India News (इंडिया न्यूज), Politics : जहां I.N.D.I.A. गठबंधन पूरी तरह बना नहीं उससे पहले ही I.N.D.I.A. गठबंधन की भ्रूण हत्या होने के संकेत नजर आ रहे हैं। बता दें कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा कि- “कांग्रेस सिर्फ़ चुनाव में बिज़ी है और विपक्ष को एकजुट करने के लिए देश की सबसे पुरानी पार्टी कुछ नहीं कर रही।” वहीं नीतीश की नाराज़गी जायज़ है, पटना से लेकर मुंबई और बेंगलुरु तक की दौड़ लगा ली, पर I.N.D.I.A. गठबंधन में अब तक आशंकाओं के सियासी बादल हैं। तस्वीर में एक नज़र आते हैं, ज़मीन पर अनेक हो जाते हैं। इधर नीतीश नाराज़ तो उधर अखिलेश। वहीं दो बड़े राज्यों में कांग्रेस को रास्ते का रोड़ा माना जा रहा है। कांग्रेस आज भी गठबंधन में मठाधीश बने रहना चाहती है, जबकि नीतीश जैसे नेताओं की सोच है कि 2024 में हारे तो अस्तित्व का संकट आ जाएगा।
वहीं चार महीने बाद देश में लोकसभा चुनाव है। I.N.D.I.A. गठबंधन में अब तक सीट शेयरिंग फ़ॉर्मूला ही फ़ाइनल नहीं हुआ। ऐसा लगता है कि कांग्रेस का कांटा गठबंधन को लग चुका है। वहीं कांग्रेस को अलग किया तो गले की फांस, साथ लेने की कोशिश में छूटी हर आस, आगे उन्होंने कहा कि मैं टीवी वाली तुकबंदी नहीं कर रहा, इसे सच समझिएगा।
राहुल गांधी ने ‘भारत जोड़ो’ यात्रा की, उससे कॉन्फ़िडेंस आया कि इससे वोट भी जुड़ेंगे। पर कौन समझाए कि भीड़ का मतलब वोट नहीं हुआ करता। नीतीश और लालू जैसे नेता इस बात को समझ रहे हैं कि 2024 में संपूर्ण विपक्ष को एक साथ आना ही होगा। वहीं लोकसभा चुनाव से पहले साल 2024 की जनवरी में अयोध्या में राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा का कार्यक्रम है। आयोजन इतना बड़ा होगा की आंखे फटी रह जाएंगी और कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक के वोट सधेंगे और दूसरी ओर लालू-नीतीश दोनों दीवार पर लिखी इबारत पढ़ पा रहे हैं, तभी कांग्रेस को ‘ज्ञान चक्षु’ खोलने का आह्वान कर रहे हैं।
भारत की सियासत में धर्म की लकीर को काटना है, तो जाति की दीवार को ऊंचा करना होगा। I.N.D.I.A. गठबंधन की जड़ में सियासी जाति की जकड़न है। उत्तर प्रदेश, बिहार से लेकर केरल और तमिलनाडु तक जाति वाली राजनीति से अछूते नहीं हैं। बात जाति की हो तो सत्ता का पत्ता कभी सीधे हाथ से नहीं फेंटा जाता। कांग्रेस आज भी आत्ममुग्ध है, उसे लगता है कि दलित-ओबीसी साथ हैं, मुसलमान बीजेपी विरोध के नाम पर साथ आ जाएंगे पर सियासत में एक-एक ग्यारह भी बनाते हैं और एक से एक घटा कर शून्य के पाताल में भी फेंक दिया करते हैं। वहीं उत्तर प्रदेश में यादव-मुस्लिम वोट बैंक पर सपा की पकड़ है, बिहार में यादव-मुस्लिम-कुर्मी नीतीश और लालू के वोटर कहे जाते हैं। कांग्रेस का किनारा या कांग्रेस से किनारा वोटों के बिखराव की वजह बनेगा।
बहुत हुई सत्ता से दूरी, अबकी बार हर वोट ज़रूरी- नीतीश इस बार इसी सियासी फ़लसफ़े पर चल रहे हैं और वहीं नीतीश की पहल पर इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इंक्लूसिव अलायंस यानी I.N.D.I.A. बना। वहीं मोदी विरोध के नाम पर 28 दल तस्वीरों में एक साथ आए, अफ़सोस तस्वीर से तक़दीर नहीं बना करती। ‘एक सीट पर एक उम्मीदवार’ के फॉर्मूला की वक़ालत करने वाले नीतीश इतने तल्ख़ क्यों हो गए ? बता दें कि कांग्रेस को 40 लोकसभा सीट वाले बिहार में 14 सीटों की दरकार है, नीतीश उससे पहले ही ‘प्रेशर टैक्टिक’ अपना रहे हैं। वहीं नीतीश ने अपने टोन से नैरेटिव भी सेट कर दिया है कि I.N.D.I.A. गठबंधन मे कांग्रेस ख़ुद को मुखिया समझने की जुर्रत ना करे।
उत्तर प्रदेश और बिहार की लोकसभा सीटों को मिला दें तो नंबर 120 सांसदों का बनता है। 543 सीटों पर लोकसभा चुनाव होते हैं, इनमें से 21 परसेंट सीटें अकेले यूपी-बिहार में हैं, मतलब साफ़ है कि इन दो राज्यों में टकराव का मतलब I.N.D.I.A. गठबंधन में बिखराव है। कांग्रेस मानो ‘मसरूर अनवर’ के अल्फ़ाज़ में कह रही हो कि-
“मुझे तुम नज़र से गिरा तो रहे हो
मुझे तुम कभी भी भुला ना सकोगे
ना जाने मुझे क्यों यकीन हो चला है
मेरे प्यार को तुम मिटा ना सकोगे”
वहीं जवाब में नीतीश ‘फ़राज़’ के अंदाज़ में जवाब दे रहे होंगे कि-
“रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ
आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ”
कांग्रेस दिल दुखाने के लिए I.N.D.I.A. गठबंधन में गई, अब सपा और जेडीयू जैसों की आंखों की किरकिरी बन चुकी है। वहीं वक़्त रहते अंदर की लड़ाई नहीं संभली तो ऐसा रायता फैलेगा कि समेटना भी मुश्किल हो जाएगा। और दूसरी तरफ मोदी के ख़िलाफ़ विपक्षी एकता ध्वस्त है, नीतीश की दौड़ पस्त है, बीजेपी मस्त हैं। वहीं मुस्कुराइए कि आप चुनाव में हैं।
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