प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फिनलैंड की पीएम सना मरीन को राजस्थान के हस्त शिल्प का नायाब नमूना पीतल का पेड़, डेनमार्क की राजकुमारी मैरी को चांदी की मीनाकार पक्षी और डेनमार्क के फ्रेड्रिक को छत्तीसगढ़ की डोकरा नाव भेंट की।
इंडिया न्यूज, नई दिल्ली। जैसा कि आप जानते ही हैं कि इन दिनों भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विदेशी दौरे पर हैं। यूरोपीय देशों की यात्रा के अगले चरण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने डेनमार्क, फिनलैंड के शीर्ष नेताओं से मुलाकात की।
पीएम मोदी ने दोनों देशों के साथ व्यापार, निवेश और प्रौद्योगिकी समेत कई क्षेत्रों में साझेदारी को मजबूत करने पर चर्चा की गई। इसके साथ पीएम ने फिनलैंड की पीएम सना मरीन, डेनमार्क की राजकुमारी मैरी और डेनमार्क के प्रिंस फ्रेड्रिक को उपहार भेंट किए।
मरीन को राजस्थान के हस्त शिल्प का नायाब नमूना पीतल का पेड़, मैरी को चांदी की बनी मीनाकारी पक्षी (वाराणसी की पहचान) और प्रिंस फ्रेड्रिक को छत्तीसगढ़ की डोकरा नाव भेंट की।
प्रधानमंत्री कार्यालय की ओर से ट्वीट किया गया है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और फिनलैंड की प्रधानमंत्री सना मरीन ने कोपेनहेगन में मुलाकात की। भारत और फिनलैंड के बीच विकासात्मक साझेदारी तेजी से बढ़ रही है। दोनों नेताओं ने व्यापार, निवेश, प्रौद्योगिकी और ऐसे अन्य क्षेत्रों में इस साझेदारी को और मजबूत करने के तरीकों पर चर्चा की।
पीएम मोदी ने सना मरीन को पीतल का पेड़ उपहार में दिया। यह राजस्थान की पहचान मानी जाती है। यह हाथ से तैयार की गई दीवार सजावटी कला कृति ‘ट्री आफ लाइफ’ को दशार्ती है जो पीतल से बनी है और भारत की उत्कृष्ट शिल्प कौशल और समृद्ध परंपरा का एक नायाब उदाहरण है।
इसमें पेड़ की जड़ें पृथ्वी के साथ संबंध का प्रतिनिधित्व करती हैं, पत्ते और पक्षी जीवन का प्रतिनिधित्व करते हैं और मोमबत्ती स्टैंड प्रकाश का प्रतिनिधित्व करता है।
प्रधानमंत्री ने वाराणसी से चांदी की मीनाकारी पक्षी की आकृति डेनमार्क की राजकुमारी मैरी को भेंट की। बनारस (वाराणसी) में प्रचलित चांदी की तामचीनी की कला लगभग 500 वर्ष पुरानी है। कला की जड़ें मीनाकारी की फारसी कला में हैं। इस पर मैटेलिक पेन से डिजाइन पर काम किया जाता है। ‘मीणा’ को बारीक पीसकर पानी में अनार के दानों के साथ मिलाया जाता है।
प्रधानमंत्री मोदी ने डेनमार्क के क्राउन प्रिंस फे्रड्रिक को छत्तीसगढ़ की पहचान डोकरा नाव भेंट की। डोकरा गैर-लौह धातु है जो खोई-मोम कास्टिंग तकनीक से बनाई जाती है। इस प्रकार की धातु की ढलाई का उपयोग भारत में 4,000 से अधिक वर्षों से किया जा रहा है और अभी भी इसका उपयोग किया जाता है।
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