Pranab Mukherjee Birth Anniversary: देश के बेहद काबिल नेता और पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने 31 अगस्त, 2020 को लंबी बीमारी के बाद दुनिया को अलविदा कह दिया था. उन्होंने कई अहम पदों पर रहने के दौरान देश को अपनी सेवाएं दीं. प्रणब मुखर्जी ने 25 जुलाई, 2012 को भारत के 13वें राष्ट्रपति के तौर पर पद संभाला. इस तरह पश्चिम बंगाल से ताल्लुक रखने वाले प्रणब मुखर्जी ने सरकार और संसद में देश की शानदार सेवा करते हुए पांच दशकों से ज़्यादा का राजनीतिक करियर बनाया. बहुत कम लोग जानते होंगे कि वह लगातार 23 साल तक भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (Indian National Congress) की सबसे बड़ी पॉलिसी बनाने वाली संस्था कांग्रेस वर्किंग कमेटी के सदस्य रहे. 11 दिसंबर, 1935 में पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले का एक छोटा सा गांव में जन्में उनके माता-पिता स्वतंत्रता सेनानी थे. वह एक साधारण बंगाली ब्राह्मण परिवार से थे, लेकिन उन्होंने अपनी प्रतिभा के दाम पर राजनीति की दुनिया में हर मुकाम पाया. यहां तककि वह राष्ट्रपति के पद पर भी 5 साल तक विराजमान रहे. उनके जन्मदिन पर इस स्टोरी में हम बताने जा रहे हैं कि आखिर वह प्रधानमंत्री से क्यों वंचित रह गए. वह भी एक नहीं बल्कि तीन-तीन बार.
पीएम बनने से कब चूके पहली बार
प्रणब दा (पूर्व राष्ट्रपति को इस नाम से भी लोग जानते हैं) की बात करें तो केंद सरकार में रहने के दौरान करीब-करीब सभी अहम मंत्रालय को सेवाएं दीं. यह दुर्भाग्य ही है कि प्रणब मुखर्जी एक नहीं बल्कि तीन-तीन बार प्रधानमंत्री बनते रहे गए. एक क्लर्क फिर टीचर से राष्ट्रपति बनने का सफर तय करने वाले प्रणब मुखर्जी का राजनीति में कोई दुश्मन नहीं था. अटल बिहारी बाजपेयी के बाद वह दूसरे राजनेता था जिनका भारतीय राजनीति में विरोधी भी सम्मान किया करते थे. ऑपरेशन ब्लू स्टार के कुछ महीने के बाद ही इंदिरा गांधी की हत्या हो गई थी. इसके बाद बड़ी तेजी से प्रधानमंत्री के रूप में प्रणब का नाम भी चर्चा में आया था. इंदिरा गांधी की कैबिनेट में नंबर-2 की हैसियत रखने वाले प्रणब दा मान कर चल रहे थे कि उन्हें ही पीएम चुना जाएगा. वहीं, कांग्रेस में प्रणब के कुछ विरोध भी थे जो नहीं चाहते थे कि वह पीएम पद तक पहुंचे. बताया जाता है कि यहांं पर खेल हो गया.
राजीव गांधी को मिल गया मौका
आर. वेंकटरामन, पीवी नरसिम्हाराव, प्रणब मुखर्जी, ज्ञानी जैल सिंह, प्रकाश चंद्र सेठी और नारायण दत्त तिवारी जैसे कद्दावर नेताओं के रहने के बावजूद राजीव गांधी को पीएम चुना गया. इसके बाद दिसंबर, 1984 में लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने 414 सीटें जीतीं. हैरत की बात यह है कि पीएम पद तो छोड़िये कैबिनेट में प्रणब को जगह तक नहीं मिली. इस वाकये के बारे में उन्होंने लिखा भी है- ‘जब मुझे पता लगा कि मैं कैबिनेट का हिस्सा नहीं हूं तो दंग रह गया. बावजूद इसके मैंने खुद को संभाला. इसके बाद पत्नी के साथ टीवी पर शपथ ग्रहण समारोह देखा. प्रणब दा अंदर से दुखी थे. ऐसे में उन्होंने दो साल बाद 1986 में पश्चिम बंगाल में राष्ट्रीय समाजवादी कांग्रेस (RSC) का गठन किया. हालांकि सिर्फ 3 साल के बाद कांग्रेस से मनमुटाव दूर हो गया. इसके बाद राजीव गांधी से उनका समझौता हुआ और RSC का कांग्रेस में विलय हो गया.
