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राजस्थान राज्यसभा चुनाव: गहलोत की जादूगीरी से कांग्रेसियों को उम्मीद

PUBLISHED BY: Amit Gupta • LAST UPDATED : June 4, 2022, 1:03 pm IST
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राजस्थान राज्यसभा चुनाव: गहलोत की जादूगीरी से कांग्रेसियों को उम्मीद

Rajasthan Rajya Sabha Election Update News

इंडिया न्‍यूज। अजीत मैंदोला: Rajasthan Rajya Sabha Election 2022: रणनीति के चाणक्य माने जाने वाले राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत क्या राज्यसभा चुनाव में संकट में फंसी तीसरी सीट को जितवा पाएंगे? जानकार और कांग्रेसी मान रहे हैं कि गहलोत अपनी जादूगीरी से पार्टी को निराश नही होने देंगे।

जीते तो गहलोत का बढ़ेगा कद

सफल हुए तो पार्टी में तो और कद बढ़ेगा ही साथ ही गांधी परिवार को बढ़ा तोहफा भी देंगे। यूं भी तीसरे कार्यकाल में गहलोत को अब तक साढ़े तीन साल में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा जिसमें वे लगातार निपटने में सफल रहे हैं। लेकिन इस बार की चुनौती उनको बीजेपी ने सीधे दी है।

बीजेपी के लिए भी यह चुनाव बड़ी चुनौती माना जा रहा है। इस  चुनाव ने राजस्थान कांग्रेस और बीजेपी दोनों की राजनीति में अचानक बड़ा बदलाव ला दिया। कांग्रेस जहां मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की अगुवाई में पूरी तरह से एक जुट दिखाई देने लगी।

अचानक फ्रंट पर क्‍यों आईं वसुंधरा

वहीं बीजेपी में पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे अचानक फ़्रंट में आ  गई। यही नहीं घोर विरोधी राज्यसभा प्रत्याशी घनश्याम तिवाड़ी को बधाई दे राजे ने यही सन्देश देने की कोशिश की कि उनका उनसे कभी कोई ठकराव ही नहीं था और ना ही पार्टी में कोई गुटबाजी है।

हालांकि बीजेपी एक जुट होगी इसको लेकर अभी संदेह है, लेकिन हाल फिलहाल तो कोशिश यही की जा रही है कि एक जुट हो तिवाड़ी की जीत के साथ साथ समर्थित निर्दलीय उम्मीदवार सुभाष चंद्रा को भी जितवाया जाए। चंद्रा जीतेंगे या हारेंगे यूं तो इसका पता वोटिंग के दिन ही चलेगा।लेकिन फिलहाल राज्यसभा चुनाव बहुत दिलचस्प हो गया है।

चौथी सीट को लेकर संशय

संख्या गणित के हिसाब से देखा जाए तो कांग्रेस दो सीट और बीजेपी एक सीट अपने विधायकों के दम पर आसानी से जीत रही है। लेकिन सुभाष चंद्रा के मैदान में आने से चौथी सीट को लेकर ही मुकाबला हो गया। इसके चलते राजस्थान की चार राज्यसभा सीटों के लिए 10 जून  को वोटिंग होगी।

कांग्रेस के पास पर्याप्‍त 126 वोट

कांग्रेस के पास अपने 108 विधायक हैं। समर्थन देने वालों में 13 निर्दलीय, 2 माकपा और 2 भारतीय ट्राइबल पार्टी बीटीपी के और एक राष्ट्रीय लोकदल के सुभाष गर्ग जो अभी मंत्री हैं। इस तरह यह  126 हो जाती हैं। इनमें बीटीपी के दो विधायक अभी सरकार से नाराज चल रहे हैं। जिन्हें मनाने की कोशिश जारी है।

प्रत्‍याशी को जीतने के लिए कितने वोट चाहिए

एक प्रत्याशी को जीतने के लिए 41 वोट चाहिए। इस हिसाब से कांग्रेस के तीनों प्रत्याशियों के जीतने लायक 123 वोट हैं। इसी संख्या के आधार पर कांग्रेस ने मुकुल वासनिक, रणदीप सिह सुरजेवाला और प्रमोद तिवारी को मैदान में उतारा। इनमें से एक दो विधायक इधर उधर हुए तो फिर कांग्रेस के तीसरे प्रत्याशी प्रमोद तिवारी फंस जाएंगे।

