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India News (इंडिया न्यूज़), दिल्ली: मोदी सरकार के ख़िलाफ़ अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के बीच आप जिस वक़्त ये लेख पढ़ रहे होंगे, उस वक़्त शायद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लोकसभा में विपक्ष की बखिया उधेड़ रहे हों। मैं अतिशयोक्ति अलंकार का इस्तेमाल इसलिए कर रहा हूं, क्योंकि इससे पहले भी विपक्ष तार तार हो चुका है। 26 विपक्षी दलों के गठबंधन INDIA को ये लगता है कि 24 की पिच तैयार है, लेकिन सच ये है कि वो हिट विकेट है। बीएसपी, बीजद, वाईएसआर, जेडीएस, एआईएमआईएम और बीआरएस जैसे कई दल हैं जिन्हें ना तीन में मानिए और ना ही तेरह में, ऐसे में मोदी सरकार के ख़िलाफ़ INDIA के ‘अविश्वास’ को ‘बैकफ़ायर’ ही समझिए। जनता नतीजा देखती है और उसे ही अपने दिमाग़ की हार्ड डिस्क में सेव करती है। सच ये है कि 140 करोड़ का हिंदुस्तान पुरानी संसद में आज आखिरी अविश्वास प्रस्ताव गिरता देखेगा, बस यही इतिहास में दर्ज हो जाएगा। यह INDIA गठबंधन की पहली हार है।
राहुल गांधी ने लोकसभा में भाषण की शुरुआत अडाणी के नाम से की, रूमी की लेखनी का ज़िक्र किया। कहा जो शब्द दिल से आते हैं, वो दिल तक जाते हैं। अब आप ही फ़ैसला कीजिए कि राहुल के शब्द क्या वाक़ई दिल तक उतरे। राहुल का ये कहना कि एक-दो गोले ज़रूर मारूंगा, सियासत का हल्कापन है। 130 दिन की भारत जोड़ो यात्रा का ज़िक्र करते हुए राहुल गांधी ने समंदर से लेकर पहाड़ तक का ज़िक्र तो किया, बस यही नहीं बताया कि नए भारत का विजन क्या है। कन्याकुमारी से भारत को देखने की बात तो की, बस ये नहीं बताया कि कश्मीर को 370 की बेड़ियों से आज़ाद करने के लिए 75 साल में क्या किया। ‘प्रधानमंत्री मोदी की जेल’ जैसे शब्द राहुल गांधी का डर बयां करते हैं।
काश कि राहुल दिल से बोलते, तो बात वाक़ई दिल तक जाती। रोज़ 10 किलोमीटर दौड़ने जैसी बात कह कर राहुल जताना क्या चाहते हैं- भारत को कुशल राजनेता की ज़रूरत है, एथलीट की नहीं। राहुल जी, आपने संसद में ख़ुद का दर्द बयां किया, लेकिन देश को ज़रूरत उस नेता की है जो जनता का दर्द आत्मसात करें। ज़ुबान पर किसान का नाम लाते हुए, यूपीए के शासनकाल में किसानों की आत्महत्या का खाका और डाटा भी होना चाहिए। राहुल जी आपके लिए आईना है केंद्र सरकार की एक एजेंसी नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस यानी, NSSO की रिपोर्ट जो ये बताती है कि यूपीए सरकार के दौरान 2013 में किसानों की हर महीने की कमाई महज़ 6 हजार 426 रुपए थी यानि साल भर में 77 हज़ार 112 रुपए की कमाई। पंजाब के किसान हर महीने 13 हजार 311 रुपए और केरल के किसान 11 हजार 8 रुपए खर्च करते थे। जबकि, यूपी, बिहार, पश्चिम बंगाल जैसे कुछ राज्यों के किसान कमाई से ज्यादा खर्च करते थे।
सच तो ये है कि मोदी सरकार ने MSP देने का नया रिकॉर्ड बनाया है। MSP के रूप में किसानों को इतना पैसा दिया कि पहले कभी किसी भी सरकार ने नहीं किया। कृषि मंत्रालय की एक रिपोर्ट बताती है, साल 2009 से 2014 तक MSP के तौर पर किसानों को 4,60,528 करोड़ रुपये मिले थे। जबकि, मोदी सरकार आने के बाद इसमें काफी इज़ाफ़ा हुआ। साल 2014 से मार्च 2022 तक किसानों को करीब 14.25 लाख करोड़ रुपये MSP के तौर पर दिए गए। एक और बात, कांग्रेस नेता राहुल गांधी जब ‘केरोसिन’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल करें तो 84 के दंगों को भी दिमाग़ में ज़रूर रखें।
राहुल गांधी को सांसदी वापस मिल गई, बंग्ला भी मिल गया, कुछ नहीं मिला तो वो है जीतने का हौसला। मुहब्बत की दुकान से राहुल गांधी का मोदी विरोध उन्हें नायक नहीं बना सकता। ट्रक चलाने से लेकर धान रोपने तक राहुल की तस्वीरों ने सुर्खिया बटोरीं, लेकिन सच ये है कि तस्वीरें वोट नहीं दिलाया करतीं। 9 साल साल पहले जब राहुल गांधी को अध्यक्ष बनाने की मांग उठी थी तो पार्टी के जयपुर चिंतन शिविर में इस तर्क के साथ उन्हें उपाध्यक्ष बनाया गया कि अभी उन्हें पार्टी का नेतृत्व संभालने के लिए अनुभव की ज़रूरत है। तब से लेकर आज तक शक़ यही है कि क्या राहुल गांधी ने वाक़ई अनुभव हासिल कर लिया है, या फिर कांग्रेस नेताओं को नेहरू-गांधी परिवार के अलावा कोई विकल्प सूझता ही नहीं।
अब भाजपा से मिल रही कड़ी चुनौतियों के मद्देनजर उन्हें फिर से राहुल गांधी में ही उम्मीदें नज़र आने लगी हैं। जब कोई कांग्रेसी सवाल करता है कि राहुल गांधी के पास संगठन में नई ऊर्जा भरने का कोई जज़्बा और नज़रिया है या नहीं तो उसका हाल आज़ाद, सिब्बल, तिवारी जैसा कर दिया जाता है। कांग्रेस को भाजपा की चुनौती से पहले ‘गांधी’ की कसौटी से निकलने की ज़रूरत है। लोकसभा में राहुल के भाषण ने इस बार सिर्फ़ कांग्रेस को ही नहीं I.N.D.I.A. को भी हराया है।
(लेखक राशिद हाशमी इंडिया न्यूज़ चैनल के कार्यकारी संपादक हैं)
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