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एक राष्ट्र एक चुनाव :मोदी का भगीरथ प्रयास

Written By: Rana Yashwant

PUBLISHED BY: Akriti Pandey • LAST UPDATED : December 17, 2024, 5:40 pm IST
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एक राष्ट्र एक चुनाव :मोदी का भगीरथ प्रयास

One Nation One Election

India News (इंडिया न्यूज),One Nation One Election:  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश में चुनावों को लेकर एक क्रांतिकार बदलाव के पक्षधर रहे हैं और 2024 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी के घोषणापत्र में भी उसका उल्लेख था. वह है एक राष्ट्र एक चुनाव. इसके लिए केंद्र सरकार ने सारा जोर लगा रखा है. केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम घेघवाल ने लोकसभा में ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ विधेयक पेश किया. इसको पटल रखने के साथ ही केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने सदन को बताया कि प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने राय दी है कि विधेयक को व्यापक परामर्श के लिए संयुक्त संसदीय समिति यानी जेपीसी के पास भेजा जाना चाहिए। जाहिर है अब जेपीसी का गठन होगा और चूंकि उसमें सदस्यों की भागीदारी दलों के सांसदों की संख्या के आधार पर निर्भर करती है तो बीजेपी के सदस्यों की संख्या ना सिर्फ अधिक होगी बल्कि अध्यक्ष पद भी वह अपने पास रखना चाहेगी। जेपीसी के अंदर परामर्श और विचार के बाद बहुमत के आधार पर सहमति तैयार की जाएगी। उसके बाद कमेटी अपनी रिपोर्ट लोकसभा स्पीकर को सौंपेंगी।अगर जेपीसी ने हरी झंडी दिखा दी तो विधेयक संसद में लाया जाएगा। इस विधेयक को कानून बनने में कितनी और कैसी अड़चने हैं, इस पर चर्चा आगे करेंगे, फिलहाल बिल के मसौदे के आधार पर होनेवाले बदलावों को समझते हैं.

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एक देश, एक चुनाव के लिए देश की संसद में 129वां संविधान संशोधन बिल पेश किया गया है. इसके मुताबिक देश में चुनाव दो चरणों में करवाए जाएंगे. पहले फेज में लोकसभा और विधानसभा चुनाव होंगे और इसके सौ दिन के अंदर स्थानीय चुनाव करवाए जाएंगे. मसलन लोकसभा या किसी विधानसभा को उसका कार्यकाल तीन साल पूरा होते ही भंग कर दिया जाता है, तो मध्यावधि चुनाव के बाद जो सरकार बनेगी वह सिर्फ दो के लिए ही होगी. इसके साथ यह भी ध्यान रखना है कि रामनाथ कोविंद कमिटी की सिफारिश है कि अप्वाइंटेड डेट के बाद राज्य चुनावों की ओर से गठित सभी विधानसभाएं केवल 2029 में आगामी आम चुनावों तक की अवधि के लिए होंगी. इस तरह से देखें तो 2024 और 2028 के बीच सभी विधानसभाओं का कार्यकाल 2029 के आगामी लोकसभा चुनावों तक पूरा हो जाएगा. फिर सारी विधानसभाओं के चुनाव 2029 के आम चुनावों के साथ होंगे. इसको आप ऐसे भी समझ सकते हैं कि किसी राज्य में अगर 2025 में विधानसभा चुनाव होते हैं तो वहां चार साल के कार्यकाल वाली सरकार होगी और जिस राज्य में 2027 में चुनाव होंगे, वहां सरकार की मियाद दो साल की ही होगी. रिपोर्ट में यह भी सिफारिश की गई है कि त्रिशंकू सदन, अविश्वास प्रस्ताव या ऐसी किसी भी परिस्थिति में नए सदन के गठन के लिए नए सिरे से चुनाव कराए जा सकते हैं – चाहे वह लोकसभा में हो या राज्य विधानसभाओं में.

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यह संभव तभी है जब संविधान में जरुरी संशोधन किए जाएं. इस लिहाज से लोकसभा और विधान सभाओं के लिए एक साथ चुनाव कराने के लिए अनुच्छेद 82(A) को जोड़ना होगा. संसद के दोनों सदनों की अवधि के लिए अनुच्छेद 83 में बदलाव करने होंगे. विधानमंडलों के चुनावों के संबंध में प्रावधान करने की संसद की शक्ति के लिए अनुच्छेद 172 और 327 में बदलाव करने होगे. कुल मिलाकर अलग-अलग चरणों के लिए, दो संवैधानिक संशोधन अधिनियम होंगे. इनके तहत नए प्रावधानों को शामिल करने और दूसरों में संशोधन समेत कुल 15 संशोधन किए जाएंगे.

