अजीत मैंदोला, नई दिल्ली:
Opposition Shattered In Monsoon Session संसद का मानसून सत्र सरकार के लिहाज से तो ठीक ठाक रहा।लेकिन विपक्ष के लिये निराशाजनक था।विपक्ष पांच राज्यों की हार से कहीं ना कहीं बैक फुट पर और बंटा हुआ दिखाई दिया।महंगाई को लेकर सरकार को घेरने की कोशिश के मामले में भी विपक्ष ने अलग अलग राग अलापा।पहली बार कांग्रेस पूरी तरह से अलग थलग दिखाई दी।सहयोगियों ने भी दूरी बनाए रखी। सीधे तौर पर यह संकेत मिलने लगे हैं 2024 के चुनाव से पहले जो भी तीसरा मोर्चा बनेगा उसकी अगुवाई कांग्रेस नही करेगी।
यूपीए के सहयोगी दल शिवसेना और राकांपा खुद इसके संकेत दे चुके हैं।उनकी तरफ से कोशिशें भी शुरू हो गई हैं।हालांकि इसके साथ यह भी तय है कि महाराष्ट्र में शिवसेना की अगुवाई में चल रही गठबंधन की सरकार को कोई नही गिरायेगा। सूत्रों की माने तो राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के नेता शरद पंवार बीजेपी के साथ नही जाएंगे।उनकी पार्टी शिवसेना और कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार चलाते रहेंगे। जानकारों का भी मानना है कि तीनों दल जानते हैं सरकार गिराने से तीनों का ही बड़ा नुकसान है।तीनों को एक दूसरे की जरूरत है।
शरद पंवार के मानसून सत्र के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ हुई एक बैठक के बाद तमाम तरह की राजनीतिक चर्चा शुरू हो गई थी।बीच बीच मे खबरें भी उड़ाई जाती रही है कि राकांपा गठबंधन से अलग हो बीजेपी के साथ जा सकती है।लेकिन पंवार के करीबी बताते हैं ऐसा कुछ नही होने वाला है।पंवार बीजेपी में नही जाएंगे।दरअसल देश की राजनीति आज जिस दौर से गुजर रही है उसमें राकांपा, शिवसेना और कांग्रेस एक दूसरे का साथ छोड़ने की स्थिति में नही है।पंवार और उद्वव ठाकरे जानते हैं बीजेपी के साथ जाने का मतलब पूरी तरह से उनके अनुसार चलना पड़ेगा।बीजेपी की सभी शर्ते माननी पड़ेगी।दोनों नेता ऐसा कोई खतरा मोल नही लेना चाहते हैं जिससे महाराष्ट्र में उनका रुतबा घटे।
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जहाँ तक कांग्रेस का सवाल है तो उसके पास आज के हालात में महाअगाड़ी गठबंधन में बने रहने के अलावा कोई चारा नही है।अलग होने के बारे में कांग्रेस सोच भी नही सकती है।पिछले दिनों सवाल उठाने वाले नेताओं को सोनिया गांधी ने साफ समझा दिया है कि चुपचाप सरकार का साथ दें।दरअसल पांच राज्यों में हुई करारी हार के बाद कांग्रेस सबसे ज्यादा दबाव में है। हालत यह हो गई है कि उसके सहयोगी भी उस पर दबाव बना रहे हैं कि वह यूपीए का मोह छोड़ दें।इसी के चलते बजट सत्र के दूसरे भाग में सोनिया गांधी विपक्ष के नेताओं के साथ किसी प्रकार की बैठक नही कर पाई।अकेले ही उसने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोला।पहली बार ऐसा हुआ कि कांग्रेस खुद अलग थलग पड़ गई।
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ममता बनर्जी की पार्टी टीएमसी ने अलग मोर्चा संभाला।ममता और शरद पंवार इसी कोशिश में लगे हैं कि यूपीए से अलग एक नया मोर्चा बनाया जाये जिसकी अगुवाई कोई गैर कांग्रेसी या गैर गांधी अगुवाई करे।जिससे 2024 में राजग को कड़ी टक्कर दी जा सके।हालांकि इस मोर्चा बन्दी में टीआरएस के मुखिया और तेलंगाना के सीएम के चंद्रशेखर राव भी अलग से जुटे हैं।वह भी कांग्रेस को नेतृत्व नही देना चाहते हैं।मतलब कांग्रेस इस समय अकेली पड़ गई है।राजद यूपीए से पहले ही अलग हो चुका है।द्रमुक की मर्जी पर निर्भर है वह कांग्रेस का कब तक साथ देता है।शिवसेना और पंवार महाराष्ट्र की सरकार बचाये रखने के लिये कांग्रेस को साथ ले कर रखेंगे लेकिन यूपीए का हिस्सा रहेंगे अब आशंका जताए जाने लगी है।बाकी राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के जुलाई में होने वाले चुनाव से साफ होगा विपक्ष किस करवट बैठता है।हालांकि राजग को दोनों सीट जीतने में कोई परेशानी नही है उनके पास बहुमत का पूरा जुगाड़ है।बस दिलचस्पी इतनी रहेगी कि विपक्ष क्या करता है।
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