इंडिया न्यूज, नई दिल्ली:
One Nation One Election एक राष्ट्र एक चुनाव को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ड्रीम प्रोजेक्ट समझा जाता है और इसी सप्ताह संसद में जो चुनाव सुधार विधेयक पारित हुआ है उसे इसी से जोड़कर देखा जाए तो गलत नहीं होगा। गौरतलब है कि संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान इस हफ्ते मंगलवार को राज्यसभा में चुनाव कानून (संशोधन) विधेयक पास हुआ था।
अब इसके बाद केंद्र सरकार की अगली योजना आम मतदाता सूची बनाने की होगी। आम मतदाता सूची का मतलब है कि देश में होने वाले सब तरह के इलेक्शन चाहे यह नगरपालिका हो या पंचायत के इलेक्शन या प्रदेश विधानसभा या लोकसभा के इलेक्शन हों, सबके लिए एक समान सूची होगी।
केंद्र सरकार आम मतदाता सूची बनाने के लिए जल्द राज्यों के चुनाव आयुक्तों के साथ मीटिंग करने वाली है ताकि उन्हें संसद के अलावा विधानसभा और स्थानीय निकाय चुनावों के लिए एक आम मतदाता सूची अपनाने के लिए राजी किया जा सके। चुनाव कानून (संशोधन) विधेयक लाने के बाद से यही माना जा रहा है कि सराकर इसी तरफ कदम बढ़ा रही है। बीजेपी अपने कार्यकर्ताओं को पहले ही लोकसभा और विधानसभा चुनावों को एक साथ कराए जाने की योजना पर देशभर में जनता को जागरूक करने के लिए कह चुकी है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले साल नवंबर में में एक कार्यक्रम के दौरान भी अलग-अलग मतदाता सूचियों को संसाधनों की बर्बादी बताया था। अखिल भारतीय पीठासीन अधिकारी सम्मेलन को संबोधित करते हुए उन्होेंने कहा था कि लोकसभा, विधानसभा और स्थानीय चुनावों के लिए एक ही मतदाता सूची उचित है। पीएम ने कार्यक्रम में यह भी कहा था कि एक राष्ट्र एक चुनाव सिर्फ बहस का विषय नहीं बल्कि यह भारत की आवश्यकता है।
गौरतलब है कि कई राज्यों में पंचायत व नगरपालिका चुनावों के लिए जिस वोटर लिस्ट का इस्तेमाल किया जाता है वह संसद और विधानसभा चुनावों की मतदाता सूची से अलग होती है। हर बार अलग-अलग वोटर लिस्ट बनाने में धन व संसाधनों का खर्च होता है। (One Nation One Election)
सरकार आम मतदाता सूची और एक साथ चुनावों को खर्च व संसाधन बचाने के तरीके के तौर पर पेश कर रही है। इसके पीछे यह भी तर्क है कि दो विभिन्न संस्थाएं जब अलग-अलग वोटर लिस्ट तैयार करती हैं तो इसमें काफी दोहराव होता है। इसका नतीजा यह होता है कि इस काम में लगे कर्मचारियों की कोशिश और खर्च भी डबल हो जाते हैं, जबकि एक मतदाता सूची के जरिए भी यह काम हो सकता है। अलग-अलग वोटर लिस्ट होने से वोटरों के बीच भ्रम की स्थिति पैदा होती है, क्योंकि कई बार एक वोटर लिस्ट में व्यक्ति का नाम मौजूद होता है, जबकि दूसरे में नहीं।
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