धीरज ढिल्लों, नई दिल्ली :
Rakesh Tikait Big Statement on Kisan andolan : किसान आंदोलन खत्म हो गया है, दिल्ली की सीमाओं पर करीब साढ़े 12 माह से डटे किसानों ने अपने घरों का रुख करना शुरू कर दिया है। हालांकि संयुक्त किसान मोर्चा ने आंदोलन खत्म करने की नहीं, स्थगित करने की घोषणा की है।
इतने दिनों तक सड़कों पर रहे किसानों ने सर्दी, गर्मी और बरसात झेली। कोविड की दूसरी लहर के खतरे से भी किसान सड़कों पर रहकर लड़ा। लंबे समय तक सरकार ने किसानों से वार्ता नहीं की, लेकिन किसान डटा रहा। आखिरकार प्रधानमंत्री को खुद आकर कृषि कानूनों की वापसी की घोषणा करनी पड़ी।
इस घोषणा के बाद से ही किसानों की घर वापसी का रास्ता खुलने लगा था और आखिरकार प्रधानमंत्री की घोषणा के 20 दिन बाद किसान घर जाने को राजी हो गए। 11 दिसंबर को किसानों ने दिल्ली के बार्डरों से लौटना शुरू भी कर दिया।
किसानों के इस पूरे संघर्ष को लेकर इस आंदोलन का मुख्य चेहरा रहे राकेश टिकैत से हमारे रिपोर्टर धीरज ढिल्लों ने रविवार की सुबह गाजीपुर बार्डर पर इस संबंध में लंबी बातचीत की। प्रस्तुत हैं बातचीत के कुछ अंश।
राकेश टिकैत : आंदोलन की सफलता को लेकर कोई शक होने की गुंजाइश ही नहीं है। हां, हमें कुछ लोगों को अपनी बात समझाने में समय जरूर लग गया। लंबे अरसे तक किसानों से बातचीत नहीं करने वाली सरकार को आखिर तीनों कृषि कानून वापस लेने पड़े। इस बात से एक बार फिर साबित हो गया कि सच को ज्यादा समय तक दबाकर नहीं रखा जा सकता।
सच परेशान हो सकता है, लेकिन पराजित नहीं हो सकता। यह आंदोलन इस मुकाम तक इसलिए पहुंचा, क्योंकि लोकतंत्र में लोक यानी कि जनता सर्वोपरि है। हालांकि यह आंदोलन में न तो किसानों की जीत हुई और न सरकार की हार। आंदोलन सफल जरूर हुआ है लेकिन इसे किसी की जीत-हार से जोड़कर कतई नहीं देखा जाने चाहिए।
राकेश टिकैत : हां, सीधे तौर पर देखा जाए तो अभी किसानों को कुछ नहीं मिला, पर मिलेगा। एक साल के संघर्ष के बाद किसान केवल उन कृषि कानूनों को ही रद्द कराने में कामयाब हो पाया है जो कारपोरेट के दवाब में लाए गए थे। हमारी आगे की लड़ाई अभी जारी है।
एमएसपी पर कानून बनाने के लिए सरकार ने कमेटी बनाकर जल्द ही निर्णय लेने का आश्वासन दिया है। संयुक्त किसान मोर्चा इस आश्वासन की 15 जनवरी, 2022 को समीक्षा करेगा। यदि हम देखें तो इस आंदोलन किसान को और भी बहुत कुछ दिया है। इस आंदोलन ने संयुक्त किसान मोर्चा दिया है।
इस आंदोलन ने किसान को अपने हक के लिए लड़ने की हिम्मत दी है। यह आंदोलन मौजूदा ही नहीं, आने वाली सरकारों को भी इस बात की नसीहद देगा कि किसानों के हित दरकिनार नहीं किए जा सकते। इसके अलावा इस आंदोलन ने पूरे देश के किसान को एक सूत्र में पिरोने का काम भी किया है।
राकेश टिकैत : इस आंदोलन में किसानों ने सात सौ शहादत दी हैं, जिस परिवार का बेटा, पिता और भाई शहीद हुआ है, उस परिवार को कभी न पूरी होने वाली क्षति हुई है। जाहिर तौर पर किसान एक साल तक दिल्ली की सीमाओं पर पड़ा रहा तो उसके खेतों में नुकसान भी हुआ है।
