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PM MODI ON “Veer Sahibzaade” (DELHI):दिल्ली के मेजर ध्यानचंद स्टेडियम में 26 दिसंबर को ‘वीर बाल दिवस’ के अवसर पर कार्यक्रम आयोजित किया गया। इस कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी भी उपस्थित थे। यह कार्यक्रम वीर साहिबजादों को समर्पित था। इस कार्यक्रम के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने वीर साहिबजादों को श्रद्धांजलि अर्पित की,और वहां मौजूद जनता को संबोधित किया।उन्होंने अपने संबोधन में मुगलों का जिक्र किया।
पीएम मोदी ने कहा कि भारत में आज पहली बार ‘वीर बाल दिवस’ मनाया जा रहा है। मैं वीर साहिबजादों के चरणों में नमन करते हुए श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ। इसके लिए मै अपनी सरकार का ध्यानवाद करता हूँ और अपनी सरकार का सौभाग्य भी मानता हूं।
मोदी ने आगे कहा कि जहा एक ओर आतंक की पराकाष्ठा था। वही दूसरी ओर आध्यात्म का शीर्ष था। एक ओर मजहबी उन्माद थे ,तो दूसरी ओर सबमें ईश्वर देखने वाली उदारता थी। इस सबके बीच, एक ओर आतंक के लाखों की फौज तो वही दूसरी ओर अकेले होकर भी निडर खड़े हमारे गुरु के वीर साहिबजादे। वीर साहिबजादे न किसी के सामने झुके और न किसी की धमकी से डरे ।
मुगलों का जिक्र करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि हर क्रूर चेहरे के सामने एक से एक महान, महानायकों और महानायिकाओं के भी चरित्र रहे है। लेकिन ये भी बात सच है कि चमकौरऔर सरहिंद के युद्ध में जो कुछ हुआ, वो ‘भूतो न भविष्यति’ था। वही एक ओर धार्मिक कट्टरता में अंधी इतनी बड़ी मुगल सल्तनत,और उसके सामने दूसरी ओर ज्ञान और तपस्या में तपे हुए हमारे गुरु ,जो भारत के प्राचीन मानवीय मूल्यों को जीने वाली परंपरा और सरहिंद की लड़ाई , वास्तव में यह अविस्मरणीय है। ये लड़ाई तीन शताब्दी पहले लड़ी गई है। लेकिन अतीत इतना भी पुराना नहीं है कि उसे भुला जा सके। आने वाले हजारों साल तक हम इनके बलिदानों को याद रखेंगे।
औरंगजेब का जिक्र करते हुए पीएम ने कहा कि उस दौर की कल्पना कीजिए। जब औरंगजेब के आतंक के खिलाफ भारत को बदलने के उसके मंसूबों के खिलाफ, गुरु गोविंद सिंह जी उसके सामने पहाड़ की तरह खड़े रहे। लेकिन कम उम्र के दो बालक जोरावर सिंह साहब और फतेह सिंह साहब से औरंगजेब और उसकी सेना की क्या थी ? दुश्मनी।
इसलिए, क्योंकि औरंगजेब और उसकी सेना गुरु गोविंद सिंह के बच्चों जोरावर सिंह साहब और फतेह सिंह साहब का धर्म तलवार के दम पर बदलना चाहते थे। लेकिन भारत के वो वीर सपूत मौत से भी नहीं डरे। उन दोनों को दीवार में जिंदा चुन दिया गया। लेकिन उन वीर सपूत ने उनके द्वारा उन सभी आततायी मंसूबों को हमेशा के लिए दफन कर दिया।
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