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अजीत मैंदोला, नई दिल्ली: (PM Modi BJP Jaipur Meeting)। राजस्थान की राजधानी जयपुर में दो दिन चली बीजेपी के राष्ट्रीय पदाधिकारियों की बैठक से दो बातें साफ हो गई हैं। एक आगामी विधानसभा और लोकसभा चुनावों तक बीजेपी केंद्र की उपलब्धियों से ज्यादा वंशवाद और परिवारवाद पर ही कांग्रेस समेत पूरे विपक्ष को घेरेगी।
प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी और बाकी वरिष्ठ नेताओं की स्पीच से इसके संकेत मिले हैं। यूपी में बीजेपी को वंशवाद ने लाभ भी पहुंचाया था। दूसरा राजस्थान समेत होने वाले सभी विधानसभा राज्यों के चुनावों में स्थानीय किसी भी नेता को मुख्यमंत्री के चेहरे के रूप में प्रोजेक्ट नहीं किया जाएगा। केवल और केवल पीमए मोदी के चेहरे को आगे कर वोट मांगे जाएंगे। चुनाव बाद दिल्ली का केंद्रीय नेतृत्व ही तय करेगा कि सीमए कौन सीएम होगा।
प्रत्याशियों का चयन भी सर्वे के आधार पर केंद्र ही करेगा। नेताओं के परिवार वालों को टिकट देने में भी कंजूसी बरती जाएगी।जयपुर से मिले संकेत मौजूदा और पूर्व मुख्यमन्त्रियों के लिये बहुत शुभ नही कहे जा सकते हैं।राष्ट्रीय पदाधिकारियों की बैठक में मुख्यरूप से आधे दर्जन से भी ज्यादा राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों के साथ 2024 के लोकसभा चुनावों की जीत की रणनीति पर चर्चा हुई। इसके साथ सबसे बड़ा एजेंडा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तय कर दिया। प्रधानमंत्री मोदी ने नेताओं और कार्यकतार्ओं को साफ किया कि अभी हमें चुप नही बैठना आने वाले 25 साल के लिए अभी से तैयारी करनी है। मतलब साफ था कि केवल 2024 नहीं बल्कि आगे के बारे में सोचें।
पीएम मोदी के तेवरों से साफ था कि वह पार्टी को उस ऊंचाई पर ले जाना चाहते हैं जहां कांग्रेस के 50 साल के शासन के इतिहास को भुलाया जा सके। अभी जिस तरह से देश का माहौल बना है उसमें लगता नहीं है कि बीजेपी को लोकसभा चुनाव तक किसी भी राज्य का चुनाव जीतने में कोई परेशानी आये। कांग्रेस और विपक्ष का कमजोर होना बीजेपी के लिए वरदान साबित हो रहा है।
अभी का देश का माहौल यंू भी बीजेपी के पक्ष में दिख रहा है। महंगाई और बेरोजगारी पर मंदिर मस्जिद पूरी तरह से हावी है। हालांकि कांग्रेस लगातार बीजेपी पर देश भर में साम्प्रदायिक हिंसा भड़काने का आरोप लगा माहौल बिगाड़ने का आरोप लगा तो रही है।लेकिन बीजेपी के नेता फिलहाल कांग्रेस के आरोपों को अनसुना कर इस बात से खुश हैं कि कांग्रेस उनके जाल में फंसती जा रही है।
ज्ञानवापी मस्जिद का मामला हो या धीरे धीरे बढ़ रहा मथुरा का मामला बीजेपी को पूरी तरह से सूट कर रहा है।जबकि कांग्रेस के लिये परेशानी बढ़ाने वाला है।हालांकि बीजेपी इन मामलों में सीधे कहीं शामिल नही है सहयोगी संगठन और विरोधी दल खुद ही हवा दे माहौल बना रहे हैं।इसलिये बीजेपी के नेताओं के चेहरों पर चुनावों को लेकर कोई शिकन नहीं दिखाई दी।
बीजेपी के नेताओ को लग रहा है कि यूपी की रणनीति बाकी राज्यों में जीत हांसिल करा देगी। यूपी ,उत्तराखण्ड जैसे राज्यों में प्रधानमंत्री मोदी को प्रमुख चेहरा बनाने का लाभ मिला। मोदी की छवि ओर मुख्यमंत्री योगी के फैसलों ने जीत की राह आसान की। योगी भी जिताऊ चेहरे के रूप में उभरे।इसलिये बीजेपी के राष्ट्रीय अध्य्क्ष जेपी नड्डा ने बैठक शुरू होने से पहले ही यूपी की तर्ज पर वंशवाद को आगे कर कांग्रेस को भाई बहन की पार्टी करार दिया।
इनके बाद दिल्ली से जुड़े प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने संबोधन में गांधी परिवार का नाम लिये बिना वंशवाद की राजनीति के लिये कांग्रेस को जमकर आड़े हाथ लिया।मतलब बीजेपी ने कांग्रेस को घेरने के लिये एक बार परिवारवाद ओर वंशवाद को हथियार बना लिया है।आधा दर्जन से ज्यादा जिन राज्यों में लगातार चुनाव होने है बीजेपी का मुकाबला सीधा कांग्रेस है।इनमे गुजरात,हिमाचल,कर्नाटक,मध्य्प्रदेश,छत्तीसगढ़ और राजस्थान वो राज्य हैं जहाँ कांग्रेस सीधे मुकाबले में होगी।बीजेपी इन राज्यों में वंशवाद तो मुद्दा बनाएगी साथ ही कानून व्यवस्था ओर बुल्डोजर भी एक मुद्दा होंगे।
कांग्रेस की सबसे ज्यादा उम्मीदें राजस्थान,मध्य्प्रदेश और छत्तीसगढ़ से ही हैं।क्योंकि इन राज्यो में बीजेपी में अंदुरुनी लड़ाई जोरो पर है।लेकिन बीजेपी ने जिस हिसाब से बैठक में गुट में बंटे अपने नेताओ को साधा है उससे कांग्रेस की चिंता बढ़ सकती है।क्योंकि राजस्थान में बीजेपी आलाकमान के लिये सबसे बड़ी चुनौती पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को साधना है।वहीं मध्य्प्रदेश में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को लेकर भी फैसला करना है।
आलाकमान ने त्रिपुरा में एक साल पहले मुख्यमंत्री बदल बाकी मुख्यमन्त्रियों की धड़कन पहले ही बढ़ा दी है।कर्नाटक के बसवराज बोम्मई के अचानक दिल्ली दौरे ने बदलाव की चचार्एं शुरू कर दी हैं। आने वाले दिनों कुछ बदलाव देखने को मिल सकते हैं।जहाँ तक राजस्थान की बात की जाए तो यूपी की जीत के बाद पूर्व सीएम राजे और उनके समर्थकों में बदलाव आया है।यूपी चुनाव के बाद राजे समर्थक भी समझने लगें हैं आक्रमकता से काम नही चलेगा।इसलिये जयपुर या अन्य जगह हुए कार्यक्रमो में राज्य के बीजेपी पूरी तरह से एक जुट दिखे।इससे प्रदेश अध्य्क्ष सतीश पूनिया को ताकत मिली है।हालांकि राजस्थान में भी सीएम बनने की रेस में राजे सहित आधा दर्जन नेता शामिल हैं।
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