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हिंदुओं के अल्पसंख्यक होने के बावजूद उन्हें नहीं दिया गया अल्पसंख्यक का दर्जा : सुप्रीम कोर्ट

PUBLISHED BY: Umesh Kumar Sharma • LAST UPDATED : August 8, 2022, 10:34 pm IST
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हिंदुओं के अल्पसंख्यक होने के बावजूद उन्हें नहीं दिया गया अल्पसंख्यक का दर्जा : सुप्रीम कोर्ट

इंडिया न्यूज, नई दिल्ली, (Minority Of Hindus) : हिंदुओं के अल्पसंख्यक होने के बावजूद उन्हें अल्पसंख्यक का दर्जा नहीं दी गई। उक्त बातें हिन्दुओं को अल्पसंख्यक दर्जे की मांग वाली याचिका पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहीं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अल्पसंख्यकों की पहचान राज्यवार होनी चाहिए और पूर्व फैसले में सुप्रीम कोर्ट यह व्यवस्था निश्चित कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अल्पसंख्यकों की जिलावार पहचान का आदेश नहीं दिया जा सकता।

हिन्दुओं के अल्पसंख्यक होने के बावजूद नहीं दिया गया अल्पसंख्यक का दर्जा

सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता से यह भी कहा कि ऐसे ठोस उदाहरण बताइए जहां हिन्दुओं के अल्पसंख्यक होने के बावजूद उन्हें मांगने पर अल्पसंख्यक दर्जा नहीं दिया गया। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने भागवत कथा वाचक देवकी नंदन ठाकुर की याचिका को भी हिन्दुओं को अल्पसंख्यक दर्जा देने की मांग वाली अश्वनी कुमार उपाध्याय की पहले से लंबित मुख्य याचिका के साथ संलग्न करने का आदेश दिया। यह निर्देश न्यायमूर्ति यूयू ललित की अध्यक्षता वाली दो सदस्यीय पीठ ने दी।

देवकी नंदन ठाकुर ने दाखिल की है याचिका

गौरतलब है कि मथुरा के रहने वाले भागवत कथा वाचक देवकी नंदन ठाकुर हिन्दुओं को अल्पसंख्यक दर्जा दिये जाने की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है। याचिका में यह मांग की गई है कि कोर्ट राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम की धारा 2 (सी) को असंवैधानिक और शून्य घोषित करे क्योंकि यह धारा संविधान के अनुच्छेद 14,15,21,29 और 30 का उल्लंघन करती है।

23 अक्टूबर 1993 की अधिसचूना को घोषित की जाए असंवैधानिक

गौरतलब है कि संविधान के यह अनुच्छेद बराबरी और धार्मिक स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार की बात करता है। दूसरी मांग यह है कि भारत सरकार की 23 अक्टूबर 1993 की अधिसचूना असंवैधानिक घोषित की जाए, जिसमें कुछ वर्गों को अल्पसंख्यक दर्जा दिया गया है और तीसरी मांग यह किया गया है कि सरकार को आदेश दिया जाए कि वह अल्पसंख्यकों की जिलावार पहचान करने की गाइड लाइन तय करें,

ताकि जो वर्ग धार्मिक और भाषाई रूप से अल्पसंख्यक हैं उन्हें अल्पसंख्यकों का लाभ शीघ्र मिल सकें। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस ललित ने कहा कि उन्होंने पिछली बार ही कहा था कि ऐसे ठोस उदाहरण दीजिए जिनमें अल्पसंख्यक होने के बावजूद हिंदुओं को मांगने पर अल्पसंख्यक दर्जा नहीं दिया गया। पीठ ने कहा कि पिछली सुनवाई पर वरिष्ठ वकील अरविन्द दत्तार पेश हुए थे और उन्होंने ऐसे उदाहरण पेश करने के लिए समय मांगा था।

अल्पसंख्यकों की पहचान राज्यवार होनी चाहिए

पीठ में शामिल जस्टिस एस. रविन्दर भट ने बताया कि अल्पसंख्यकों की पहचान राज्यवार की जानी चाहिए यह बात सुप्रीम कोर्ट पहले ही अपने फैसले में निश्चित कर चुकी है। कोर्ट ने कहा कि एक केरल का मामला था जिसमें केरल ने ब्लाक और तालुका स्तर पर अल्पसंख्यकों की पहचान किये जाने की मांग की थी और कोर्ट ने कहा था कि नहीं अल्पसंख्यकों की पहचान राज्यवार होनी चाहिए।

जिन राज्यों में हिंदू अल्पसंख्यक हैं उन्हें उसका लाभ दिया जाए

देवकी नंदन की याचिका में जिन राज्यों में हिन्दू अल्पसंख्यक हैं उन्हें अल्पसंख्यक दर्जा दिये जाने की मांग की गई है। याचिका में कहा गया है कि लद्दाख में हिन्दू एक प्रतिशत हैं, मजोरम में 2.75 प्रतिशत, लक्षद्वीप में 2.77 प्रतिशत, कश्मीर में 4 प्रतिशत, नगालैंड 8.74 प्रतिशत, मेघालय में 11.52 प्रतिशत, अरुणाचल प्रदेश में 29 प्रतिशत, पंजाब में 38.49 प्रतिशत और मणिपुर में 41.29 प्रतिशत हैं

लेकिन केंद्र सरकार ने इन जगहों पर हिन्दुओं को अल्पसंख्यक का दर्जा नहीं दिया है। और इस कारण इन राज्यों में हिन्दुओं के अल्पसंख्यक होने के बावजूद उन्हें संविधान के अनुच्छेद 29-30 में मिलने वाले संरक्षण का लाभ नहीं मिलता है। याचिका में उन राज्यों के उदाहरण भी दिये गए हैं जहां मुसलमान, ईसाई और सिखों के बहुसंख्यक होने के बावजूद उन्हें वहां अल्पसंख्यक का दर्जा प्राप्त है।

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