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इंडिया न्यूज, श्रीकृष्ण शर्मा:
अब नेशनल एंटी डोपिंग एजेंसी नाडा (NADA) की जिम्मेदारी अधिक बढ़ जाती है कि सीमित संसाधनों में खेलों पर मंडरा रहे डोपिंग के खतरों से कैसे निपटा जाए। खेलों में बेईमानी के बल पर ईमानदार खिलाड़ी को हराकर जीत हांसिल करने के उद्देश्य से प्रतिबंधित पदार्थों का सेवन करने वाले खिलाड़ियों को रोकना खेल, खिलाड़ी का जीवन और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर देश की छवि को धूमिल होने से बचाने के लिए बेहद जरूरी हो जाता है। इन प्रतिबंधित दवाईयों के गलत र्प्रभाव की वजह से खिलाड़ी पंगु हो रहे हैं। डोपिंग के चलते अनेकों खिलाड़ी अपनी जान भी गंवा चुके हैं।
अंतर्राट्रीय ओलंपिक समिति भी दोषी देश और महासंघों पर भाग लेने पर प्रतिबंध लगाकर खेलों को डोपिंग मुक्त करने की बराबर कोशिश में लगी रहती है। अगले ओेलंपिक खेलों में भी कुछ खेलों पर बैन लगाने की चचार्एं होने लगी हैं। इस मकडजाल में दुनिया का टॉप खिलाड़ी भी फंस चुका है। भारत की स्थिति भी चिंताजनक है। डोपिंग के मामलों में भारत दुनिया के पहले दस देशों में शामिल रहा है। प्रतिस्पर्धा की इस रफ्तार में खिलाड़ी डोपिंग से अपनी क्षमता को बढ़ाकर विजेता बनना चाहता हैै। कई खिलाड़ी जहां साजिस का शिकार हो रहे हैं वहीं डोपिंग की सही जानकारी न होने से भी खिलाड़ियों को डोपिंग के मामलों में घिरता देखा गया है।
भारत के प्रतीभाशाली क्रिकेटर पृथ्वी शॉ को सैयद मुश्ताक अली टी ट्वेंटी टूनार्मेंट के दौरान डोपिंग परीक्षण में फेल होने पर उनपर बीसीसीआई ने अपने डोपिंग रोधी नियम के उल्लंघन के चलते आठ महीने का बैन लगा दिया था। पृथ्वी ने अनजाने में इस प्रतिबंधित पदार्थ का सेवन किया था। उन्हें टरबुटैलाइन के सेवन का दोषी पाया गया था। कहा गया था कि यह दवा जानबूझ नहीं ली गई बल्कि खांसी की शिकायत होने पर एक कफ सिरप के रूप में ली गई थी। लेकिन इसमें प्रतिबंधित पदार्थ टरबुटैलाइन के अंश पाए जाते हैं। टरबुटैलाइन वाडा की प्रतिबंधित पदार्थों की सूची में आता है।
पृथ्वी शॉ पर लगे आरोप पर उन्होंने भी कहा था कि उन्होंने अनजाने में इस पदार्थ का सेवन किया है। उनका यह तर्क बीसीसीआई ने स्वीकार भी किया। लेकिन घटना से खिलाड़ियों को सतर्क रहने की भी जरूरत है कि कोई भी दवाई लेने से पहले यह सुनिश्चित कर लें कि यह वाडा की प्रतिबंधित दवाओं की श्रेणी में तो नहीं आती है। यहां सवाल था कि क्या बीसीसीआई नाडा (NADA) के अधीन है। अगर नहीं तो फिर यहां नाडा (NADA) के नियम कैसे लागू हो सकते हैं।
डोपिंग में आने वाली दवाओं को स्टारॉयड, पेप्टाइडहॉर्मोन, नार्कोटिक्स, डाइयूरेटिक्स और ब्लड डोपिंग की श्रेणियों में बांटा गया है। अपनी ताकत बढ़ाने के मकसद से ली गई प्रतिपंधित दवा पर वाडा के नियमों में चार साल तक की सजा का भी प्रावधान है। लेकिन यह खिलाड़ी की नियत और लिए गए पदार्थ पर निर्भर करता है जो उन्होंने लिया है उन पर क्या एक्शन लिया जाए। वाडा के नियमों को ही नाडा (NADA) भी लागू रखती है।
अंतर्राष्ट्रीय खेलों में डोपिंग के बढ़ते चलन को रोकने के लिए ही वर्ल्ड एंटी डोपिंग एजेंसी वाडा की स्थापना स्विट्जरलैंड में उन्नीस सौ निंन्यानवें में की गई थी। इसी के छ: साल बाद देश में इनके सेवन पर नजर रखने के लिए नेशनल एंटी डोपिंग एजेंसी नाडा (NADA) भी बना रखी हैं। जो समय समय पर अपने स्तर पर खिलाड़ियों को जांच प्रक्रिया से गुजारती रहती हैं।
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