पहला संवैधानिक संशोधन विधेयक: पहला विधेयक संविधान में एक नया अनुच्छेद – 82A जोड़ने के लिए होगा. दरअसल अनुच्छेद 82A के जरिए देश में एक साथ चुनाव कराने की प्रक्रिया को संवैधानिक तौर पर मान्यता दी जाएगी.

दूसरा संवैधानिक संशोधन विधेयक: इसके माध्यम से संविधान में एक नया अनुच्छेद 324A जोड़ा जाएगा. यह केंद्र सरकार को अधिकृत करेगा कि वह देश में लोकसभा और विधानसभा चुनावों के साथ साथ नगर पालिकाओं और पंचायतों के चुनाव भी करवाएगी. अभी तक स्थानीय चुनाव राज्य सरकारों का दायित्व रहे हैं.

राज्यों का समर्थन: संविधान में जितने भी संशोधन होते हैं वे अनुच्छेद 368 की संशोधन प्रक्रियाओं के तहत होते हैं. ऐसे में पहले संविधान संशोधन में तो संसद में दो तिहाई बहुमत के जरिए कानून बन जाएगा. कारण ये है कि लोकसभा और विधानसभा के चुनाव संबंधित कानून बनाने का अधिकार सिर्फ संसद को है, लेकिन स्थानीय निकायों के लिए संविधान में राज्यों को अधिकृत किया गया है. इसलिए दूसरे संशोधन विधेयक को पास कराने के लिए कम से कम आधे राज्यों की मंजूरी की आवश्यकता होगी.

यही नहीं, सिंगल वोटर लिस्ट और मतदाता पहचान पत्र के संबंध में कुछ प्रस्तावित बदलावों के लिए भी कम से कम आधे राज्यों की समर्थन की जरूरत होगी. संविधान के अनुच्छेद 325 का एक नया सब-सेक्शन सुझाव देगा कि एक निर्वाचन क्षेत्र में सभी मतदान के लिए एक ही वोटर लिस्ट होनी चाहिए. अगर संसद में भी दो तिहाई बहुमत पर गौर करें तो यह काम सरकार के लिए टेढी खीर दिख रहा है. लोकसभा की 543 सीटों में एनडीए के पास अभी 292 सीटें हैं. दो तिहाई बहुमत के लिए 362 सांसदों का समर्थन चाहिए. राज्यसभा में 245 सांसद है औऱ इस हिसाब से दो तिहाई 164 सीटें बनती हैं. एनडीए के पास राज्य सभा में अभी 112 सीटें हैं. 6 मनोनीत सांसदों का भी उसे समर्थन जरुर है, फिर भी आंकड़ा दूर है.

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केंद्र सरकार वन नेशन वन एलेक्शन के पीछे तर्क देती है कि इससे चुनाव खर्च कम होंगे और विकास को गति मिलेगी. बार बार चुनावों में जाने से देश के संसाधनों और विकासपरक नीतियों को नुकसान पहुंचता है. पूर्व राष्ट्रपति और वन नेशन वन एलेक्शन के लिए बनाई गई समिति के अध्यक्ष रामनाथ कोविंद ने कहा है कि देश में 2029 या 2034 में एक साथ चुनाव कराए जा सकते हैं. जिस दिन हमारी अर्थव्यवस्था 10%-11% तक बढ़ेगी, हमारा देश दुनिया की तीसरी-चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं की कतार में होगा. भारतीय जनसंख्या के विकास के लिए यह मॉडल सक्षम है.

लेकिन जो दल इसका विऱोध कर रहे हैं उनके मुताबिक एक राष्ट्र एक चुनाव का कॉन्सेप्ट संघवाद के सिद्धांत को प्रभावित करता है. कारण यह है कि यह विधायकों के कार्यकाल को सीमित करके राज्य के लोगों को स्थिर शासन के अधिकार से वंचित करता है. वैसे तो अब इस विधेयक को जेपीसी में जाना है लेकिन प्रधानमंत्री मोदी इस बिल को लेकर जितने सजग औऱ आग्रही हैं, वह इसको इसके अंजाम तक पहुंचा देगी, इसकी उम्मीद बीजेपी के तमाम नेता और कार्यकर्ता कर रहे हैं.

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