ने बिना सोचे-समझे उस गठबंधन को तोड़ दिया जो बाला साहब ठाकरे ने 25 साल पहले किया था। बीजेपी ने पहली बार 2014 का विधानसभा चुनाव अकेले लड़ा और 122 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनी। उद्धव को न चाहते हुए भी भाजपा से गठबंधन करना पड़ा और जूनियर पार्टनर के तौर पर सरकार में शामिल हुए। 

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