दूसरी बार भी किस्मत ने दिया धोखा
1984 में प्रणब मुखर्जी को पीएम पद नहीं मिलना मीडिया में सुर्खियों में रहा. उस समय के सभी प्रमुख समाचार पत्रों में लेख लिखे गए. 7 साल के लंबे इंतजार के बाद प्रणब मुखर्जी के द्वार पीएम पद ने फिर दस्तक दी. बात वर्ष 1991 की है. पूर्व भारतीय प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या, 21 मई 1991 को तमिलनाडु के श्रीपेरंबदूर में एक चुनावी रैली के दौरान हत्या कर दी गई. लिट्टे उग्रवादियों ने एक आत्मघाती बम विस्फोट में राजीव गांधी को मौत के घाट उतार दिया. बाद में खुलासा भी हुआ कि श्रीलंका के आतंकी संगठन लिबरेशन टाइगर्स ऑफ़ तमिल ईलम (LTTE) की शातिर धनु (कलैवानी राजरत्नम) ने अंजाम दिया था. राजीव गांधी की मौत के बाद कांग्रेस पार्टी ही नहीं पूरा देश सदमे में था. राजीव गांधी की हत्या के बाद चुनाव में कांग्रेस की बंपर जीत हुई. राजनीतिज्ञ यह मानकर चल रहे थे कि प्रणब ही पीएम बनेंगे, क्योंकि उनके मुकाबले कोई दूसरा कद्दावर नेता नहीं था. दूसरी बार भी प्रणब दा चूक गए. नरसिम्हा राव को प्रधानमंत्री बनाया गया. वहीं, प्रणब दा को पहले योजना आयोग का उपाध्यक्ष और फिर 1995 में विदेश मंत्री बनाया गया, लेकिन वह मलाल कई सालों तक रहा.
तीसरी बार भी मिला ‘धोखा’
बात वर्ष 2004 की है. राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन चुनाव हार गया. चुनाव में कांग्रेस को 145 और भारतीय जनता पार्टी को 138 सीटें मिलीं. कांग्रेस की केंद्र की सत्ता में वापसी हुई. सोनिया गांधी ने प्रणब मुखर्जी को दरकिनार करके मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री पद के लिए चुना. यहां पर रोचक बात यह है कि सबसे पहले सोनिया गांधी को ही प्रधानमंंत्री बनने का मौका मिला, लेकिन BJP ने इस पर कड़ा विरोध जताया. सोनिया ने भी पैर पीछे खींचे और पीएम बनने से ही इन्कार कर दिया. ऐसी स्थिति में प्रणब मुखर्जी का नाम फिर चर्चा में आया, लेकिन सोनिया खेल करते हुए जाने माने अर्थशास्त्री मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री पद के लिए चुना. यह अलग बात है कि इससे पहले मनमोहन सिंह नरसिम्हा राव की सरकार में बतौर अर्थशास्त्री सफल पारी खेल चुके थे. मनमोहन सिंह की आर्थिक उदारीकरण की नीतियों ने दुनियाभर के लिए भारतीय बाजार खोल दिए थे. रोजगार भी बढ़ रहा था. यह सब भी मनमोहन सिंह के हक में गया.
काबिल थे प्रणब मुखर्जी
एक दौर में क्लर्क की नौकरी और फिर टीचर बनकर शिक्षा का उजियारा करने वाले प्रणब मुखर्जी अधिक काबिल थे. यह बात सत्ता पक्ष के लोग दबी जुबान से तो विपक्ष खुलकर बोलता था. एक बार मनमोहन ने खुद कहा था- जब मैं प्रधानमंत्री बना, तब प्रणब मुखर्जी इस पद के लिए ज्यादा काबिल थे, लेकिन मैं कर ही क्या सकता था? कांग्रेस प्रेसिडेंट सोनिया गांधी ने मुझे चुना था. यह बहुत बड़ा स्टेटमेंट था, जो प्रणब मुखर्जी के पक्ष में गया. यह भी कहा जाता है कि इंदिरा गांधी की हत्या के बाद अगले प्रधानमंत्री के रूप में प्रणब का नाम भी चर्चा में था, लेकिन पार्टी ने राजीव गांधी को चुना.