National Mathematics Day 2025: शानदार मैथमैटिशियन श्रीनिवास रामानुजन के कीमती योगदान को याद करने के लिए हर साल 22 दिसंबर को उनके जन्मदिन पर नेशनल मैथमैटिक्स डे मनाया जाता है. श्रीनिवास रामानुजन ने सिर्फ़ 32 साल की उम्र में ऐसी मैथमेटिकल खोजें कीं जिन्हें समझने में मैथमैटिशियन को सालों लग गए? भारत सरकार ने दिसंबर 2011 में इस दिन को ऑफिशियली शुरू किया था और इस फील्ड में रामानुजन के बहुत बड़े योगदान को देखते हुए 22 दिसंबर को नेशनल मैथेमेटिक्स डे के तौर पर मनाया गया. अगले साल 2012 को पूरे देश में नेशनल मैथेमेटिक्स ईयर के तौर पर मनाया गया जिससे मैथेमेटिकल लर्निंग और रिसर्च को और बढ़ावा मिला.
तमिल ब्राह्मण परिवार में हुआ था जन्म
श्रीनिवास रामानुजन का जन्म 22 दिसंबर, 1887 को तमिलनाडु के इरोड में एक तमिल ब्राह्मण (अयंगर) परिवार में हुआ था. उन्होंने कुंभकोणम के एक सरकारी स्कूल में पढ़ाई की. हालांकि, मैथ के अलावा दूसरे सब्जेक्ट में उनकी दिलचस्पी न होने की वजह से, वे 12वीं क्लास की परीक्षा में दो बार फेल हो गए. आज कुंभकोणम के उस स्कूल का नाम रामानुजन के नाम पर रखा गया है.
क्लर्क की नौकरी करने लगे
किसी तरह अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद, रामानुजन 1912 में मद्रास पोर्ट ट्रस्ट में क्लर्क की नौकरी करने लगे. वहां, एक अंग्रेज़ साथी ने रामानुजन को मुश्किल मैथमेटिकल प्रॉब्लम सॉल्व करते देखकर उनकी प्रतिभा को पहचाना. यह साथी, जो खुद मैथमेटिकल का जानकार था ने उन्हें ब्रिटेन में कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी से जुड़े ट्रिनिटी कॉलेज के प्रोफेसर जी.एच. हार्डी से संपर्क करने की सलाह दी.
16 साल की उम्र में शादी
इसी बीच16 साल की उम्र में, रामानुजन के परिवार ने उनकी शादी जानकी अम्मल से कर दी. हालांकि मैथमेटिक्स के लिए उनका जुनून जारी रहा. उन्होंने कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर जी.एच. हार्डी को चिट्ठियों के ज़रिए कुछ मैथमेटिकल फ़ॉर्मूले भेजे. प्रोफेसर हार्डी इन फ़ॉर्मूलों से इतने इम्प्रेस हुए कि उन्होंने रामानुजन को लंदन बुलाया. प्रोफेसर हार्डी उनके मेंटर बन गए. लंदन में, रामानुजन ने प्रोफेसर हार्डी के साथ काम करते हुए कई मैथमेटिकल रिसर्च पेपर पब्लिश किए. उन रिसर्च पेपर्स को देखकर अंग्रेज़ भी रामानुजन की प्रतिभा को मानने लगे और उन्हें सम्मानित किया.
खोजे कई मुश्किल मैथ की समस्याओं के हल
1914 में रामानुजन ने पाई के लिए इनफिनिट सीरीज़ फ़ॉर्मूला खोजा, जो आज भी कई एल्गोरिदम का आधार है. असल में पाई का सही अनुमान लगाना मैथ के इतिहास में सबसे मुश्किल कामों में से एक था. इसके अलावा रामानुजन ने कई मुश्किल मैथ की समस्याओं के हल खोजे, जिनकी लिस्ट बहुत लंबी है. इससे गेम थ्योरी के विकास को बढ़ावा मिला. रामानुजन ने मॉक थीटा फंक्शन के बारे में भी बताया. साल 1729 को रामानुजन नंबर के नाम से जाना जाता है. यह असल में दो नंबरों 10 और 9 के क्यूब का जोड़ होता है. रामानुजन ने प्रोफेसर हार्डी के साथ मिलकर सर्कल मेथड की खोज की.
ट्रिनिटी कॉलेज फेलोशिप पाने वाले पहले भारतीय
ट्रिनिटी कॉलेज में शामिल होने के बाद, श्रीनिवास रामानुजन ने 1916 में बैचलर ऑफ़ साइंस (BSc) की डिग्री हासिल की. 1917 में, उन्हें लंदन मैथमेटिकल सोसाइटी में भी एडमिशन मिला. अगले साल, रामानुजन मैथ में रिसर्च के लिए रॉयल सोसाइटी के लिए चुने गए. अक्टूबर 1918 में उन्हें ट्रिनिटी कॉलेज फेलोशिप मिली, और वे यह फेलोशिप पाने वाले पहले भारतीय बने.
टीबी से मौत
श्रीनिवास रामानुजन की मैथमेटिकल जीनियस का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि सिर्फ़ 33 साल की ज़िंदगी में, उन्होंने 4,000 से ज़्यादा मैथमेटिकल थ्योरम पर रिसर्च की, जिन्हें समझने में दुनिया भर के मैथमेटिशियन को सालों लग गए थे. हालाँकि, हेल्थ प्रॉब्लम की वजह से, रामानुजन 1919 में लंदन से भारत लौट आए. उन्हें ट्यूबरक्लोसिस हो गया, जो उस समय लाइलाज बीमारी थी. घर लौटने के ठीक एक साल बाद, 1920 में उनका निधन हो गया.