जानकार मान रहे हैं गहलोत अपनी जादूगीरी से अपने विधायकों को इधर उधर होने नहीं देंगे। साढ़े तीन साल से गहलोत विधायको को ही साध रहे हैं। कुछ विधायक भले ही अभी नाराजगी व्यक्त कर रहे हैं, लेकिन उनके पास विकल्प सीमित हैं। वोटिंग से पहले इन नाराज विधायकों को मनाने की कोशिशें कांग्रेस की तरफ से जारी हैं।

बीजेपी के पास हैं 71 विधायक

बीजेपी का गणित देखें तो उसके अपने 71 विधायक हैं। हनुमान बेनीवाल की पार्टी आरएलपी के तीन विधायक हैं। बीजेपी को अपने प्रत्याशी घनश्याम तिवाड़ी को आसानी से जिताने के लिए 41 वोट हैं। लेकिन पार्टी ने निर्दलीय सुभाष चंद्रा को समर्थन कर कांग्रेस की तीसरी सीट को फंसा दिया।

सुभाष चंद्रा के लिए संकट

आरएलपी किसान आंदोलन के समय राजग से अलग हो गई थी। आरएलपी नेता बेनीवाल कांग्रेस और बीजेपी दोनों की खिलाफत करते रहे हैं। लेकिन इस चुनाव में उन्हें बीजेपी के साथ माना जा रहा है। इस तरह सुभाष चंद्रा के पास बीजेपी के 30 और आरएलपी के 3 विधायकों की संख्या 33 होती है। जीत के लिए उन्हें 8 विधायकों की ओर जरूरत है।

बीजेपी और सुभाष चंद्रा का दावा है कि इतने निर्दलीय विधायक उनके सम्पर्क में हैं। अब ये तो वोटिंग के दिन पता चलेगा कोन किसके साथ है, लेकिन बीजेपी जो उम्मीद कर रही है वह पूरी होगी उसको लेकर आशंका है। क्योंकि अधिकांश निर्दलीय विधायक मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के कट्टर समर्थक माने जाते हैं।

हालांकि पंजाब में आम आदमी पार्टी की जीत के बाद एक दो निर्दलीय विधायक आप पार्टी में नेता बनने की राह तलाश रहे हैं। इसके चलते वह सरकार के खिलाफ नाराजगी जाहिर करते रहते हैं।लेकिन वह गहलोत का साथ छोड़ेंगे इस पर सन्देह है। इनके साथ बीजेपी की दूसरी उम्मीद दो साल पहले बागी तेवर अपनाने वाले पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट और उनके समर्थकों को लेकर थी।

पायलट भी मदद को मैदान में जुटे

लेकिन राज्यसभा चुनावों में मामला पूरी तरह पलटा हुआ दिख रहा है। लगातार अपनी सरकार को अप्रत्यक्षरूप से निशाना बनाने वाले पायलट खुद अपनी पार्टी के प्रत्याशियों के समर्थन में खुलकर मैदान में आ गए हैं। इससे यह तय हो गया है कि पार्टी अपने विधायक पूरी तरह से एक जुट हैं। ये कांग्रेस के लिए राहत की बात है।

बीजेपी में अभी खुले तौर पर सब ठीक दिख रहा है। पूर्व मुख्यमंत्री राजे आलाकमान को काफी हद तक सन्देश देने में कामयाब हैं कि उनके पूरे विधायक एक जुट हैं। कांग्रेस को राजे समर्थक विधायकों में ही सेंध की उम्मीद है, लेकिन राजे की सक्रियता से लग नहीं रहा है कि इस बार कोई विधायक गायब होगा।

दो साल पहले गहलोत सरकार के खिलाफ लाए गए अविश्वास प्रस्ताव के समय बीजेपी के कुछ विधायक सदन से गायब थे। हालांकि सरकार ने बहुमत साबित कर बीजेपी को झटका दिया था। इस घटनाक्रम के बाद बीजेपी के अंदर धड़ेबाजी बढ़ गई थी। राजे समर्थको ने प्रदेश अध्य्क्ष सतीश पूनिया द्वारा चलाए कार्यक्रमों से दूरी बना समानांतर अलग से अभियान चलाने शुरू किए हुए थे।

लेकिन यूपी समेत चार राज्यों में मिली बड़ी जीत के बाद राजस्थान बीजेपी में स्थिति बदली हुई दिख रही है। राजे गुट अब चुप है। पार्टी आलाकमान से न तो अभी कोई मांग कर रहे हैं और ना ही चुनोती देने जैसी कोई बात हो रही है। अब राज्यसभा चुनाव बाद क्या हालात बनते हैं तभी पता चलेगा  बीजेपी एक जुट हो गई है। राज्यसभा का यह चुनाव कांग्रेस के साथ बीजेपी के लिए भी प्रतिष्ठा का सवाल बन चुका है।

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