Indianews (इंडिया न्यूज़), KirodiLal, (अजीत मेंदोला): राजस्थान की राजनीति में चर्चित रहने वाले किरोड़ी लाल मीणा अपने राजनीतिक करियर में पहली बार इस तरह उलझ गए हैं कि उनकी समझ में नहीं आ रहा है कि वे क्या करें और क्या नहीं करें? हालात यह हो गए हैं कि अब उनकी ना तो पहले वाली धाख और साख रही है और ना ही कार्यकर्ताओं में पहले जैसी पकड़। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चुरू की रैली में उनके मुक्के की मार और हौंसला अफजाई के बाद किरोड़ी थोड़े बहुत सक्रिय जरूर हुए।
- पीएम के मजाक-मजाक में मुक्का मारने के बाद भी लोकप्रियता नहीं बढ़ी
- बस्सी की जनसभा में भीड़ नहीं पहुंची तो झल्ला उठे
उन्होंने पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और उनकी सरकार पर पेपर लीक को लेकर हमले किए। कांग्रेसी नेताओं को जेल का भय भी दिखाया, लेकिन बहुत ज्यादा असरकारक नहीं रहा। स्थिति यहां तक हो गई कि उनके राजनीतिक इलाके दौसा के बस्सी विधानसभा क्षेत्र में तो एक चुनावी रैली में भीड़ नहीं होने पर वह बहुत ज्यादा भड़क गए और प्रधानमंत्री मोदी से शिकायत करने की बात कह कर बिना बोले चले गए।
बता दें कि किरोड़ी लाल अपने मीणा समाज में तो बहुत लोकप्रिय हैं, लेकिन उनकी अन्य जातियों में भी ठीक पकड़ मानी जाती रही है। प्रदेश की राजनीति में उनकी ठीक पकड़ थी। भाजपा से राजनीति की शुरुआत की लेकिन वसुंधरा राजे से टकराव के चलते कांग्रेस में चले गए। वहां पर भी कुछ समय रहे, लेकिन कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से टकराव के बाद कांग्रेस छोड़ अकेले संघर्ष करने लगे। हालांकि समय के साथ उनके अपने क्षेत्र दौसा में पकड़ कमजोर होती गई। वर्ष 2014 में लोकसभा का चुनाव हार गए। इसके बाद 2018 के विधानसभा चुनाव में जनता पर उनकी पकड़ और कमजोर होती चली गई। फिर उन्होंने बीजेपी में वापसी की और राज्यसभा से सांसद बने। एक तरह से उनकी दूसरी राजनीतिक पारी की शुरुआत हुई। वहीं, 2023 का विधानसभा चुनाव करीब आते ही उन्होंने गहलोत सरकार के खिलाफ खुल कर मोर्चा खोला। भ्रष्टाचार और पेपर लीक के मामले में वे अकेले नेता थे, जो सबसे ज्यादा हमलावर रहे।
आलाकमान ने फेर दिया किरोड़ी के मंसूबों पर पानी
विधानसभा चुनाव परिणाम के बाद जब मुख्यमंत्री की दौड़ चल रही थी तो एक बार के लिए यह लगा कि भाजपा में वह मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदार हैं। हालांकि सरकार के गठन ने उनके मंसूबों पर पानी फेर दिया। मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी भजनलाल शर्मा को मिली और उन्हें मंत्रिमंडल में ग्रामीण विकास मंत्रालय की जिम्मेदारी दी गई। किसी बड़े और प्रमुख विभाग का जिम्मा उन्हें नहीं दिया गया। उनके पास चुप रहने के अलावा कोई चारा नहीं बचा। लोकसभा चुनाव की घोषणा के बाद भी वह ज्यादा सक्रिय नहीं हुए और एक मैसेज चला गया कि सरकार में अहम जिम्मेदारी नहीं दिए जाने से मीणा समाज नाराज है। प्रधानमंत्री मोदी भी समझ गए थे कि राजस्थान में जातीय समीकरण पक्ष में नहीं है। इसलिए चुरू की रैली में प्रधानमंत्री मोदी ने किरोड़ी लाल मीणा को मंच पर साथ रखा और मजाक में मुक्का भी मारा। जिससे संदेश जाए कि किरोड़ी अभी भी उनके करीबी हैं।
दौसा रोड शो के दौरान और बढ़ाया पीएम ने किरोड़ी का कद
वहीं, दौसा के रोड शो में भी प्रधानमंत्री ने किरोड़ी को साथ रखा। प्रधानमंत्री के इस स्नेह के बाद किरोड़ी सक्रिय तो हुए, लेकिन दौसा लोकसभा के तहत आने वाले बस्सी में हुई जनसभा ने मीणा को तगड़ा झटका दे दिया। जहां कभी किरोड़ी के आने पर हजारों की भीड़ यूं ही जुट जाती थी, अब गिनती के लोग भी नहीं पहुंचे। जानकारों की मानें तो किरोड़ी की लोकप्रियता अब पहले वाली नहीं रही। फिर जिस तरह से बीजेपी सरकार में उन्हें जगह दी गई, उससे भी उन्हें नुकसान हुआ है। अब वह इस स्थिति में नहीं हैं कि आवाज उठा सकें। अब देखना होगा कि चुनाव के बाद होने वाले मंत्रिमंडल विस्तार और फेरबदल में उन्हें क्या कुछ नई जिमेदारी दी जाएगी। लेकिन इससे पहले बीजेपी को दौसा और टोंक सवाई माधोपुर में जीत हासिल करनी होगी।