संबंधित खबरें
Pannus Threat For Maha Kumbh : 'इसे मार-मारकर भगाया जाएगा…' महंत रवींद्र पुरी ने दिया धमाकेदार बयान, खौफ में आ जाएगा खालिस्तानी पन्नू
शाह-मोदी का मुंह ताकते रह गए राहुल गांधी, यहां भी मिली जबरदस्त मात, केजरीवाल तो आस-पास भी नहीं
फिर दस्तख दे सकती है ठंड हो सकती है बारिश, जाने कैसे रहने वाला है इस हफ्ते मौसम का हाल!
‘नहीं हटाउंगी बुर्का’ हाईकोर्ट के जज से भिड़ गई मुस्लिम महिला वकील, जब मंगवाई गई रिपोर्ट तो…
PM Modi ने दे दिया नए साल का तोहफा, मोबाइल यूजर्स को मिली बड़ी खुशखबरी, इस फैसले का 150 मिलियन ग्राहकों को मिलेगा फायदा
अटल बिहारी वाजपेयी का लोहा मानते थे पंडित नेहरू, धुर विरोधी को घोषित कर दिया था प्रधानमंत्री, दिल जीत लेगी उस दौर की राजनीति
अजीत मैंदोला, नई दिल्ली:
Rahul-Priyanka’s Congress: कांग्रेस अब बदल गई है। कांग्रेस में अब वही होगा जो राहुल गांधी और प्रियंका गांधी चाहेंगे। दोनों नेताओं के इशारे को पार्टी में जो नेता नहीं समझेगा उसके लिये खतरा तय है। पिछले कुछ दिनों में कांग्रेस जिस ढंग से चलना शुरू हुई है इससे यही संकेत मिलने लगे थे। बाकी रही सही कसर शनिवार को हुई कार्यसमिति की बैठक ने पूरी कर दी।
कांग्रेस की अंतरिम अध्य्क्ष सोनिया गांधी ने ग्रुप 23 के नेताओं को सीधी हिदायत दी कि वह ही फुल टाइम अध्य्क्ष हैं। जो कुछ उन्हें कहना है पार्टी फोरम में कहें, मीडिया के माध्य्म से नहीं। बैठक का एजेंडा जो भी रहा हो, लेकिन सन्देश साफ दे दिया गया कि कांग्रेस में वही होगा जो राहुल गांधी चाहेंगे। अंसन्तुष्ट नेताओं को सीधा इशारा है जिसे जो करना हो करें।
जहां तक संगठन का चुनाव है वह अगले साल सितम्बर तक अपने समय पर ही पूरे होंगे होंगे। हालांकि कांग्रेस ने प्रक्रिया इस साल शुरू करने की घोषणा की है। नये अध्य्क्ष का फैसला अगले साल ही होगा। सूत्रों को कहना है गुजरात चुनाव के पूर्व कांग्रेस को नया अध्य्क्ष मिल जाएगा। फिलहाल कांग्रेस जैसे चल रही है वैसे ही चलेगी। मतलब भाई बहन किसी का दबाव अब नही मानेंगे। हर नेता को वह मानना पड़ेगा जो कहा जायेगा। ना नुकर की कोई गुंजाइश नही होगी।
राहुल और प्रियंका ने पंजाब से बदलाव की शुरूआत कर दी है। यह प्रयोग आगे भी जारी रहेगा। किस किस राज्य में कब होगा उसका फैसला मौका देख कर लिया जाएगा। अभी पहली कोशिश फरवरी मार्च में होने वाले पांच राज्यों के चुनाव में से पंजाब और उत्तराखण्ड का चुनाव जीतने की होगी। यूपी मे अकेले का दांव खेल स्थिति को सुधारने पर जोर रहेगा।
मणिपुर ओर गोवा में पार्टी की कोशिश करेगी कि बीजेपी किसी तरह से हारे। इसके लिये आने वाले दिनों में पार्टी नेताओं को अलग अलग राज्यों की जिम्मेदारी दी जाएगी। सूत्रों की माने तो कार्यसमिति की बैठक में अंसन्तुष्ट नेताओं की तरफ से कुछ सवाल उठाने की कोशिश की गई, लेकिन माहौल ने उन्हें हावी नहीं होने दिया। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने राहुल गांधी से फिर पार्टी की कमान संभालने की अपील की जिसका सभी नेताओं ने समर्थन किया। राहुल ने भी फिर से कमान संभालने पर विचार की बात की। संकेत यही हैं कि अगले साल सितंबर में राहुल फिर से कमान संभाल लेंगे।
अंसन्तुष्ट नेता तो चाहते थे कि विस्तृत कार्यसमिति न हो, लेकिन कांग्रेस की अंतरिम अध्य्क्ष सोनिया गांधी ने अपने तीनो मुख्यमन्त्रियों को भी शामिल करवा विस्तृत कार्यसमिति की बैठक बुला पूरी चाक चौबंद व्यस्त पहले ही कि हुई थी। अपने भाषण में ही उन्होंने सवाल उठा रहे नेताओं की बोलती बंद कर दी। हालांकि राहुल गांधी अपने जिन रणनीतिकारों पर भरोसा करते हैं, उनसे कुछ ना कुछ चूक हो ही रही है। पिछले साल इन्ही दिनों पार्टी जो कार्यक्रम तय किये थे वह त्योहारों के दिन तय कर दिए थे, जिन्हें बाद में बदला गया।
