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प्रक्रियाओं, प्रतिक्रियाओंं व संयुक्त राष्ट्र के चरित्र में सुधार की जरूरत वक्त की मांग

BY: Vir Singh • LAST UPDATED : September 8, 2021, 10:22 am IST
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प्रक्रियाओं, प्रतिक्रियाओंं व संयुक्त राष्ट्र के चरित्र में सुधार की जरूरत वक्त की मांग

इंडिया न्यूज, नई दिल्ली :

नई दिल्ली। संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि टीएस तिरुमूर्ति ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) में यूएनएससी की बाधाओं और संरचना में असमानता को लेकर बात की है। विश्वभर में आतंकवाद, शांति और सुरक्षा समेत कई मामलों पर अपनी बात रखते हुए उन्होंने कहा है कि यूएनएससी के सदस्य देशों के घरेलू मामलों में दखल न देने का सिद्धांत परिषद का मुख्य सिद्धांत है। तिरुमूर्ति ने बताया कि यूएनएससी के फैसलों से संबंधित अधिकतर समस्याएं एक महत्वपूर्ण कारक से उपजी हैं कि समूह वास्तव में समकालीन दुनिया का प्रतिनिधि नहीं है। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र महासभा के 75वें सत्र में पीएम नरेंद्र मोदी के संबोधन के एक अंश का भी इस अवसर पर हवाला दिया। पीएम के संबोधन में कहा गया है कि प्रक्रियाओं, प्रतिक्रियाओं और संयुक्त राष्ट्र के चरित्र में सुधार की जरूरत समय की मांग है। तिरुमूर्ति ने साफ कहा कि आज की दुनिया 1945 से काफी अलग है, और अगर सदस्य देशों को सुरक्षा परिषद की निष्पक्षता में वाकई में विश्वास करना है, तो उसे कुछ निष्पक्ष मानदंडों के आधार पर निर्णय लेना चाहिए। टीएस तिरुमूर्ति ने जोर देते हुए कहा है कि यूएनएससी को विश्वसनीय, वैध और प्रभावी होने के लिए वर्तमान वास्तविकताओं का प्रतिनिधि होना चाहिए। सदस्य देशों को यह आश्वस्त करना होगा कि परिषद द्वारा लिया गया निर्णय निष्पक्ष और सावधानीपूर्वक है और यह सिर्फ एक पॉलिटिकल टूल नहीं है। तभी निवारक कूटनीति सभी सदस्यों द्वारा प्रभावी और स्वीकार्य होगी।

नई चुनौतियों से निपटने के लिए ठोस कार्रवाई जरूरी

तिरुमूर्ति ने आगे कहा है कि नई और उभरती चुनौतियों से निपटने के लिए हमें बॉर्डर्स के पार समन्वित और ठोस कार्रवाई करने की जरूरत है। इस संबंध में, संयुक्त राष्ट्र और क्षेत्रीय संगठनों के बीच साझेदारी को मजबूत करना और संबंधों को बढ़ाना बेहद महत्वपूर्ण है।

यूएनएससी के फैसले क्षेत्रीय समूहों के निर्णय से अलग

तिरुमूर्ति ने क्षेत्रीय ब्लॉक्स को फैसले लेने की प्रक्रिया में शामिल करने को लेकर कहा है कि ऐसे कई उदाहरण हैं जहां यूएनएससी के फैसले क्षेत्रीय समूहों के निर्णय से अलग हैं। ऐसे में स्थानीय कारकों और जटिलताओं, क्षेत्रीय और उप-क्षेत्रीय संगठनों को साथ लेकर बेहतर समाधान खोजने को लेकर काम करने की जरूरत है।

 

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