सरकार यदि समय से किसान की बात सुन लेती तो इस नुकसान को कम किया जा सकता था। किसान की अब यही तो पीड़ा है, हुजूर आते-आते बहुत देर कर दी। दरअसल, यह सरकार के सलाहकारों की गलत सोच और सूचना का नतीजा है। Rakesh Tikait Big Statement on Kisan andolan
या हूं कहें कि सलाहकार सच कहने से डरते रहे और खुश करने के लिए गलत सूचनाएं देते रहे। कहीं न कहीं यह बात इस ओर भी इशारा करती है कि सरकार में बैठे लोगों ने संवाद को उतनी तवज्जो नहीं दी। खुले मन से बात करने का माहौल न होने से भी ऐसी दिक्कतें आती हैं।
राकेश टिकैत : इस आंदोलन ने दो बीघा जमीन वाले किसान को भी एमएसपी का मतलब समझा दिया है। अब तक तो किसान इसके बारे में जानता ही नहीं था। आंदोलन ने किसान और सरकार, दोनों के जहन में एमएसपी को स्थापित करने का काम किया है।
15 जनवरी, 2022 को संयुक्त किसान मोर्चा की समीक्षा बैठक में एमएसपी पर ही तो बात होगी। संयुक्त किसान मोर्चा की ओर से एमएसपी की लड़ाई जारी है। सरकार के आश्वासन पर किसान आंदोलन स्थगित किया गया है, आंदोलन खत्म होने की घोषणा नहीं हुई है।
किसान अपने घर जा रहा है, लेकिन उसकी नजर दिल्ली पर ही है, सरकार ने यदि ज्यादा टालमटोल करने की कोशिश की तो किसान ज्यादा दिन तक चुप बैठने वाला नहीं है। किसान अब एमएसपी लेकर ही दम लेगा।
राकेश टिकैत : देखो भई, चुनाव से हमारा कोई लेना देना नहीं है। यह आंदोलन अराजनैतिक था, और भारतीय किसान यूनियन भी अराजनैतिक है। जब हम राजनैतिक नहीं हैं तो क्या कह सकते हैं ? ना हम किसानों को किसी दल का समर्थन करने की बात कहेंगे।
किसान जागरुक है, वह अपने विवेक से वोट करेगा। हमसे किसान यह उम्मीद नहीं रखता कि हम राजनीति के चक्कर में पड़ें। हमसे किसान आंदोलन की ही उम्मीद रखता है। किसानों की समस्या को लेकर हम आंदोलन करते रहेंगे। किसान की आवाज उठाते रहेंगे।
राकेश टिकैत : देखो, पहली बात या है कि आंदोलन अभी खत्म नहीं स्थगित हुआ है। सबसे पहले तो हम स्वर्ण मंदिर में माथा टेकने जाएंगे। यह कार्यक्रम आंदोलन की शुरूआत में ही तय हो गया था कि दिल्ली के बार्डरों से पहले स्वर्ण मंदिर जाएंगे, अपने घर भी उसके बाद जाएंगे।
दूसरे उन किसान परिवारों का हाल पूछेंगे, जिन परिवारों से आंदोलन के दौरान शहादत हुई है। एक साल तक आंदोलन के चलते जो कार्यक्रम स्थगित रखने पड़े, उन्हें देखेंगे। इतना समय कहा हैं, एक महीने में फिर संयुक्त किसान मोर्चा की बैठक आ जाएगी।
राकेश टिकैत : भई हम तो दिल्ली जान कू आए थे, दिल्ली ने दरवज्जे बंद कर दिए तो किसान सड़क पर बैठ गए। हां, किसानों के यहां बैठने से आमजन को आने-जाने में परेशानी तो हुई। उन्होंने किसानों के लिए यह परेशानी उठाई, हम उनके इस सहयोग के लिए आभारी हैं।
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