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इंडिया न्यूज, Delhi News (Rahul Gandhi National Herald Case) : देश में हर दिन कोई ना कोई नेता किसी भी बात को लेकर चर्चा में बना रहता है। अभी बीते कुछ दिनों से गांधी परिवार काफी सुर्खियों में बना हुआ है। क्योंकि पिछले दिनों राहुल गांधी को ईडी की ओर से एक समन जारी किया गया था। बता दें दस साल पहले तक ईडी शायद ही कभी सुर्खियों में आती थी, लेकिन इन दिनों तो सीबीआई से अधिक तो ईडी की चर्चाएं हो रही हैं। तो चलिए जानते हैं क्या है ईडी और राहुल गांधी ईडी के क्यों हैं निशाने पर।
ईडी काफी फेमस शब्द है। अक्सर यह शब्द न्यूज पेपर और न्यूज चैनल्स में सुना ज्यादा सुनने को मिलता है। इस तरह से ईडी से संबंधित आये दिन खबरें देखने को मिलती हैं। ईडी की फुल फॉर्म इंफोर्समेंट डायरेक्टरेट होता है। इसको हिंदी में प्रवर्तन निदेशालय कहा जाता है। इस कानून को अटल सरकार 2002 लायी थी, लेकिन इसे धार देकर 2005 में लागू किया मनमोहन सरकार के वित्तमंत्री पी चिदंबरम ने। अब यही कानून कांग्रेसी नेताओं के लिए गले का फंदा बना हुआ है।
ईडी विख्यात या यूं कहें कि कुख्यात हुई मनी लॉन्ड्रिंग कानून यानी पीएमएलए लागू होने के बाद से है। इसे समझने से पहले मनी लॉन्ड्रिंग के खिलाफ बने पीएमएलए का मतलब समझ लेते हैं। आम बोली में इसका मतलब है दो नंबर के पैसे को हेरफेर से ठिकाने लगाने वालों के खिलाफ कानून।
मनी लॉन्ड्रिंग बड़ी मात्रा में अवैध पैसे को वैध पैसा बनाने की प्रक्रिया है। सीधे शब्दों में कहें तो ब्लैक मनी को वाइट करने को मनी लॉन्ड्रिंग कहते हैं। ब्लैक मनी वो पैसा है, जिसकी कमाई का कोई स्रोत नहीं होता, यानी उस पर कोई टैक्स नहीं दिया गया है। मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में ऐसा लगता है कि पैसा किसी लीगल सोर्स से आया है, लेकिन वास्तव में पैसे का मूल सोर्स कोई आपराधिक या अवैध गतिविधि होती है। धोखेबाज इस प्रोसेस का इस्तेमाल अवैध रूप से एकत्र पैसे को छिपाने के लिए करते हैं।
सीधे शब्दों में कहें तो मनी लॉन्ड्रिंग पैसे के सोर्स को छुपाने की प्रोसेस है, जो अक्सर अवैध गतिविधियों जैसे ड्रग्स की तस्करी, भ्रष्टाचार, गबन या जुए से मिलता है। यानी अवैध तरीके से मिले पैसे को एक वैध स्रोत में परिवर्तित करने की प्रक्रिया को ही मनी लॉन्ड्रिंग कहते हैं। मनी लॉन्ड्रिंग के जरिए ड्रग डीलर से लेकर बिजनेसमैन, भ्रष्ट अधिकारी, माफिया, नेता करोड़ों से लेकर अरबों रुपए तक के फ्रॉड करते हैं।
आपको 2020 का वो किस्सा तो याद ही होगा, जब एक के बाद एक 8 राज्यों ने सीबीआई को अपने इलाके में काम करने से रोक दिया था। इनमें पंजाब, राजस्थान, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, केरल और मिजोरम जैसे राज्य शामिल थे। मतलब साफ है कि दिल्ली पुलिस स्पेशल एस्टैब्लिशमेंट एक्ट 1946 के तहत बनी सीबीआई को किसी भी राज्य में घुसने के लिए राज्य सरकार की अनुमति जरूरी है।
हां, अगर जांच किसी अदालत के आदेश पर हो रही है तब सीबीआई कहीं पर पूछताछ और गिरफ्तारी के लिए जा सकती है। बताया जाता है कि करप्शन के केसों में अफसरों पर मुकदमा चलाने के लिए भी सीबीआई को उनके डिपार्टमेंट से भी अनुमति लेनी होती है।
वहीं नेशनल इंवेस्टिगेटिंग एजेंसी यानी एनआईए को बनाने की कानूनी ताकत एनआईए एक्ट 2008 से मिलती है। एनआईए पूरे देश में काम कर सकती है, लेकिन उसका दायरा केवल आतंक से जुड़े मामलों तक सीमित होता है। इससे उलट मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट यानी पीएमएलए की ताकत से लैस ईडी केंद्र सरकार की अकेली जांच एजेंसी है, जिसे मनी लॉन्ड्रिंग के मामलों में नेताओं और अफसरों को तलब करने या उन पर मुकदमा चलाने के लिए सरकार की अनुमति की जरूरत नहीं है। ईडी छापा भी मार सकती है और प्रॉपर्टी भी जब्त कर सकती है। हालांकि, अगर प्रॉपर्टी इस्तेमाल में है, जैसे मकान या कोई होटल तो उसे खाली नहीं कराया जा सकता।
मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट में जमानत की दो सख्त शर्तें हैं। पहली-आरोपी जब भी जमानत के लिए अप्लाई करेगा तो कोर्ट को सरकारी वकील की दलीलें जरूर सुननी होंगी। दूसरी- इसके बाद कोर्ट अगर इस बात को लेकर संतुष्ट होगा कि जमानत मांगने वाला दोषी नहीं है और बाहर आने पर ऐसा कोई अपराध नहीं करेगा, तभी जमानत मिल सकती है।
यानी जमानत केस की सुनवाई से पहले ही अदालत को ये तय करना पड़ेगा कि जमानत मांगने वाला दोषी नहीं है। इस कानून के तहत जांच करने वाले अफसर के सामने दिए गए बयान को कोर्ट सबूत मानता है, जबकि बाकी कानूनों के तहत ऐसे बयान की अदालत में कोई वैल्यू नहीं है।
अगस्त 2014 में ईडी ने इस मामले में स्वत: संज्ञान लेते हुए मनी लॉन्ड्रिंग का केस दर्ज किया। दिसंबर 2015 में दिल्ली के पटियाला हाउस कोर्ट ने सोनिया, राहुल समेत सभी आरोपियों को जमानत दे दी। अब ईडी ने इसी मामले की जांच के लिए सोनिया और राहुल को समन जारी किया। साथ ही ईडी ने बीते दिनों राहुल से इस मामले में पूछताछ की है।
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