इसी तरह इस बार भी दशहरे के एक दम बाद कार्यसमिति की बैठक रख दी गई। नेताओं को यह फैसला भी अजीब लगा। क्योंकि सभी को दशहरे वाले दिन दिल्ली पहुंचना पड़ा। लेकिन नई कांग्रेस में अब सवाल उठाने की कोई चांस अब नहीं बचा है। नई कांग्रेस के प्रमुख रणनीतिकार केसी वेणुगोपाल, रणदीप सिंह सुरजेवाला, जितेंद्र सिंह, अजय माकन और प्रियंका गांधी हैं। इन नेताओं की खिलाफत अंसन्तुष्ट नेता कितनी भी करें उसका अब कोई मतलब नहीं रह गया है। सोनिया ने अपने भाषण में राहुल और प्रियंका की रणनीति पर एक तरह से मोहर भी लगाई।
पंजाब और महाराष्ट्र से राज्यसभा के टिकट का फैसला राहुल गांधी ने खुद कर सीधा सन्देश दिया कि सवाल उठाने वालों के लिये पार्टी में कोई जगह नही। पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री अमरेन्द्र सिंह ने एक कार्यसमिति की बैठक में नवजोत सिंह सिद्धू को लेकर नाराजगी और सवाल उठाए थे जिसका खामियाजा देर से सही लेकिन उन्हें उठाना पड़ा। बदलाव के बाद सिद्धू ने आंखे दिखाई तो उन्हें समझा दिया गया अब जैसे कहा जाए वैसा करो। सिद्धू माहौल देख समझ गये।
राज्यसभा चुनाव के समय राहुल ने सभी दिग्गजों को छोड़ रजनी पाटिल को टिकट दे अंसन्तुष्ट नेताओं को मैसेज दिया। भाई बहन उस रास्ते पर निकल पड़े हैं जहां उन्हें अब किसी नेता की जरूरत नहीं है। वह समझ चुके हैं कि मौजूदा हालात में एक बार कड़ा रुख अपना प्रयोग किये जायें। सफल रहे तो ठीक वर्ना बाद में रणनीति बदल लेंगे। इसलिये यूपी के मामले में प्रियंका गांधी ने अकेले ही मोर्चा संभाला है। लखीमपुर खीरी कांड में प्रियंका अपने साथ किसी नेता को साथ नही ले गई। राष्ट्रपति से मिलने के बाद दोनों भाई बहन ही सामने आये।
Dead Body of a JCO and Jawan Recovered : एक जेसीओ और जवान का शव बरामद, अब तक पुंछ मुठभेड़ में नौ शहीद
जानकार मान रहे हैं कि कोशिश अच्छी है, लेकिन सवाल एक ही क्या वोटर प्रभावित होगा। क्योंकि दोनों के सामने असल चुनौती यही है कि पार्टी चुनाव कैसे जीते। क्योंकि 2014 से जब से राहुल प्रियंका ने पार्टी की कमान संभाली तीन चार राज्यों को छोड़ कहीं कोई सफलता मिली नहीं। उनमें से पुडिचेरी हार गए। मध्यप्रदेश हाथ से निकल गया। पंजाब में मार्च में पता चलेगा कि रहेगा कि जाएगा। राजस्थान और छत्तीसगढ़ जरूर राहुल गांधी के नेतृत्व में जीते गए हैं। जहां पर दोनों मुख्यमन्त्रियों पर राहुल गांधी का भरोसा अभी बना है।
राजस्थान के सीएम गहलोत कार्यसमिति की बैठक में गांधी परिवार के बचाव में हमेशा आगे आते रहे हैं। इस बार भी वह सक्रिय थे। हालांकि बैठक वही हुआ जो पहले से ही तय था। मौजूदा राजनीतिक हालात के तहत किसानों और महंगाई के मुद्दे पर केंद्र पर जमकर हमला बोला गया। पांच राज्यों के चलते संगठन चुनाव अभी टाले गये। अभी पूरा फोकस पांच राज्यों पर केंद्रित रहेगा। अंसन्तुष्ट नेताओं को कम ही बोलने का मौका दिया गया। सोनिया के तेवर देख नेता हमले से बचे।
Read More : Jal Jeevan Mission: Jal Kranti जल जीवन मिशन: जल क्रांति
Get Current Updates on, India News, India News sports, India News Health along with India News Entertainment, and Headlines from India and around the world.