India News (इंडिया न्यूज़),Rashid Hashmi,Nuh Violence: नूंह, नांगलोई, वाराणसी, अमरोहा, पीलीभीत, जहांगीरपुरी में सड़क पर शैतान थे। इस्लाम में शैतान को हराम माना गया है। क़ुरान शरीफ़ में हिंसा की जगह नहीं है, हदीस में मुहब्बत है- दोनों में नफ़रत की जगह नहीं है। मैं सहम जाता हूं ख़ून देख कर, डर जाता हूं दंगों के बारे में सोच कर, क्योंकि ये मेरा इस्लाम नहीं है। धर्म तो धारण करने की चीज़ है। मेरा धर्म नफ़रत, बवाल, हिंसा धारण नहीं कर सकता। मेरा इस्लाम सिखाता है कि सुबह मां को प्यार की नज़र से देखना भी हज का सवाब देता है। एक हदीस में कहा गया है कि बूढ़ी मां की सेवा करना ही जिहाद है।
इस्लामिक नियम एक समूह के फायदों को दूसरे समूह पर प्रधानता नहीं देता, और न ही किसी व्यक्ति के विरोध में दूसरे को नुकसान पहुंचाने का हिमायती है। इस्लाम एकेश्वरवादी धर्म है, जिसकी बुनियाद में ख़ुदा की तरफ़ से अंतिम रसूल और नबी, मुहम्मद की तरफ़ से इंसानों तक पहुंचाई गई अंतिम ईश्वरीय किताब ‘कुरान’ है। इस्लाम शब्द का अर्थ है- ‘अल्लाह को समर्पण’। जो भगवान या ईश्वर को समर्पित है वो बवाली तो नहीं बन सकता, वो ख़ून नहीं बहा सकता, वो किसी की जान नहीं ले सकता।
नूंह के बवाली, उदयपुर के क़साई, दिल्ली के दंगाई मेरे इस्लाम के ज़ीरो हैं, दैत्य हैं, दानव हैं। इस्लाम को तलवार की ताक़त से प्रचारित और प्रसारित करने का ठेका लेने वालों को शायद पता नहीं होगा- अरब मुसलमानों के ग़ैर-मुस्लिम विजेताओं ने अरबों का इस्लाम धर्म ख़ुद अपना लिया था। तातारियों के पास तलवार की ताक़त थी, फिर भी उस ज़माने में अहिंसक इस्लाम की जीत हुई थी।
इस्लाम ने शराब को हर गुनाह की जड़, ज़कात को अनिवार्य दान, कलमा को शहादत की गवाही माना है। मैंने क़ुरान की आयत पढ़ी है, सूरा और कलमा से वाक़िफ़ हूं। इस्लाम से जुड़ी किसी भी किताब में आतंकवाद वाले जिहाद का ज़िक्र नहीं मिला। आतंकवाद को जिहाद से जोड़ने वाले जाहिल जल्लादों के लिए आईना है मेरे पास। ‘जिहाद’ अरबी का शब्द है, जिसका अर्थ है ‘संघर्ष करना’। हदीस का ज़िक्र करूं तो कई तरह के जिहाद मिलते हैं- दिल से, ज़ुबान से और हाथ से। दिल से जिहाद यानि अपने भीतर बसी बुराइयों के शैतान से लड़ना। ज़ुबान से जिहाद का मतलब सच बोलना। हाथ से जिहाद का मतलब ग़लत का जिस्म की ताक़त से मुकाबला करना, जिसमें हथियार वर्जित है। जिहाद के नाम पर जहालत करने वाले शैतानों को मेरी चुनौती है- किसी हदीस में मुझे जान लेने वाला जिहाद दिखा दें।
मुस्लिमों के पवित्र ग्रंथ क़ुरान शरीफ़ में जिहाद अल-अकबर के मायने ख़ूबसूरती से समझाए गए हैं। जिहाद अल-अकबर यानि खुद की बुराई पर जीत हासिल करो, समाज के भीतर की बुराइयों से लड़ो, नस्लीय भेदभाव मिटाओ और महिलाओं के अधिकारों के लिए कोशिश करो। इस्लाम हिंसा नहीं अहिंसा का पैग़ाम देता है। ऐसे में जो लोग भी बेगुनाहों को मार-काट रहे हैं, वो सिर्फ नाम के मुसलमान हैं।
मेरा मानना है कि भारत में इस्लाम को रूढ़िवाद के चश्मे से देखने वालों के ख़िलाफ़ जायज़ सवाल उठाना ज़रूरी है। मेरा सवाल है- कितनी बार इस्लाम में सुधार के लिए अंदरूनी तौर पर आवाज़ उठी ? मेरा सवाल है- कितने मुस्लिम बहुल देश हैं जो इस्लामिक न होकर लोकतांत्रिक हैं ? मेरा सवाल है- ऐसे कितने इस्लामिक देश हैं जिन्होंने बोकोहरम जैसे नरसंहार की हमेशा निंदा की हो ? मेरे सवाल कट्टरपंथियों को शूल सरीखे चुभ रहे होंगे, मुझे फ़र्क़ नहीं पड़ता। मेरा इस्लाम अल्लाह का है, मुल्ला का नहीं। मेरा इस्लाम मुहब्बत की सर्द हवाओं वाला है, ख़ून खौलाने की गर्मी वाला नहीं। मेरा इस्लाम भारत वाला है, पाकिस्तान वाला नहीं। मेरे इस्लाम में सबसे पहले मेरा भारत है- एक सूत्र में पिरोया हुआ भारत।
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